मंगलवार, 11 मार्च 2014

मौकापरस्ती की सियासत

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। तारीखें तय हो चुकी है। महासमर के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। तैयारी में कहीं से कोई खोट ना रह जाए, इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी तरह के हथियारों पर शान चढ़ाए जा रहे हैं।

नेताओं का दल बदल जारी है। गठबंधन का टूटना, बिखरना और जुड़ना लगातार जारी है। नैतिकता के नए-नए परिभाषा हर रोज गढ़े जा रहे हैं। हर दिन धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता की नई सीमा बनायी जाती है और फिर उसे सुविधा के मुताबिक तोड़ दी जाती है। अवसरवाद के बाजार में महत्वाकांक्षी नेता अपने इमान, नीयत, सोच, दावे और वादे सरेआम नीलाम कर रहे हैं।

कल तक जो नेता मोदी को हत्यारा, कट्टरवाद, राक्षस, सांप्रदायिक कह कर गरिया रहे थे, आज वो उनके नाम का माला जाप रहे हैं। जो बीजेपी की विचारधारा से ओतप्रोत थे, उन्हें अब इस पार्टी में सांप्रदायिकता की बू आने लगी है। चालीस सालों तक गांधी परिवार के इशारों पर नाचने वाले कांग्रेसी को अब पार्टी में लोकतंत्र का अभाव खटक रहा है। लालू को गाली देकर जेडीयू का दामन थामने वाले फिर से आरजेडी में शामिल हो रहे हैं। तो जिंदगी भर लालटेन में तेल भरने वाले दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक हर राज्य में छोटे बड़े दलों के नेताओं में भागमभाग है। है करनेवाली बात ये है कि इन दल बदलू नेताओं को धड़ल्ले से टिकट भी मिल रहा है।

स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए ये बेहद ही चिंता की बात है। चुनाव की आहट पाकर जो नेता नैतिकता को ताक पर रखकर अपना सियासी सिद्धांत बदल लेता है, वो चुनाव जीतने के बाद जनहित में किए गए अपने दावे और वादे पर अडिग रहे, ये कैसे मुमकिन हो सकता है। जब ये नेता एक अदद टिकट के लिए अपनी पार्टी को भूल जाते हैं। अपने नेता को गरियाने लगते हैं। इन्हें उन जनता को भूलने में कितना वक्त लगेगा।

जाहिर है ऐसे मौकापरस्त नेता सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं ना कि लोगों के बारे में। समाज के विकास के बारे में। इनके लिए चुनाव एक ऐसी परीक्षा है जिसे पास करने के बाद पांच साल तक लूटने का लाइसेंस मिलता है। पावर मिलता है। ताकत मिलती है। लोगों में पूछ बढ़ती है। इसलिए वो इस परीक्षा को पास करने के लिए सारे तिकड़म लगा देते हैं। और जो पार्टी ऐसे पलटीमार नेताओं को टिकट देती है, उसे सिर्फ शीर्ष का सत्ता दिखाई पड़ता है। वो किसी तरह जादुई आंकड़े को छूना चाहती है। चाहे वो हत्या के आरोपी, भ्रष्ट, लूट के आरोपी और दल बदलूओं के दम पर ही क्यों ना पूरा करना पड़े।


लोगों को इस तरह के नेताओं को नकारने की जरूरत है। चाहे वो किसी भी दल के हों। किसी भी बड़े नेता के आशीर्वाद से चुनाव लड़ रहे हों। 

मंगलवार, 4 मार्च 2014

केजरीवाल जी के नाम एक पत्र

हैलो केजरीलवाल जी
सबसे पहले आपको ढेर सारी बधाई कि आप नेता बन गए। आप में सुयोग्य नेता के गुण झलकने लगे हैं। आपके बॉडी लैंग्वेज से। आप की भाषा से। आप की सोच से। आपके कारनामो से। उम्मीद नहीं थी कि सियासत का सबसे बड़ा शस्त्र आप इतनी जल्दी उठा लेंगे। खैर, इतना तो पता था कि आप में पेसेंस की कमी है। वो भी बात जब देश को लेकर हो। सत्ता को लेकर हो।

वैसे अच्छ ही किया आपने। आपका जो मौलिक मुद्दा था भ्रष्टाचार का वो सिर्फ आंदोलन के लिए सही था। भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सिर्फ अनशन कर सकते हैं। लोगों को जेहनी तौर पर जोड़ सकते हैं। वोट नहीं बटोर सकते। खासकर दिल्ली से बाहर। विकास, भ्रष्टाचार तो लिक्वीड और गैस टाइप मुद्दा है। जो जरा सा पानी में घुल जाता है या हवा में उड़ जाता है। रानजीति के लिए ठोस मुद्दा चाहिए। जो दंगा और धर्मनिरपेक्षता है। इसलिए आजकल आप जहां भी जाते हैं वहां दंगा कांड वाचते सुनाई पड़ते हैं।    

वैसे नेता का एक गुण तो आप में शुरू से रहा है। पलटीमार गुण। नेता लोग बहुत जल्दी अपनी कही बात भूल जाते हैं। सुबह में कुछ और शाम में कुछ और।

प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा योद्धा वो माना जाता है जो जितनी आसानी से, जितने अधिक दिनों तक जनता को बेवकूफ बनाकर रखे। इसमें तो सर आप पक्का ग्रैजुएट हैं। पीजी, पीएच की डिग्री लेने में अभी आपको वक्त लगेगा। क्योंकि आपके वंश (राजनीति) में एक से बढ़कर एक महापुरूष पैदा हुए हैं। जिन्होंने सालों क्या दशकों तक लोगों को सफलतापूर्वक बरगलाकर रखा। लेकिन आप भी कम नहीं हैं, जल्द ही इस मामले में आप उन लोगों को पीछे छोड़ देंगे। बानगी तो आप दिखा ही चुके हैं।

एक और बात के लिए आपको शुक्रिया कहना चाहूंगा कि आपने खासलोगों को एक ही झटके में आम बना दिया। मीरा सान्याल, आशुतोष, राजमोहन गांधी सरीखे लोगों को कितनी आसानी से आपने ने लोकसभा चुनाव का टिकट देकर आम आदमी बना दिया। जवाब नहीं है आपका। आपने फर्रूखाबाद में आपने किसी अनजान विक्लांग को टिकट देने का वादा किया था, लेकिन सशरीर तंदरुस्त फेमस आदमी को उम्मीदवार बना दिया।

सुने हैं कि आप भी लोकसभा चुनाव लड़ने वाले हैं। राखी बिड़लान को उम्मदीवार बनाएंगे। बढ़िया हैं। जो अपनी अपनी जुबान पर कायम रहे वो नेता क्या।

जब आपने पार्टी बनाई थी तो सब यही कहते थे कि पार्टी तो बना ली, लेकिन नेताओं वाला कमीनापन कहां से लाओगे। लेकिन आपने अपनी क्षमता का पूरा प्रमाण दिया। आप हुनरमंद हैं। आप जिद्दी हैं। आप जो ठान लेते हैं वो करते हैं। और आप नेताओं के तमाम गुण निरंतरता के साथ सीखते जा रहे हैं। ये शुभ संकेत हैं आपके सियासत के लिए।

आजकल आप नेताओं को चिट्ठी बहुत लिख रहे हैं, इसलिए सोचा मैं भी एक चिट्ठी लिख दूं। मैं इसके प्रत्युत्तर की उम्मीद नहीं करता हूं। क्योंकि जब आपने अपने गुरू अन्ना जी की चिट्ठी का जवाब नहीं दिया तो मुझे क्या खाक जवाब देंगे। खैर, नेता लोग चिट्ठी का जवाब नहीं देते हैं। आंदोलनकारी देते हैं। जो अब आप रहे नहीं।

धन्यबाद

देश का एक आम आदमी (टोपी रहित)