शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

जल-प्रलय

जल ही जीवन है। लेकिन तब तक जब तक वो आंखों में रहे। तालाबों में रहे। कुएं में रहे। पाताल में रहे। समुद्र में रहे। जब पानी हद से बाहर निकल जाता है। जब पानी सड़क पर सैलाब बनकर दौड़ने लगता है। जब पानी नाली से निकलर गली में बहने लगता है। जब पानी बाथरूम से इतर बेडरूम तक पहुंच जाता है। ऐसे में प्रलय आ जाता है। जिसे जल-प्रलय कहते हैं। बहुत कुछ बर्बाद हो जाता है। बहुत कुछ खत्म हो जाता है। बहुत कुछ डूब जाता है। डूब जाती हैं ख्वाहिशें। डूब जाती हैं उम्मीदें। डूब जाते हैं सपने। बच जाती है तबाही। बर्बादी के निशान बच जाते हैं।

जल तांडव का शिकार हुआ है एक और शहर। त्रासदी को झेल रहा है एक और शहर। 
अथाह दर्द में डूबा हुआ है एक और शहर। दर्द से कराह है एक और शहर। छाती पीट रहा है एक और शहर। जिसके कोने-कोने में पानी घुसा हुआ है। गली-गली डूबी हुई है। कार पानी में बह रही है। बेडरूम में भी पानी है। किचन में भी पानी है और टॉयलेट में भी। छत को छूने के लिए बेताब है पानी। लोगों को लील लेने के लिए आतुर है ये पानी।लोग कहां जाए। कैसे जान बचाए। लोगों की आंखों की नींद गायब है। पानी का बुलबुला डरा रहा है। बादल की तड़तड़ाहट घबराहट बढ़ा देती है। पता नहीं कब आफत बरसने लगे।  

ये चेन्नई शहर है। चमकते हुए अतीत को सीने में समेटकर खड़ा एक शहर। लेकिन वर्तमान इसके अतीत से ज्यादा डरावना है। चेन्नई के चारों तरफ तबाही लिपटी हुई है। ऐसी तबाही जो लोगों को डरा रही है। वैसे तो कई जल तांडव देखे हैं इस शहर ने। 1969 से लेकर 1998 और 2005 तक की बारिश देखी है इस शहर ने। आसमान से ऐसी आफत कहां बरसी थी उस साल भी। तब ऐसी तबाही कहां आई थी। इस बार जो हो रहा है, वो इस शताब्दी में कभी नहीं हुआ। पिछले 100 सालों में पानी ने कभी ऐसा कहर नहीं बरपाया था। पूरी पीढ़ी ने कभी ऐसी बाढ़ नहीं देखी। ऐसी बर्बादी नहीं देखी थी। चमकता हुए एक शहर पानी में आकंठ डूब गया।

चारों तरफ पानी ही पानी है। घर में पानी। आंगन में पानी। सड़क पर पानी। बस स्टैंड में पानी । रेलवे ट्रैक पर पानी। हवाई अड्डे पर पानी। दफ्तर में पानी। स्कूल में पानी। कॉलेज में पानी। खेतों में पानी। पानी में डूब चुका है सबकुछ। जिंदगी बचाने वाला पानी जिंदगी के लिए सबसे बड़ी परेशानी बन चुका है। विनाशकारी बन चुका है पानी। त्राहि-त्राहि कर रहे हैं लोग। लोगों को कुछ सूझ नहीं रहा है। करें तो करें क्या। खुद बचें या अपनों को बचाएं या फिर दूसरों को सहारा दें। 

क्या बच्चे। क्या महिलाएं। क्या जवान। क्या बुजुर्ग। क्या जिंदगी। क्या सामान। क्या गाड़ी। क्या मकान। किस-किस का हिसाब चाहिए। किसी का नहीं है। कौन कहां है, कुछ पता नहीं। न मोबाइल में बैट्री बची है। न कंप्यूटर चल रहा है। न ही लैंडलाइन काम कर रहा है। किसी का हालचाल जानना भी मुश्किल है। अब सोशल साइट्स के जरिए लोग अपनों को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। किसी का रिश्तेदार व्हाट्स पर मैसेज कर रहे है। तो किसी का रिश्तेदार फेसबुक पर लिखकर अपनों के फंसे होने की बात बता रहा है। कोई ट्वीट कर बता रहा है कि मेरा रिश्तेदार अमूक जगह पर फंसा है, प्लीज बचा लीजिए। बड़ी मेहरबानी होगी।

चारों तरफ बर्बादी बिखरी पड़ी है। आसमान की तरफ लोग निहारते रहते हैं। खाने के पैकेट लिए मुंह ताकते रहते हैं लोग। छतों पर लोग टकटकी लगाए खड़े रहते हैं मदद के लिए। पता नहीं कौन देवदूत बनकर आ जाए। पता नहीं कौन सहारा बनकर मुसीबत की बाढ़ से बाहर निकालने के लिए आ जाए।  

बच्चों को दूध नहीं मिल रहा है। बुजुर्गों को दवाइयां नहीं मिल रही है। हजारों लोग भूखे हैं। कई दिनों से खाना नहीं मिला। कपड़े नहीं हैं। एक-दूसरे को दिलासा देकर जिंदा हैं। एटीएम के अंदर पानी घुसा हुआ है। बंद पड़ी हुई है पैसा निकालने वाली मशीन। लोग क्या करें।  

मौत की कोई मुकम्मल तादाद नहीं है। सिर्फ अनुमान है। करीब 270 लोगों की जिंदगी दस्तावेज बन चुकी है। लगातार लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। तबाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक 20 हज़ार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। जब असल तस्वीर सामने आएगी तो स्थिति और भी भयाहवह होगी। 

सड़क समंदर बन चुका है। सड़कों पर कारें खिलौने की तरह बह रही है। कागज की कश्ती की तरह लोगों  के सामान बह रहे हैं। जिस तरफ देखिए...सिर्फ बर्बाद ही नजर आएगी। जिंदगी बचाने की जद्दोजेहद जारी है।

चेन्नई के डूबते हुए लोगों के लिए सेना अब सहारा बनकर उतरी है। बॉर्डर पर लड़नेवाली सेना कुदरती दुश्मन से दो-दो हाथ कर रही है। लोगों की जिंदगी बचाने के लिए सेना के जवान दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। लोगों को महफूज जगहों पर पहुंचा रहे हैं। सेना के 434 जवान राहत कार्यों में लगे हुए हैं। NDRF की 30 टीमें लोगों की जिंदगी बचाने में जुटी है।  इंडियन एयरफोर्स के C-17 एयरक्राफ्ट से फंसे हुए लोगों को निकाला जा रहा है। नौसेना का जहाज़ INS एरावत भई राहत सामग्री पहुंचा रहा है।

बाढ़ से सरकार भी सन्न है। चेन्नई की बर्बादी की आहट दिल्ली तक पहुंच चुकी है। बैठकों का दौर जारी है। संसद में सवाल-जवाब हो रहे हैं। संवेदनाएं जताई जा रही है। प्रधानमंत्री खुद हालात देख आए हैं। हर संभव मदद का भरोसा दिया है। 

उम्मीद है धीरे-धीरे पानी सूख जाएगा। जिंदगी पटरी पर लौटने लगेगी। लोग फिर से अपनी जिंदगी का तानाबाना बुनने लगेंगे। लेकिन घाव सालों तक हरे रहेंगे। बाढ़ की ये बर्बादी सीने में सूल की तरह चुभता रहेगा। एक सवाल बार-बार कौंधता रहेगा कि एक चमकता हुआ शहर क्यों बर्बाद हो गया। चेन्नई में जल तांडव क्यों हुआ। चेन्नई में क्यों अचानक बाढ़ आई। क्यों बिन बुलाए मुसीबत ने लोगों को बचने का मौका नहीं दिया। आप भी इसके बारे में सोचिएगा जरूर। क्योंकि इस मुसबीत को बुलाने वाले हम और आप ही हैं। इसे देखकर संभल जाइए। नहीं तो अगला शहर आपका भी हो सकता है। न तो हम आपको डरा रहे हैं और न ही नसीहत दे रहे हैं बल्कि असलियत बता रहे हैं।