शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

जनता फटेहाल...नेता मालामाल

एक झोपड़ी से निकलकर राजनीति के आसमान में झिलमिल सितारों की तरह चमकने वाले लालू यादव हों...या एक गांव के स्कूल में पढ़ाते-पढ़ाते समाजवादी सियासत के शिरोमणि बने मुलायम सिंह या फिर दिल्ली की एक गली से निकलकर लखनऊ के महल में विराजने वाली मायावती हो ...चौटाला...जयललिता...डीके शिवकुमार...या फिर जगनमोहन रेड्डी हों। सियासत में इनकी सफलता की असीमित ऊंचाई तक पहुंचने का सफर जितना दिलचस्प है। उससे कहीं ज्यादा मजेदार है इनकी अकूत संपत्ति के मालिक होने की कहानी। ऐसे एक-दो नहीं पूरे 289 नेताओं की लिस्ट है कोर्ट के पास, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के चंद बरस सियासी कुर्सी पर निवेश किया और प्रॉफिट पूरे 500 परसेंट की हो गई। जनता फटेहाल रह गयी लेकिन देह पर खादी ओढ़ते ही ये नेता मालामाल हो गए। सियासत करते-करते इन्होंने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया कि सुप्रीम कोर्ट तक को पूछना पड़ा कि नेता बनते ही ये लोग कैसे साक्षात लक्ष्मी का पदार्पण हो जाता है इनके घर में ? कैसे कुबेर इनके ऊपर कृपा बरसाने लगते हैं ? कोर्ट  ने कहा कि आय का स्रोत जानने के लिए जांच जरूरी है और यह भी पता लगाना जरूरी है कि प्रॉपर्टी का जो आकलन किया गया है वह कानूनी तौर पर कितना सही है।
बिहार की राजनीति में खुद को रॉबिनहुड कहने वाले लालू यादव को ही देख लीजिए। पूरा परिवार जांच एजेंसियों के चक्रव्यूह में यूं ही नहीं फंसा है। एक बेटे नाम पर पेट्रोल पंप है, दूसरे के नाम मॉल। बेटी के नाम कई कंपनियां तो राबड़ी के नाम हजारों एकड़ ज़मीन। ED से लेकर आईटी और सीबीआई तक रीसर्च में जुटी है, आखिर कमोबेश यही स्थिति यूपी के सबसे बड़े सियासी खानदान की है। समाजवाद का मंत्र जपने वाले मुलायम सिंह की संपत्ति भी सालों से खंगाल रही है सीबीआई। आपके शायद न पता हो लेकिन शुरुआती दिनों में साइकिल की सवारी करने वाले मुलायम के परिवार में कारों की प्रदर्शनी लगी है। भांति-भांति की गाड़ियां हैं। अभी कुछ ही दिन पहले कर्नाटक में कांग्रेस के ट्रॉबुल शूटर डीके शिवकुमार के ठिकानों आयकर के अफसर पहुंचते थे। सियासत को मुनाफे की फैक्ट्री बनाने के चक्कर में लालू यादव, जयललिता, चौटाला, जगनमोहन सरीखे नेता जेल की शोभा बढ़ा चुके हैं। हिमाचल की सत्ता पर काबिज वीरभद्र सिंह की अकूत संपत्ति बनाने की वीरगाथा उस वक्त चर्चा की विषय बन गयी थी, जब उन्होंने बताया था कि सेब उपजाकर उन्होंने अरबों रूपये कमा लिये। जबकि रिपोर्ट बताती है कि खेतों और बागों में काम करने वाले मजदूर और अमीरों के बीच फासला बढ़ता जा रहा है। इसलिए बड़े विद्वान अर्थशास्त्रियों के बीच भी ये शोध का विषय बना हुआ है कि आखिर कैसे नेताओं की संपत्ति 5 सालों में 500 फीसदी बढ़ जाती है ?