सोमवार, 8 अगस्त 2016

ये गुस्सा बड़ा सियासी है!

2 दिनों के अंदर प्रधानमंत्री मोदी ने जिस लाचारगी भरे अंदाज़ में अपने गुस्से का इजहार किया, वो कई सवाल खड़े करते हैं। सवाल उठता है कि जो शख्स देश की सबसे ताक़तवर कुर्सी पर बैठा हो, वो ऐसे कैसे बोल सकता है? भक्त जिसकी तुलना शेर से करे वो इतना लाचार कैसे हो सकता है? या फिर संसदीय राजनीति में तालमेल बैठाने के लिए घड़ियाली गुस्से का सहारा लेना जरूरी हो गया है? या फिर दलित पिटाई का मुद्दा हो या फिर तथाकथित गौरक्षा की बात हो, इसमें न्याय-अन्याय और समर्थक-विरोधी के बीच प्रधानमंत्री लकीर नहीं खींच पा रहे हैं? क्योंकि जिस स्वयंभू गौरक्षकों पर बर्बरता के आरोप लग रहे हैं वो कहीं न कहीं भगवा झंडे के नीचे पलते रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ स्वयंभू गौरक्षकों के निशाने पर वही दलित हैं, जो देश के 16.6 फीसदी हैं। दलित जिन 5 राज्यों में सबसे बड़ी तादाद में हैं उनमें से पंजाब और यूपी में अगले बरस चुनाव होना है। तो जाहिर की बीजेपी और मोदी दोनों को दलितों की चिंता दिखानी पड़ेगी। वही हो भी रहा है। क्योंकि अगर प्रधानमंत्री ये कह रहे हैं कि चाहें तो मुझे गोली मार दें, लेकिन दलितों को कुछ मत कहें, तो फिर इसका मतलब क्या है? ऐसा तो नहीं कि दलितों को पीटने वाले भगवाधारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचना  भी चाहते हैं और सीधे तौर पर समझा पाने में भी नाकाम हैं? लिहाजा उनसे कैमरे के सामने अपील कर रहे हैं। लेकिन सवाल यहीं से आगे बढ़ता है कि सत्ता में आने के बाद लोग सिर्फ दिखावे का गुस्सा करते हैं? क्योंकि कमोबेश ऐसी ही स्थिति उस वक्त राहुल गांधी की भी थी, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी। राहुल गांधी को भी गुस्सा बहुत आता था। वो भी इसी तरह कभी महंगाई पर, कभी भ्रष्टाचार पर तो कभी बेटियों से बलात्कार के बाद गुस्से का इजहार करते थे। लोग उनसे भी यही सवाल करते थे कि कांग्रेस के सबसे ताक़तवर नेता को किसी बात पर गुस्सा आता है लेकिन उसकी सरकार रहने के बावजूद वो कार्रवाई नहीं कर पा रहा है तो आखिर क्यों? लोगों को जिस तरह से राहुल गांधी का गुस्सा दिखावा लगता था, ठीक उसी तरह मोदी का गुस्सा भी लोगों को घड़ियाली लग रहा है। सिर्फ नरेंद्र मोदी या फिर राहुल गांधी ही नहीं,  यूपी की सियासत के समाजवादी शिरोमणि मुलायम  सिंह यादव को भी अपने मुख्यमंत्री बेटे पर गुस्सा बहुत आता है। अपने गुंडा कार्यकर्ताओं और विधायकों पर बहुत गुस्सा आता है। लेकिन कार्रवाई सिर्फ उन्हीं के खिलाफ करने की हिम्मत करते हैं, जो उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य की तरफ ऊंगली उठता है। तो क्या ये गुस्सा कहीं संसदीय राजनीति का हथियार तो नहीं है? जिसके जरिये नेता लोगों के दिलों में सहानुभूति पैदा करना चाहते हैं? हालांकि लोग भी अब अच्छी तरह जानते हैं कि बड़े-बड़े नेता कैमरे के सामने गुस्से का इजहार कर सियासत को किस तरह साधते हैं। ये बात मोदी को भी समझना चाहिए और मुलायम को भी। क्योंकि राहुल गांधी के इस गुस्से को 2014 में जनता पूरी तरह से नकार चुकी है। 

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

सुशासन बाबू का शराब कानून

नीतीश जी
सर, गज़ब का शराब वाला कानून बनाया है आपने।  क्या धांसू आइडिया मिला है आपको। किसने दिया ये आइडिया । उस अफसर पर बलिहारी जाने को जी करता है। इस जबरदस्त आइडिया देनेवाले सलाहकार को कोई बड़ा सम्मान जरूर दिलाइएगा सर। मैं तो कहूंगा कि अबकी बार पद्म पुरस्कार के लिए कोई जुगाड़ लगवा दीजिएगा।  

घर में कोई शराब पीये तो सबको जेल। वाह! किसी लड़के के पास शराब मिली तो उसके बूढे-मां को भी जेल। सुना है कि उसकी संपत्ति भी जब्त कर लेंगे आपलोग। और तो और अगर किसी के दरवाजे के आसपास कहीं शराब की बोतल दिखेगी तो भी पूरे परिवार को जेल भेज दीजिएगा आपलोग। गज़ब का कानून है सर। 
अब रात के अंधेरे में कोई किसी के घर के अहाते में शराब की बोतल फेंक जाएगा और फिर पुलिस को बुलाकर पकड़वा देगा। फिर पीसते रहेगा जिंदगीभर जेल की चक्की। आपके मासूम सलाहकार को ये नहीं पता है कि आपके सुशासन में ये फर्जीवाड़ा करना कितना आसान है।

वैसे उनलोगों के लिए ये मस्त आइडिया है, जो अब तक रेप या फिर देहज के केस में दूसरे को फंसा देते थे या फंसाने की धमकी देते थे। इतना चक्कलस की कोई बात नहीं।  दहेज और रेप का काम तो एक बोतल शराब कर देगी। 

वैसे सर आपका वो ताड़ी वाला कानून भी कम नहीं है। आपने गरीबों को लेकर भूल-सुधार की। उनके लिए 'ताड़ीबार' फिर से खोलकर बड़ी मेहरबानी की है। वोट का जुगाड़ बना रहेगा।  
बिहार में आपकी सरकार है। एक तरह से संपूर्ण बहुमत है आपके पास। आप कुछ भी कर सकते हैं। नया शराब वाले कानून को देखकर पूरा यकीन हो गया। एक और काम कर लीजिए। इस महान आइडिया पर रिसर्च की भी व्यवस्था कर दीजिए। इतिहास आपको शराबबंदी से ज्यादा इस महान कानून के लिए याद रखेगी। साथ ही वो आइडिया देने वाला आपका सलाहकार भी अमर हो जाएगा। 

खैर अभी हम गरीब को जरा ताड़ी की मदहोशी से उबरने दीजिए फिर आपके 'मीठा टैक्स' वाले आइडिया का वर्णन करूंगा।

धन्यवाद