गुरुवार, 18 जून 2015

मुझे रमदान नहीं मुहर्रम पसंद है।

रमदान का महीना शुरू हो चुका है। मुझे नहीं पता कि मुस्लिमों का सबसे बड़ा पर्व कौन सा है। रमदान। ईद। बकरीद। मुहर्रम। या कोई और। लेकिन इन सब में मुहर्रम मुझे सबसे अच्छ लगता है। 

जब हम बहुत छोटे थे। गांव में रहते थे। तब इन पर्वों के बारे में नहीं जानते थे। रमदान या ईद-बकरीद कब आता था, यकीनन पता नहीं चलता था। कोई मुस्लिम दोस्त भी नहीं था। लिहाजा इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन मुहर्रम के बारे में 15-20 दिन पहले ही पता चल जाता था। या- अली, या-अली बोलते हुए लोग दौड़  लगाते थे। मेरे एक भैया भी ऐसा करते थे। मौसी ने कुछ मन्नत मांगी थी उनके लिए। मुस्लिम लड़कों के साथ वो भी या-अली, या-अली बोलते हुए दौड़ लगाते थे। मजा आता था देखकर। यकीन मानिए बेसब्री से इंतजार करते थे हम मुहर्रम का।

दरअसल मुहर्रम पर तजिया निकाला जाता है। जिसकी तैयारी 15 से 20 दिन पहले शुरू हो जाती है। इसका बकायदा रिहर्सल होता था। ढोल और तासे की गड़गड़ाहट जब गांव के एक कोने में गूंजती थी तो माहौल में एक उत्साह भर जाता था। कई दफा हम देखने के लिए भी जाते थे। और जिस दिन तजिया निकलता था, उस दिन दोपहर के बाद तो पता ही नहीं चलता था कि मुस्लिमों का पर्व है या हिंदुओं। हां एक बात और, हमारे गांव में नवरात्र के दौरान भी ऐसा ही होता है।

तजिया जब मुस्लिम बस्ती से निकलता तो पूरा गांव उत्साह से भर जाता। लाठियां भांजते। नाचते। गाते। तासा पीटते जब मुस्लिम लड़के-बजुर्ग-महिलाएं सड़क पर निकलते तो हर कोई दरवाजे पर खड़ा हो जाता। उन्हें देखने के लिए।

हमारे घर का खलिहान काफी लंबा-चौड़ा है। बजरंगबली का एक मंदिर भी है। उस खलिहान में आधे घंटे से ज्यादा देर तक लोग तजिया लेकर खड़े रहते। लड़के लाठियां भांजते। ढोल-तासे की थाप पर नाचते। उन्हें देखने के लिए भीड़ जमा हो जाती थी। कहां फर्क रह जाता था हिंदू-मुस्लिम में। तारीफ बटोरकर लड़के आगे बढ़ जाते थे। सबसे अच्छा लाठी भांजनेवाला हीरो हो जाता था। बुजुर्ग बाग पूछते की ये किसका बेटा है। कभी-कभी पैसे भी देते थे। हां, ये पैसे देने वाले और नाम पूछने वाले हिंदू होते थे। ब्राह्मण। बहुत अच्छा लगता था जब हमारे घर के अहाते में बैठे बजरंगबली भी ये सबकुछ देखते। मुस्कुराते रहते थे।

हालांकि जब लोगों का बौद्धिक विकास चरम पर पहुंच गया तो सबकुछ खत्म हो गया। पर्व-त्योहार में भी सियासत ने एंट्री मारी। 1996 के बाद सब बंद हो गया। कई सालों तक पता ही नहीं चलता था कि कब मुहर्रम हुआ। कब तजिया निकला। बाद में धीरे-धीरे माहौल सामान्य होने लगा,तब तक मैं गांव से निकल गया था।

अब तो फेसबुक के सौजन्य से पता चलता है मुहर्रम, ईद और रमदान के बारे में। फेसबुक का पैरामीटर बताता है कि रमदान और ईद मुस्लिमों का सबसे बड़ा पर्व है। मुहर्रम के मुकाबले रमदान और ईद में ज्यादा बधाईयां मिलती है। लेकिन यकीन मानिए मुझे आज भी मुस्लिमों का सबसे बड़ा और अच्छा पर्व मुहर्रम ही लगता है। रमदान में किसी मुस्लिम दोस्त के साथ बैठकर इफ्तार खाने के दौरान भी मुझे वो तजिया याद आता है। लाठी भांजनेवाले लड़के और तासे की गड़गड़ाहट।

बुधवार, 17 जून 2015

मानवता पर 'ललित' निबंध

मानवता बड़ी चीज होती है। मानवता मनुष्य का एक स्वभाव है। जिस हर कोई अपने स्तर से प्रकट करता है। मानवता कौन दिखा रहा है। किसके ऊपर दिखा रहा है। यह काफी महत्वपूर्ण होता है। जाहिर है मानवता दिखाने को लेकर भी प्रतिस्पर्धा है।

मानवता का समाजशास्त्र

मानवता के लिए हैसियत बहुत मायने रखता है। बड़े लोग, बड़े लोगों को मानवता दिखाते हैं। छोटे लोग, छोटे लोगों को मानवता दिखा पाते हैं। गरीबों की मानवता की चर्चा कहीं होती ही नहीं। बड़े लोगों की मानवता की चर्चा देश-विदेशों तक होती है। टीवी चैनलों पर बताया जाता है। अखबारों में विश्लेषण किया जाता है। बड़े लोगों की मानवता अमर हो जाती है। 15-20 बरस बाद भी उसे उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है। 

मानवता का अर्थशास्त्र

मानवता का अंकगणितीय महत्व भी काफी होता है। मानवता दिखाते वक्त विशेष ख्याल रखा जाता है कि सामने वाले भी उसी महत्व की मानवता दिखाएं। तरीका अलग हो सकता है। जैसे ट्रेवल वीजा के बदले कॉलेज में दाखिला। या गैरेंटर बनने पर कंपनी में हिस्सेदारी। या फिर देश छोड़कर जाने की इजाजत देने पर स्विस बैंक अकाउंट में कैश डिपोजिट या विदेशी कंपनी में शेयर।

मानवता का राजनीतिशास्त्र

इस तरह की मानवता में चुनाव के वक्त मदद ली जाती है। जिसके बदले नेता, मंत्री सरकार बनने के बाद मानवता दिखाते हैं। जैसे खनन माफिया पर मानवता दिखाकर उसे मनमानी करने से रोकते नहीं है। इसके अलावा कुछ क्षेत्रीय दलों के मुखिया केंद्र सरकार को समर्थन देकर मानवता दिखाते हैं बदले में सरकार उन्हें बड़े घोटालों में सीबीआई जांच से बचाकर मानवता दिखाती है।

मानवता का निष्कर्ष

मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मानवता दिखाते हैं। उन्हें स्थानीय स्तर की मानवता में खास दिलचस्पी नहीं होती है। अगर होती भी है तो उन्हें ही मानवता दिखाते हैं जो बडे-बड़े उद्योगपति टाइप के होते हैं। जो अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाने की माद्दा रखते हैं। बड़े नेता लोग दरअसल मानवता को ग्लोबलाइज्ड करने में भरोसा करते हैं। ताकि हिंदुस्तानी मानवता को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिले। फिर मानवता दिवस मनाएं। योग की तरह।

शुक्रवार, 12 जून 2015

सियासी पार्टियों की नैतिकता कहां है ?

देश की सबसे बड़ी पार्टी की नैतिकता को साहेब ने जूते से रौंदकर चूड़ीदार पैजामे के साथ दीवार पर टांग दिया। इंसाफ की आस में कई दिनों तक लटकी रही। तड़पती-कराहती रही। साहेब अहमदाबाद से दिल्ली आ गए। नैतिकता वहां से निकली तो बहू की चौखट पर लटपटा कर गिर पड़ी। फिर कहां-कहां गिरी खुद पता नहीं। साक्षी-योगी-साध्वी तो फुटबॉल समझकर खेलते रहते हैं। फिलहाल दिल्ली के 15 अशोक रोड में एक कमरे में पड़ी है। शायद कोमा में है।

देश की नई नवेली और सबसे ईमानदार पार्टी से नैतिकता को काफी उम्मीदें थी। लेकिन सरकार बनते ही भ्रम टूट गया। पहले पेड़ पर गमछा से लटका दिया। फिर फर्जीवाड़ा के फांस में फंसा दिया। कई दिनों तक धरने पर बैठी रही। किसी तरह मंत्री से छूटी तो विधायक ने कुत्ते से कटवा दिया। इस वक्त मुख्यमंत्री निवास के गेट पर लहुलूहान पड़ी हुई है।

देश की सबसे पुरानी पार्टी नैतिकता को काफी पहले ही तालाक दे चुकी है। तालाक देने से पहले जमकर कुटाई की थी। शरीर का एक भी अंग सही सलामत नहीं छोड़ा था। मैडम से लेकर अदना विधायक और छुटभैया नेता तक। सबने हाथ साफ किया था। हालांकि कुर्सी जब से छिटकी है उसके बाद से फिर याद आई है। कभी मैडम तो कभी भैया, कभी कभार बहन जी भी हालचाल पूछ लेते हैं। अभी 10 जनपथ में बुला ली गई है। एक छोटे से कमरे में रह रही है। बस सांसे चल रही है।

लोहिया की पार्टी में तो समाजवादी शिरोमणि को नैतिकता कभी पसंद ही नहीं आई। नैतिकता को नेताजी हमेशा हीन भावना से देखते रहे। इसलिए तो उन्होंने भरी सभा में नैतिकता का रेप करवाया। मंत्रियों ने जब चाहा पीटा। गोली मारी। छद्म समाजवाद के एक पुरोधा जो अभी मंत्री भी हैं, उन्होंने नैतिकता को आग में झोंक दिया। जूनियर नेताजी ने भी कह दिया है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। मुख्यमंत्री होकर भी भैयाजी मुंह ताक रहे हैं क्योंकि उनके पापा ने पहले ही बता दिया था हमारे घर में कोई भी आ जाए लेकिन नैतिकता नहीं आनी चाहिए।

नैतिकता को लगा कि दीदी रहम दिल है। उनके घर में मान होगा। औरत भी हैं। दर्द समझेगी। लेकिन उसे क्या पता कि वो गलतफहमी में जी रही है। एक ही घोटाले में नैतिकता को जेल में बंद करवा दिया। नैतिकता इस वक्त जेल में चक्की पीस रही है।

सुशासन बाबू की नैतिकता फिलहाल चारा प्रमुख के घर में गिरवी है। पिछले साल जब केंद्र में उनके दुश्मन की सरकार बनी तो सुशासन बाबू ने अपने सिर से ताज उतारकर नैतिकता को बिठा लिया। नैतिकता अचंभित थी हृदय परिवर्तन देखकर। अब तक जूते के नीचे दबी हुई पड़ी थी। अचानक माथे पर आ गई। लेकिन सुशासन बाबू ज्यादा दिनों तक नैतिकता का भार नहीं बर्दाश्त कर सके। अब तो स्थिति ये है कि अपने घर से भी दूर कर दिया है नैतिकता को।

बुधवार, 3 जून 2015

माय डियर मैगी...आई लव यू !

माय डियर मैगी। आई लव यू। तुमसे बिछड़ने का बहुत दर्द हो रहा है। पता नहीं तुम मेरी जिंदगी में कभी लौटकर आओगी या फिर कॉलेज वाली गर्लफ्रेंड की तरह हमेशा के लिए चली जाओगी। कसम से। जितना प्यार उससे करता था, उससे कहीं भी कम तुम से प्यार नहीं था मुझे। खाने के मामले में बीडीसी यानी भात-दाल-चोखा के बाद सबसे ज्यादा तुम से ही प्यार हुआ। 

यकीन मानो मैं डरपोक नहीं हूं। मैं तुम्हें खा-खाकर कई दिन बिताएं हैं। सही-सही याद नहीं है कि कब पहली बार तुमको देखा था। तुम्हें चखा था। तुमसे कब दोस्ती हुई। कब इश्क हो गया। कब तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गई। लेकिन जब इतनी बंदिशें लग जाए तो कोई क्या करे। सरकार तक पहड़ा देने लगी है।

एक- दो दिन नहीं कई रातें बीती थी तुम्हारे सहारे। जब बहुत थक जाता था तो तुम्हीं साथ देती थी। जब खाना बनाने का मन नहीं होता था तो तुम तैयार रहती थी। जब कभी जल्दबाजी में रहा तो तुमने साथ दिया। पटना में जब तक बैचलर रहा अटूट रिश्ता बन गया था तुम्हारे साथ। दिल्ली आया तो भी प्यार कम नहीं हुआ।

लोग कह रहे हैं कि तुम्हारे भीतर गंदगी है। बीमार करने वाली गंदगी। शायद शीशा की मात्रा ज्यादा बता रहे हैं। मुझे तो सबकुछ फरेब सा लग रहा है। तुम्हें मेरी जिंदगी से दूर करने की साजिश लग रही है। कैसे यकीन कर लूं मैं लोगों की बातों पर। जो मेरे खून में रच-बस गई है। सालों से तो कुछ नहीं हुआ मुझे। फिर कैसे एकाएक कह रहे हैं कि तुम बीमारी हो।

एक बात बताऊं। ये दुनिया बहुत फरेबी है। यहां के लोग झूठे हैं। बीमार हैं। गंदे हैं। इनसे किसी का मोहब्बत बर्दाश्त नहीं होता है। दुकानों से दूर कर दिया। 

एक राज़ की बात बताता हूं। तुम्हें बेइंतहा मोहब्बत करने की बड़ी वजह तुम्हारा कम खर्चीला होना था। तुम फटाफट तैयार भी हो जाती थी। तुम्हारी ये अदा बेहद पंसद थी मुझे। ये बातें किसी और में कहां है। सस्ता।जल्दी। और टिकाऊ वाली।

पता नहीं जांच में क्या निकलेगा। लेकिन दुआ करता हूं कि लोगों के आरोप झूठे हो। तुम बेदाग निकलो। सच्ची मोहब्बत की तरह। अगर सही में तुममें खामियां होगी तो बहुत दर्द होगा। इसलिए नहीं कि तुम मेरी जिंदगी से हमेशा के लिए चली जाओगी। इसलिए कि मैं जिससे इतना प्यार करता था, वो एक बार फिर फरेब निकली। कॉलेज वाली गर्लफ्रेंड की तरह।