बुधवार, 6 जनवरी 2016

मालदा हिंसा पर चुप्पी क्यों ?

पश्चिम बंगाल के मालदा में जो हुआ वो डरावना है। देश के लिए बेहद खतरनाक है। लेकिन उससे ज्यादा खतरनाक है उस घटना पर लोगों की चुप्पी। किसी को फिक्र नहीं है। न सरकार को। न मीडिया को और नहीं देश के बुद्धिजीवियों को। हर किसी ने चुप्पी साध ली है। जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हुआ भी तो मामूली सा हादसा, जिसको लेकर चर्चा करना बहुत ज्यादा जरूरी नहीं। यही चुप्पी अखर रही है। 

3 महीने पहले मुट्ठीभर भीड़ ने धर्म के नाम पर एक शख्स को पीट-पीटकर मार दिया तो हंगामा खड़ा हो गया था। चिंताओं का सैलाब उमर पड़ा था। पूरे देश की सहिष्णुता को कठघरे में खड़ा कर दिया गया था। लेकिन 3 महीने बाद जब हजारों लोगों की भीड़ ने धर्म के नाम पर थाने को जला दिया। पुलिसवालों के साथ मारपीट की। गाड़ियों में आग लगा दी। हथियार बंद लोगों ने फायरिंग की। बीच सड़क पर घंटों तक तांडव मचाया तो आप चुप हैं। आपकी सोच में यही फर्क अखर रहा है।

उन्मादी भीड़ हिंदुओं का हो या फिर मुसलमानों का। दोनों देश के लिए खतरनाक हैं। दोनों से देश की अखंडता पर खतरा है। दोनों समाज को बांटता है। चाहे कोई भगवान श्रीराम को गाली देता है। या फिर कोई मोम्मद पैगम्बर को। या फिर कोई हिंदू देवी देवताओं की नंगी तस्वीर बनाता है, हर कोई खतरनाक है इस धर्मनिरपेक्ष देश के लिए। लेकिन आप एक के बारे में बोलते हैं। नसीहत देते हैं। लेकिन दूसरे को लेकर कुछ नहीं बोलते। आपके विचारों में ये मिलावट अखर रहा है।

घुसपैठिए आतंकवादियों से ज्यादा ख़तरनाक है बौद्धिक आतंकवाद। मालदा घटना पर ये चुप्पी कहीं न कहीं बौद्धिक आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। हर किसी मुद्दे पर बेबाक टिप्पणी करनेवाले ये बुद्धिजीवी वर्ग एक मोड़ पर आकर क्यों रूक जाता है। देश हित में फेसबुक, ट्विटर पर मुहिम चलानेवाले इन लोगों की अंगुली में लकवा तब क्यों मार देता है जब मालदा जैसी घटनाएं होती है। आपके विचारों में यही अंतर अखर रहा है।

मोहम्मद पैगम्बर के बारे में अपशब्द कहने वाले दो टके के आदमी कमलेश तिवारी को आप उसी तरह सजा दिला सकते थे, जैसे भगवान श्रीराम को गाली देने पर जूनियर ओवैसी को मिली थी। लेकिन धर्म के नाम पर हिंसा करनेवालों को मौन सहमित क्यों? आपकी ये एकतरफ मौन अखर रहा है।
आजादी के बाद से अब तक सिर्फ धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर वोट मांगनेवाले नेताओं से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं है। लेकिन आप तो तटस्थ होकर बोल सकते हैं। लिख सकते हैं। सच को सच कहने की हिम्मत कर सकते हैं। लेकिन आप भी तटस्थ नहीं हो पाते हैं। ऐसा क्यों। सोशल साइट्स पर तो खुलकर विचार रख सकते हैं। लेकिन यहां भी आपके विचार धर्म-जाति के आधार पर बदल जाते हैं। यही बदलाव अखर रहा है। 
किसी व्यक्ति, किसी पार्टी से मतभेद हो सकता है। लेकिन उसके लिए कम से कम आपलोग तो समाज को सूली पर मत टांगिए। अगर मुसलमान गलत कर रहे हैं तो आप उसी तरह बोलिए जैसे हिंदुओं के झुंड के गलत करने पर बोलते हैं। या फिर हिंदुओं की मनमानी पर भी आप उसी तरह बोलने की हिम्मत करिए जैसे मुस्लिमों को लेकर बोलते हैं। तभी ये देश बचेगा। नहीं तो यकीन मानिए बुद्धिजीवी होने का ढोंग करने से, तटस्थ होने का नाटक करने से कुछ नहीं बचेगा।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पठानकोट और मालदा जैसा अब स्वीकार नहीं - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. सही कह रहे हैं आप! कमलेश गिरफ्तार हो चूका है और उसे सजा अदालत देगी तब इतना बड़ा हिंसक आक्रोश उचित नहीं है!

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  3. सही कह रहे हैं आप! कमलेश गिरफ्तार हो चूका है और उसे सजा अदालत देगी तब इतना बड़ा हिंसक आक्रोश उचित नहीं है!

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