अब मैं मासूम नहीं
रहा। पता नहीं कब था। लेकिन लोग कह रहे हैं कि अब मुझमें वो मासूमियत नहीं रही। कहते
हैं कि पहले मेरी आंखों से, चेहरे से, आवाज से मासूमियत झलकती थी। बच्चों जैसी। लेकिन
अब नहीं। पता नहीं लोग कहां- कहां से मासूमियत ढूंढ लेते हैं।
मैंने कभी मासूमियत
पर रिसर्च नहीं किया। किसी किताब में इसकी परिभाषा भी नहीं पढ़ी। इसलिए इसके बारे
में ज्यादा नहीं जानता। मैं तो बस ये समझता हूं कि मासूम सिर्फ बच्चे होते हैं।
स्कूल जानेवाले बच्चे। जो अच्छा-भला नहीं सोचते। वो दहलीज तो मैं कई बरस पहले पार
कर चुका था। बावजूद इसके कुछ महीने पहले तक लोगों को मुझमें मासूमियत दिखती थी।
मेरी आंखें वही है,
लेकिन उसमें मासूमियत नहीं रही। मेरा चेहरा वही है। मेरी आवाज वैसी ही है। जज्बात
भी वैसा ही है, लेकिन मैं मासूम नहीं रहा। हां मैं
थोड़ा मोटा जरूर हो गया हूं। माथे से बाल कम हो गये हैं। लेकिन दोस्तों से वैसे ही
बात करता हूं जैसे पहले करता था। आज भी उतना ही बोलता हूं, जितना पहले बक बक करता
था। मजाक करने का तौर तरीका भी नहीं बदला। शाम होते ही आज भी मेरी आंखें थोड़ी चढ़
जाती है अपने-आप। पहले भी बीड़ी, सिगरेट, पान, गुटखा, शराब, चाय से परहेज था, अब
भी कायम है। लेकिन लोग कहते हैं कि मुझमें वो मासूमियत नहीं रही।
फेसबुक पर मेरी एक
तस्वीर के नीचे एक फ्रेंड ने कॉमेंट किया कि तुम में अब वो मासूमियत नहीं रही। उसके
लहजे में फर्क था। शिकायत थी। बातों से लग रहा था कि उसके दोस्त का एक अमूल्य गहना खो गया है।
मेरी मासूमियत के खोने से वो मायूस है। उसको मुझमें वो कुछ भी नहीं दिख रहा था, जो
कुछ महीने या साल भर पहले दिखता था।
तब से मैं भी अपनी
मासूमियत को ढूंढ रहा हूं। कई दिन बीत गए हैं। लेकिन अब तक मिली नहीं। कहां चली गई
रूठकर। पता नहीं कब गायब हो गई। शायद कमबख्त वक्त ने उसको कभी नहीं लौटाने के लिए मुझसे
चुरा लिया।
ढूंढ कर लाइए अपनी मासूमियत को,इंसान का सबसे बड़ा गहना है।
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