बुधवार, 26 दिसंबर 2012

राहुल गांधी कहां हैं ?

23 बरस की लड़की वेंटिलेटर पर है। मौत की जंग लड़ रही है। उसे इंसाफ दिलाने के लिए देश के युवा सड़क लड़ रहे हैं। कई दिनों तक राजपथ पर ठिठुरन भरी ठंड में पानी की बौछारों से नहाते रहे। लाठियां खाते रहे। लेकिन देश के सबसे बड़े युवा नेता का दंभ भरनेवाले गायब हैं। उनका कोई अता पता नहीं है।
      आखिर कहां हैं राहुल गांधी ? प्रदर्शन कर रहे, इंसाफ के बदले लाठी खा रहे युवाओं के सामने अभी तक वो क्यों नहीं आए ?  पांच प्रदर्शनकारियों से सोनिया गांधी की मुलाकात के वक्त वो जरूर 10 जनपथ में मौजूद थे। लेकिन बाहर निकलकर जिस तरह से सोनिया गांधी ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की, वैसी हिम्मत राहुल गांधी क्यों नहीं दिखा पाए ?
       ये सवाल इस लिए अहम है क्योंकि राहुल गांधी युवाओं के ज़रिए ही अपनी राजनीति को मुकाम तक पहुंचाना चाहते हैं। अपने हर संबोधन में, हर भाषण में, हर बयान में युवा की बात करते हैं। कॉलेज दर कॉलेज घूमकर लड़के-लड़कियों से मिलते हैं। उन्हें राजनीति में आने के लिए कहते हैं। युवाओं को एकजुट होने की अपील करते हैं। आज जब युवा एकजुट है। उनकी तरफ देख राह है, तो वो कहां हैं ? जब एक कॉलेज की लड़की से देश की राजधानी में उनके घर से चंद कदम की दूरी पर चलती बस में गैंग रेप हुआ, तो वो मौन हैं। ना तो अफसोस जाहिए किया। ना ही सड़क पर उतरकर कोई कार्रवाई का आश्वासन दिया। ना ही संसद में आवाज उठाई। और ना ही सफदरजंग अस्पताल जाकर उस लड़की का हालचाल जाना।
       वैसे तो राहुल गांधी पर सीधे-सीधे ये आरोप लगते रहे हैं कि राष्ट्रीय मुद्दों पर, या यूं कहें कि उलझे हुए मुद्दों पर वो कुछ नहीं बोलते। मौन साध लेते हैं। इस बार भी सरकार के लिए कम बड़ा संकट नहीं है। पीएम से लेकर गृहमंत्री तक को कोई जवाब नहीं सूझा तो तीन-तीन बेटियों के पिता होने की दुहाई देने लगे। खुद सोनिया को बाहर निकलना पड़ा। वित्त मंत्री रहते हुए अगर पी. चिदंबरम कैबिनेट की बात करने के लिए मीडिया के सामने आते हैं और गैंगरेप मामले पर सफाई देकर चले जाते हैं तो जाहिर है कि सरकार अंदर से घबराई हुई है। और ऐसे मौके पर भी राहुल गांधी, चुप्पी साधे हुए हैं।
      स्वभाविक है राहुल गांधी की इस बार की चुप्पी बड़े सवाल खड़े कर रही है। क्योंकि इस बार बात युवाओं की है। मौत से जूझ रही लड़की के इंसाफ के लिए अगर पूरे देश के युवा साथ है। और खुद को युवाओं का नेता बताना वाला कुछ भी नहीं बोल रहा है तो सवाल उठता है कि आखिर राहुल गांधी किस युवाओं की बात करते हैं। कैसी बात करते हैं। क्या वो अपने भाषण में युवाओं की बात करके सिर्फ उन्हें बरगलाते हैं। सिर्फ वोट बटोरने के लिए युवा-युवा रटते हैं। 

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

बड़े परिवर्तन की ओर देश...


देश सुलग रहा है। माथे में दुपट्टा बांधकर लड़कियां राजपथ और रायसीना हिल्स को नाप रही हैं। महिलाएं चूड़ी और सिंदूर से आगे की सोच रही हैं। विजय चौक पर इज्जत की जीत का झंडा फहराने को बेकरार हैं। कोई एक दो या सौ की संख्या में नहीं। बल्कि हजारों की संख्या में। लाख के करीब।
       अगर इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां सड़क पर डटी हुई हैं। सर्द मौसम में भी पानी की बौछार सह रही हैं। लाठियां खा रही हैं। आंसू गैस के धुएं को चीरती हुई आगे बढ़ रही हैं। बुजुर्ग महिलाएं उनका साथ दे रही हैं। संघर्ष में लड़के उनके पीछे खड़े हैं। तो इसका मतलब है कि देश रूढिवादी विचारधारा को तोड़ बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है।  
        देश के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हो रहा है। जब इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां और महिलाएं सड़क पर हैं। बिना किसी नेतृत्व के। बस, अपनी आवाज हुक्मरान तक पहुंचाना चाहती हैं। अपनी इज्जत की खातिर सोई हुई सरकार को जगाना चाहती है। अपने अधिकार की बात कर रही है। वो सख्त कानून चाहती हैं। इसके लिए कुछ भी करने को तैयार है। पुलिस से दो-दो हाथ कर रही हैं। सरकारी जुल्म सह रही हैं।
          देश में या फिर दिल्ली में कोई पहली बार किसी लड़की से गैंगरेप नहीं हुआ। लेकिन प्रतिकार में जो इसबार हो रहा है, वैसा कभी नहीं हुआ। इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं अपनी आवाज उठाएंगी, सरकार को इसका अंदाजा कतई नहीं था। और शायद यही वजह है कि सरकार ये फैसला नहीं ले पा रही है कि वो करे तो क्या करे।
         किसी भी देश में या समाज में परिवर्तन एकाएक नहीं आता। ऐसे ही आता है। सुलगते-सुलगते,आग शोले बन जाते हैं। यही हो रहा है देशभर में। सालों से सुलगती कुंठा अब फूट पड़ी है। हर रोज, सड़क पर,बाजार में, बस में, ट्रेन में, स्कूल कॉलेज, ऑफिस जाते वक्त। घर के छत पर खड़ी हों तो। ना जाने कहां कहां पीड़ा से गुजरना पड़ता है। यही वजह है कि सड़क पर उतरी हर लड़की, रानी लक्ष्मी बाई बनने को तैयार है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक, दिल्ली, मुंबई से पटना तक। हर शहर में महिलाएं सड़क पर हैं।   
         महिलाएं अब जान चुकी हैं कि अगर हक़ चाहिए, तो खुद सड़क उतरना होगा। गूंगी बहरी सरकार घर में चुल्हे के पास बैठी औरतों की आवाज नहीं सुनती। कॉल सेंटर में या बड़ी-बड़ी मल्टी ब्रांडेड कंपनियों में काम करने से भी सरकार उनकी आवाज नहीं सुनेगी। बस उनके नाम पर राजनीति करेगी। अगर पचास बरस में एक महिला आरक्षण बिल संसद में पास नहीं करा सकीं, तो भला उनकी इज्जात बचाने की खातिर क्या कर सकती हैं। यही वजह है कि बाबा रामदेव और अरविंद केजरीवाल सरीखे लोग जब प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे तो लोगों ने उनका तव्वजों नहीं दिया। 

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गुड बाय मास्टर...

जीवट क्रिकेटर। बेहतरीन बल्लेबाज। क्रिकेटर बनने का प्रेरणास्रोत। सफल दिग्दर्शक। और मृदुभाषी। 22 गज के पिच पर 38 इंच का बल्ला लेकर क्रिकेट को नई पहचान देनेवाले। क्रिकेट के भगवान। मास्टर ब्लास्टर। शतकों के शहंशाह। रिकॉर्ड के बादशाह। रन बनाने की मशीन। यानी सचिन तेंदुलकर। अब नीली जर्सी में मैदान पर नहीं दिखेंगे। सचिन अब वनडे क्रिकेट नहीं खेलेंगे।
23 सालों तक बतौर बल्लेबाज विरोधियों पर भारी पड़ते रहे। गेंदबाजों के सपनों में आते रहे। मैदान पर फिल्डरों का पसीना निकालते रहे। सचिन ने वो किया, जो पहले किसी ने नहीं किया। वन डे क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक। वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन। वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा मैन ऑफ द मैच। वनडे क्रिकेट में पहला दोहरा शतक।  
कभी किसी विवाद से नाम नहीं जुड़ा। ड्रेसिंग रूम से मैदान तक। साथी खिलाड़ियों को सिखाते रहे। लोगों को क्रिकेट देखना सिखाया। टीम की हार हो या जीत। हम सचिन को खेलते हुए देखना चाहते थे। वो फॉर्म में रहे या ना रहे। सचिन को टीम में देखना चाहते थे। विरोधियों को हमेशा बल्ले से जवाब दिया। हर आलोचना का उन्होंने सही वक्त पर सटीक जवाब दिया।
किसी का भी हर दिन एक जैसा नहीं होता। सचिन भी अछूता नहीं रहे। उतार-चढ़ाव लगा रहा। कभी चोट की वजह से। तो कभी बुरे फॉर्म की वजह से। उन्होंने भी बुरे दिन देखे। क्रिकेट के भगवान की आलोचना भी हुई। जिन्होंने उनका खेल देखकर क्रिकेट खेलना सीखा। उसने भी सचिन को संन्यास की सलाह देने लगे। कोई उम्र का हवाला देता। तो कोई कुछ और कहता।   
आखिरकार सचिन ने वही किया। वन क्रिकेट को अलविदा कह दिया। सचिन की तुलना हम किसी से नहीं कर सकते। क्योंकि पूरी शदी में एक ही सचिन पैदा होता है। इसलिए सचिन एक ही रहेगा। सबसे अलग। सबसे जुदा। जब-जब प्वाइंट के ऊपर से चौका लगेगा, मास्टर याद आएंगे। 

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुख्यमंत्री के नाम चिट्ठी


शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री जी,
              नमस्कार, मैं दिल्ली में रहनेवाली एक लड़की हूं। आप मुझे किसी भी नाम से जान सकती हैं। मुन्नी, गुड़िया, रजिया और कुछ और। मुख्यमंत्री जी, कहां से शुरू करूं, समझ में नहीं आता। बातें बहुत सारी है। शिकायतों का पुलिंदा है। जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता। लेकिन बातें कहना भी जरूरी है। इसलिए आज कह रही हूं।

मुख्यमंत्री जी, आपकी दिल्ली में डर लगता है। आपके शहर में रहने का मन नहीं करता। घर से निकलने को जी नहीं चाहता। सड़क पर चलते हुए कलेजा कांपता है। जब सड़क पर अकेली रहती हूं, तो सांसे तेज हो जाती है। अनहोनी की आशंका बनी रहती है। बस में जब बैठती हूं, मेट्रो में जब सफर करती हूं। तो घूरती नज़रों को देखर सहम जाती हूं। बाजार में किसी काम से निकलती हूं तो हमेशा एक ख़ौफ बना रहता है दिल में।

आप दिल्ली को लंदन बना देना चाहती हैं। दिल्ली को आप मेट्रो रेल और पार्कों का शहर बना रही हैं। ऊंचे-ऊंचे फ्लाई ओवर बनवा रही हैं। नई नई बसें। प्रदूषण रहित दिल्ली का सपना दिखा रही हैं। लेकिन चमचमाते शहर का स्याह चेहरा आपको क्यों नहीं दिखता। उस बेनूर, बेरंग और मलीन व्यवस्था की ओर आपकी नजर क्यों नहीं जाती, जो आपकी खूबसूरत दिल्ली पर धब्बा लगा रही है।   

आप मुख्यमंत्री हैं। आप सरकार हैं। कानून बनाती हैं। व्यवस्था बनाती हैं। दिल्ली को चलाती हैं। आप कुछ भी कर सकती। तो फिर इंसान के शक्ल में सड़क पर दौड़ते भेड़ियों को काबू करने के लिए कुछ क्यों नहीं करती हैं। कब तक बेखौफ, बेफिक्र, बेगाम, और बेहिसाब कुछ बदतमीज हमारी बहनों की इज्जत के साथ खेलते रहेंगे। कब तक दरिंदों के साये में हमारी बहने जीने को मजबूर रहेंगी।

आप बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए तरह तरह की योजनाएं चला रही हैं। अगर इज्जत, आबरू सुरक्षित नहीं रही, तो उस लाडली योजना का क्या मायने जो स्कूलों में हमारी बहनों को मिलती हैं। क्या उन बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेवारी आपकी नहीं है।

मुख्यमंत्री जी, नहीं चाहिए मुझे लाडली योजना। नहीं चाहिए ऊंचे-ऊंचे फ्लाइओवर का शहर। पार्कों और मेट्रो के बगैर भी हम जी लेंगे। लेकिन थोड़ी सी शांति और सुरक्षा दे दीजिए।

जानती हूं की राजनीति में जज्बात कोई मायने नहीं रखता। लेकिन आप भी एक औरत हैं। हमारी तरह। जब आप सीएम बनी थी, तो एक उम्मीद जगी थी। लगा था कि आप हमारे दर्द को समझेंगी। दिल्ली में अब दरिंदे बेकाबू नहीं घूमेंगे। लेकिन राजनीति करते-करते आप इतनी बेदर्द हो गई कि आपको हमारी कोई फिक्र ही नहीं रही। आपके राज में साल दर साल बलात्करी बेलगाम होते गए। इंसान के शक्ल में भेड़िये सरेआम सड़क पर घूमने लगे। वहशी दरिंदे हमारी बहनों को नोचते रहे। हैवानों की टोली उनके बेजान जिस्म के साथ खेलती रही। मेरी सैकड़ों बहनों की हंसती खेलती जिंदगी पलभर में नर्क बन गई। और ऐसे पल्ला झाड़ती चली गई, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। आप बड़ी बेबाकी से कह देती हैं कि कानून व्यवस्था आपके हाथ में नहीं है। लेकिन क्या इतनाभर कह देने से आपकी जिम्मेवारी खत्म हो जाती है।

एक या दो घटना हो तो भूल जाऊं। लेकिन आपके राज में हर दिन तकरीबन दो औरतों को इस बेहिसाब पीड़ा से गुजरना पड़ता है। हमारी कई बहने बदनामी की बेइंतहा दर्द लिए गुमान की जिंदगी जी रही हैं। और आप चुप हैं। ऐसा कैसे हो सकता है। आप क्यों नहीं सोचती हैं, इसके बारे में।  
इससे पहले की दर्द दवा बन जाए। आप ही की तरह सब बेदर्द हो जाए। मेरी बातों पर गौर कीजिएगा। कुछ जरूर कीजिएगा।
                              आपके राज में रहनेवाली एक लड़की

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

सड़ी व्यवस्था के शिकार हुए बच्चे

ना तो वे जातिये दंगे के शिकार हुए। ना ही वे साम्प्रदायिक हिंसा में मरे। और ना ही आंतकी घटना में मारे गये। वे मासूम हमारी सड़ी हुई व्यवस्था के शिकार हो गए। वे बच्चे जो मौत का मतलब भी नहीं समझते थे, उनकी जिंदगी दीवारों में दब गई।  
मौत कभी बताकर नहीं आती। अचानक आती है। वहां भी मौत ने चुपके से दस्तक दी। वे बच्चे तो अपनी जिंदगी के सबसे खुशनुमा पलों को जी रहे थे। छह बच्चे एक साथ खेल रहे थे। बच्चों का खेल। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी जिंदगी से खेल होनेवाला है। वे अपने खेल में मशगूल थे। तभी मौत की दीवार गिरी। और बच्चे जिंदा दफ्न हो गए। जब मलबा हटाया गया तो पांच बच्चे दम तोड़ चुके थे। अभी एक बच्चा अस्पताल में मौत से लड़ रहा है।
ये सब कुछ वहां हुआ, जहां देशभर की व्यवस्था बनती है। जहां नियम-कानून बनते हैं। जहां देश के हुक्मरान बैठते हैं। जहां से देश चलता है। नई दिल्ली में।
दिल्ली और उसके आसपास में अक्सर ऐसा होता है। अक्सर बनते-बनते इमारतें ढह जाती है। लोग उसमें दबकर मर जाते हैं। 24 नंबर को फरीदाबाद में फैक्ट्री की बिल्डिंग गिरने से ठेकेदार और मजूदर मर गए। 10 को फिर फरीदाबाद में दीवार के नीचे चार मजदूर जिंदा दफ्न हो गए। 10 दिसंबर को ही दिल्ली में निर्माणाधीन इमारत ढह गई और और चार लोग घायल हो गए। 11 दिसंबर को फरीदाबाद में स्कूल की बिल्डिंग गिर गई और छह लोग मर गए। ये पिछले 20 दिनों का लेखा जोखा है। महीने और साल की फेहरिस्त तो काफी लंबी है।
दरअसल दिल्ली और एनसीआर के इलाके में कहीं भी आप घर बनाना शुरू कीजिए। ईंट और बालू गिरते ही पुलिस पहुंच जाती है। अपनी सलामी लेने। जब तक उनको प्रशन्न नहीं करेंगे, तब तक आप घर नहीं बना सकते। पुलिसवालों को खुश कर दीजिए, उसके बाद जो करना है, करते रहिए।
इसी तरह इमारतें भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी हो जाती है। छोटी-छोटी गलियों में बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी जाती है। जिस तरह मंजूरी और निमय कायदों के लिए घटिया व्यवस्था का सहारा लिया जाता है, उसी तरह इमारत बनाने में भी घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है।
कमोबेश यही चल रहा था न्यू अशोकनगर इलाके में। एक प्लॉट पर चारदीवारी दी जा रही थी। बनते-बनते ही दीवार में दरारें आ चुकी थी। उसके बगल में रहनेवालों ने इसकी शिकीयतें भी की। लेकिन सड़ी हुई व्यवस्था ने शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया। अब जमीन मालिक, ठेकेदार और मजदूरों की मनमानी की कीमत वहां रह रहे लोगों को चुकानी पड़ रही है। किसी का बेटा नहीं रहा। किसी की बेटी नहीं रही। किसी का तो बेटा और बेटी दोनों खत्म।

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

वो कभी मर नहीं सकता


वो किसी इंसान का नाम होता, तो उसके खत्म होते ही सबकुछ खत्म हो गया होता। लेकिन मरते-मरते तक वो एक सोच बन गया था। विचारधारा बन गया था। या यूं कहिए कि वो एक बीमारी बन गया था, जो उसके दीवानों के खून में ऐसी रच बस गई है, जो आदत में शुमार हो गई है।
जब तक जिंदा रहा, तब तक हंगामा। मर गया तो भी हंगामा। जिंदा था तो शहर से पड़ोसी राज्यों के लोगों को भगाने के लिए हंगामा। पड़ोसी देश से क्रिकेट ना होने देने के लिए हंगामा। अब मिट्टी में दफ्न हो गया तो शहर के चौराहे पर मूर्ति लगाने के लिए उसके दीवानों का हंगामा। शिवाजी पार्क में स्मारक बनाने के लिए हंगामा। रसीदी टिकट पर उसका नाम छपवाने के लिए हंगामा।  
जिसने जिंदगीभर नफरत की रजनीति की। कभी भाषा के नाम पर। कभी क्षेत्र के नाम पर। कभी समुदाय के नाम पर। उसने जब चाहा, तब शहर को तहस-नहस करवा दिया। उसने सरेआम संविधान को कागज का चिथड़ा करार दिया। उसका आदर्श हिटलर सरीखे लोग हुआ करता था। वो खुद को खुदा से कम नहीं समझता था। उसने अपनी मर्जी को कानून समझा। लोगों को समझाया। जिंदा था तो जबर्दस्ती करवाता था। मर गया तो उसके दीवाने कर रहे हैं।
उसने अपने दीवानों को नफरत करना सिखाया। धमकी देना सिखाया। जबर्दस्ती करना सिखाया। उसे भगवान समझनेवाले आज वही कर रहे हैं। चंद फूट के स्मारक बनाने की खातिर सरकार से लेकर कानून तक को ठेंगा दिखा रहे हैं।  
जब भी शिवाजी पार्क में भीड़ दिखती है। माथे में भगवा कपड़ा बांधे सड़क पर बेलगाम लड़के दिखते हैं। नफरत और धमकी की राजनीति दिखती है। भाषा और समुदाय के नाम पर मारते लोग दिखते हैं। तो मन में एक ही बात आती है कि वो कभी मर नहीं सकता। वो आज भी जिंदा है। हमारे राजनीतिक ढांचे में। हमारे समाज में। हमारे सिस्टम में। हमारी व्यवस्था में। 

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

बेरहम वक्त के फेर में फंसे धोनी


बेरहम वक्त किसी को नहीं छोड़ता। हर किसी को वो अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देता है। वही लोगों को बनाता है। और वही असल में औकात भी दिखा देता है। वक्त से बड़ा कोई नहीं होता। ये अलग बात है कि लोग खुद से सबसे बड़ा समझने लगते हैं।
समय अगर सही हो तो हर फैसला सही हो जाता है। हर चाल सफल हो जाती है। सफलता कदमो को चूमते फिरती है। कल तक गुमनाम गलियों में भटकनेवाला आसमान में तारों की तरह चमकने लगता है। लोग तारीफ करते नहीं थकते। लोग उसकी सफलता को मेहनत का नतीजा बताते हैं। उसकी काबिलियत कहते हैं।
 लेकिन जब वक्त बुरा होता है, तो हर फैसला गलत होने लगता है। हर चाल भटकने लगती है। सफलता उससे दूर चली जाती है। उसके हर फैसले में, हर चाल में लोगों को गलतियां नज़र आने लगती है। वही शख्स, जो कल तक सबसे बड़ा काबिल था, उसी में खामियां नज़र आने लगती है। अपने भी उसपर सवाल उठाने लगते हैं।
महेन्द्र सिंह धोनी। भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान। जिन्हें कुछ लोग किस्मत किंग भी कहते हैं। वक्त के फेर में फंसे हैं। धोनी के जिस फैसले को, जिस चाल को, क्रिकेट के दिग्गज उनकी काबिलियत का नाम देते नहीं थकते थे, आज वही, धोनी के फैसले पर सवाल उठाने लगे हैं। धोनी से कप्तानी छीनने की बात कह रहे हैं।
 पिछले एक साल से, जो कुछ क्रिकेट के मैदान पर टीम इंडिया के साथ हो रहा है, उसमें धोनी के आलोचक कहीं से गलत भी नहीं लगते। धोनी की हर चाल उल्टी पड़ जाती है। उनके फैसले गलत साबित हो रहे हैं। टीम इंडिया, एक के बाद एक मैच हार रही है। पहले विदेशों में हारकर आई। और अब घर में मिट्टी पलीद हो रही है। टर्निंग पिच का भी पड़ोसी फायदा उठाकर चले जाते हैं । हमारे शेर ढेर हो जाते हैं।
हार के साथ-साथ धोनी के स्वभाव पर भी सवाल उठने लगे हैं। कैप्टन कूल का तमगा देनेवाले, आज उन्हें घमंडी और अक्खड़ कहते फिरते हैं। कैप्टन कूल अचानक लोगों से उलझने लगा। कभी पिच क्यूरेटर से। कभी अंपायर से। नये और युवा खिलाड़ियों को अपने विश्वास में लेकर पहला टी ट्वेंटी का किताब जितानेवाले धोनी का साथी खिलाड़ियों से मन मुटाव की ख़बर आम है।

वाकई, वक्त बेरहम होता है। अगर वो पलभर में जमीन से आसामन में बिठा देता है, तो उसे आसमान से जमीन पर उतारने में भी वक्त नहीं लगता। वक्त का खेल सिर्फ धोनी के संग नहीं। हर किसी के साथ होता है। धोनी चूकी धोनी हैं। इसलिए मीडिया की सुर्खी हैं। वरना इस फेर में हो हर कोई है....

सोमवार, 26 नवंबर 2012

जज्बात और जुनून पर बाजार भारी


प्यार बाज़ार में नहीं मिलता। इज्जत भी बाज़ार में नहीं मिलती। बाज़ार में बंदूकें मिलती हैं। लेकिन इत्तफाक देखिए कि मुहब्बत और इज्ज़त जब आमने-सामने होती है, तो फैसला बंदूकें किया करती है। यानी जज़्बात और जुनून पर बाज़ार कहीं ज़्यादा हावी है। और इसी बाज़ारबाद के आसरे आमिर खान उस सिस्टम को चुनौती देने चले थे, जिसका मुखालफत करनेवाले मुट्ठीभर लोग हैं।
आमिर खान ने देशभर के कुछ प्रेमी जोड़ियों को इकट्ठा कर टीवी शो के जरिए सीधे उन्हें बाजार में खड़ा कर दिया। उनकी हिम्मत को बेचा। टीवी शो को देखकर लोगों ने आमिर से लेकर वहां मौजूद प्रेमी जोड़ियों की हिम्मत की तारीफ की। बाजार की चर्चा से लगने लगा कि वाकई कुछ बदलने वाला है। लेकिन शो खत्म होने के तीन महीने बाद ही आमिर की तमाम थ्योरी फ्लॉप हो गई। आमिर खान ने जिन चुनिन्दा प्रेमी जोड़ियों को अपने टीवी शो में हीरो बनाया था, उन्हीं में से एक लड़के का बुलंदशहर में कत्ल कर दिया गया। इज्ज़त की खातिर अपनों ने ही उसे गोली मार दी।
सवाल उठता है कि क्या इज्जत से बढ़कर बाजार है। क्योंकि जो इज्जत की दुहाई देकर अपनो का कत्ल करते हैं, वे प्यार को बाजारबाद का नतीजा बताते हैं। उनकी नज़र में प्यार वो बाजारू एहसास है, जिसकी कोई इज्जत नहीं होती। ऐसे लोग उस बाजारू अहसास को खत्म करने के लिए बाजार में बिकने वाले चंद रूपये की बंदूक का सहारा लेते हैं।
यानी हर स्थिति में जीत बाजार की है। ये अलग बात है कि इस बाजार में कैंसर की तरह जड़ जमा चुकी बंदूक जैसी प्रॉडक्ट के सामने आमिर खान की लैबरेटरी का प्रॉडक्ट टिक नहीं पाता है।


शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

उम्मीदों की राजनीति


देश की कुछ बड़ी उम्मीदों के ईर्द गिर्द पूरी राजनीति घूम रही है। संसद से सड़क तक उम्मीदों की राजनीति हो रही है । एफडीआई को लेकर बीजेपी संसद में कोहराम मचा रखी है । बीजेपी नियम 184 के तहत वोटिंग कराने की मांग कर रही है। बीजेपी को भरोसा है कि सदन में अगर वोटिंग होगी, तो सरकार का किराना में विदेशी निवेश का सपना चकनाचूर हो जाएगा। सरकार की किरकिरी होगी तो बीजेपी की जीत होगी। बीजेपी उनलोगों के लिए सबसे बड़ा मसीहा बनकर उभरेगी, जिन्हें लगता है कि एफडीआई से उनकी नौकरी पर खतरा है। लेकिन पूरी सरकार को एफडीआई से ही उम्मीद है। प्रधानमंत्री को विश्वास है कि एफडीआई से अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी। लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। भ्रष्टाचार और महंगाई से काली हो चुकी छवि थोड़ी साफ होगी। इसलिए अपनी-अपनी उम्मीदों को लेकर दोनों बड़े दल अड़े हुए हैं।
 उम्मीदों की एक और बड़ी राजनीति बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं। नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। गांधी मैदान के बाद अब वो लोगों को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान जाने की तैयारी में हैं। नीतीश कुमार को लगता है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा, तो राज्य के विकास की रफ्तार, राजधानी एक्सप्रेस से कहीं ज्यादा तेज़ हो जाएगी। विशेष राज्य के दर्जा मिलने से वो सबकुछ हासिल कर लेंगे, जो बिहार के लोग सपने में सोचते हैं।
देश में संपूर्ण परिवर्तन के लिए लड़ रहे अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल सरीखे लोगों को  है कि लोकपाल के आसरे देश से भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं । उनको लगता है कि जन लोकपाल बन जाने से सरकारी दफ्तरों में घुसखोरी बंद हो जाएगी । छोटे-बड़े घोटाले नहीं होंगे । इसके लिए टीम अन्ना आंदोलन कर रही है तो टीम केजरीवाल चुनाव चिह्न के साथ चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस चुकी है।
बाबा रामदेव को यकीन है कि विदेशों में जमा काला धन अगर वापस अपने देश में लाया जाएगा तो महंगाई और गरीबी दोनों खत्म  जाएगी । इसके लिए बाबा, बार-बार सरकार पर हमला बोलते हैं। सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए देशभर की यात्रा कर चुके हैं। दो बार में रामलीला मैदान में भी लिलाएं दिखा चुके है
ये कुछ बड़ी उम्मीदें हैं। जो सबसे ज्यादा चर्चा में है। यकीनन उम्मीद बड़े काम की चीज है। उम्मीद न होती, तो हम और आप न होते। कोई काम नहीं होता। उम्मीद न होती तो राजनीति न होती। उम्मीद न होती, तो मैं ये चिट्ठा न लिखता। इसलिए उम्मीद है कि आप इसे पढ़कर जरूर कॉमेंट करेंगे । 

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

इंदिरा - ‘द आयरन लेडी’


इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी । यानी इंदिरा गांधी। कभी हार नहीं माननेवाली गांधी । दुश्मनों को धूल चटानेवाली गांधी । भारत को परमाणु संपन्न देश बनानेवाली गांधी । दुनिया को भारत की ताक़त का अहसास करानेवाली गांधी । अमेरिका को आर्थिक चुनौती देनेवाली गांधी । खालिस्तान राष्ट्र की मांग करनेवाले देशद्रोहियों को मटियामेट करनेवाली गांधी । पाकिस्तान को नाक रगड़वानेवाली गांधी । विश्व के मानचित्र पर बंग्लादेश बनवाने वाली गांधी । दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के सब से बड़े दुश्मन के रूप में विश्व विख्यात वीर, साहसी और सच्चे राष्ट्रभक्त गांधी । राजनीति में हार कर भी जीतनेवाली गांधी । आमलोगों से मिलने के लिए ट्रैक्टर, हाथी और नाव की सवारी करनेवाली गांधी । एक असाधारण हिम्मतवाली महिला । आयरन लेडी । जिसे राजनैतिक दुश्मनों ने भी कभी दुर्गा कहा तो कभी सच्चा राष्ट्रभक्त । जिसके बारे मे किसी ने कहा है कि उनका नाम देश के महानतम प्रधानमंत्रियों में शामिल किया जाएगा । क्योंकि वो बेहद शाहसी और राष्ट्रीय हितों के प्रति समर्पित थी । राष्ट्र निर्माता के रूप में उनसे ऊपर सिर्फ उनके पिता थे । 

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

नेताजी का इंटरव्यू


नमस्कार....अभी हमारे साथ मौज़ूद हैं हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता, जो घोटालों की मंडी में वीबीएस के नाम से मशहूर हैं । नेताजी ने घोटाले को नया आयाम दिया है । इन्होंने पेड़ पर पैसा उगाकर नई तकनीक इजाद की है। आजकल धमकी-माफी को लेकर काफी चर्चा में है । नेताजी से हम कई मुद्दों पर बात करेंगे । नेताजी आपका बहुत बहुत स्वागत है.....
नेताजी- जी धन्यवाद
पहला सवाल- नेताजी, कैमारा देखते ही आपका पारा सातवें आसमान पर क्यों चढ़ जाता है । कुछ दिन पहले आपने एक कैमरामैन को कैमरा तोड़ देने की धमकी दी ।
नेताजी- देखिए, आप पत्रकार कुछ समझते नहीं है । कब क्या पूछना चाहिए, किस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए इसको लेकर कतई गंभीर नहीं हैं । खासकर ये टीवी मीडिया वाले तो और ज्यादा । निकलते हैं चुनावी सभा करने और प्रश्न पूछने लगते हैं कि घोटाला कैसे किया । कब किया । क्यो किया । आजकल हम वैसे ही बहुत टेंशन में हैं । अब उम्र भी ज्यादा हो चुकी है । पांच बरस पहले हाथ से गई कुर्सी वापस पाने की जुगाड़ में लगे हैं । दिन रात हिसाब किताब में लगे रहते हैं । ऊपर से ये लोग कैमरा चमकाने आ जाते हैं । स्वभाविक है गुस्सा तो आएगा ही।  
दूसरा सवाल- नेताजी, आपने नई तकनीक इजाद की है...पेड़ पर पैसा उगाया है, क्या कुछ बताएंगे इसके बारे में....ये कैसे संभव हो पाया...
नेताजी- आप भी वही सवाल लेकर बैठ गए। आप लोग समझने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं। पेड़ पर पैसा उगाने का टेक्निक हम सरेआम कैसे बता सकते हैं। हमारे सहयोगी सब जमीन में उगाते हैं हम पेड़ पर उगा लिये । इसमें कौन सा अनर्थ हो गया ।
सवाल- अगर आप तकनीक के बारे में बता देते तो देश के महा अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी का भी ज्ञान वर्धन होगा, जो कहते हैं कि पैसा पेड़ पर नहीं उगता ।
नेताजी- अरे भाई, सब पता है उनको ।
सवाल- तो फिर उन्होंने अपने भाषण में क्यों कहा कि पैसा पेड़ पर नहीं उगते...
नेताजी- देखिए, वो अपना भाषण खुद तैयार तो करते नहीं । दूसरा जो लिखकर दे देता है, वो उसे पढ़ देते हैं । उनकी हिन्दी कमजोर हैं । वो खुद नहीं समझते हैं कि क्या पढ़े हैं । बाद में जब मीडिया में हल्ला होने लगता है तब वो दूसरों से पूछते हैं कि मैंने क्या कहा ।
सवाल- सुने हैं कि आपने इंकम टैक्स में घपला किया है..
नेताजी- सब बकवास है,,,,ऐसा कुछ भी नहीं है...मेरे ऊपर लगे सारे आरोप निराधार हैं....अब आपका समय समाप्त हुआ...अब जा सकते हैं....धन्यवाद....
जी, धन्यवाद..... 

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

गडकरी, आरोप और इस्तीफा


    जमीन के जंजाल से उबरे भी नहीं थे कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी कंपनी में फर्जीवाड़े के आरोप में कटघरे में हैं । टाइम्स ऑफ इंडिया की माने तो गडकरी ने अपनी कंपनी में चपरासी, ड्राइवर, बेकर से लेकर ज्योतिषी तक को डायरेक्टर बना दिया है । वाड्रा, वीरभद्र और खुर्शीद को लेकर फजीहत झेल रही कांग्रेस को भी हल्ला बोलने का मौका मिल गया है । इधर पार्टी के भीतर से भी गडकरी को लेकर सवाल उठने लगे हैं । संघ ने भी पल्ला झाड़ लिया है । ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नितिन गडकरी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ।
     देशभर में भ्रष्टाचार को लेकर कंग्रेस की किचकिच हो रही है । एक के बाद एक यूपीए के मंत्री पर घोटालों के आरोप लग रहे हैं । बीजेपी भ्रष्टाचार और महंगाई को हथियार बनाकर यूपीए सरकार पर वार कर रही है । ऐसे में अगर नितिन गडकरी अपने ऊपर लगे आरोप गलत साबित होने तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हैं  या  फिर दोबारा अध्यक्ष बनने  से इनकार करते हैं तो इससे न सिर्फ बीजेपी का बल्कि गडकरी का भी साख बढ़ेगा । पार्टी को कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार के जरिए वार करने में और मजबूती मिलेगी ।
       जिस तरह से कांग्रेस के नेता और मंत्री पुख्ता आरोपों के बावजूद न तो अपनी कुर्सी छोड़ रहे हैं और न ही जांच के लिए तैयार हैं, ऐसे में गडकरी के इस्तीफे से बीजेपी के नेता और आसानी से कांग्रेस पर वार कर सकते हैं । बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी  के इस फैसले का गुजरात और हिमाचल प्रदेश में होनेवाले चुनाव के अलावा 2014 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिल सकता है ।
      गडकरी इस्तीफा देकर न सिर्फ विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं, बल्कि पार्टी के भीतर जो विरोधी हैं उनका मुंह भी बंद कर सकते हैं । क्योंकि पिछले कुछ दिनों से पार्टी के भीतर से भी गडकरी को लेकर सवाल उठने लगे हैं । रामजेठ मलानी ने तो बकायदा इस्तीफे की मांग कर दी है ।  
      बीजेपी को भी इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए । अगर गडकरी इस्तीफा नहीं देते हैं तो आखिर बीजेपी किस मुंह से कांग्रेस नेताओं से इस्तीफा मांगेगी । क्या दलील देकर कांग्रेस नेताओं की जांच की मांग करेगी । क्योंकि इस्तीफा देने से पार्टी के पास विरोधियों और मीडिया को देने के लिए जवाब होगा । अगर नितिन गडकरी अब भी आरोपो को चिल्लर बताते रहेंगे तो आगामी चुनाव में जब पार्टी चिल्लर बनकर सामने आएगी, तो न ही गडकरी के पास जवाब होगा और न ही बीजेपी के पास । 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

बड़े लोग...बड़ी बात


अरे भाई, सुने हैं कि मंत्री जी के ट्रस्ट से उन लोगों को भी सामान मिला है...जिनकी मौत कई बरस पहले हो चुकी है....कई के बारे में तो ये भी सुना है कि पैर में बीमारी है और कान की मशीन मिल गई....मंत्री जी कभी क्षेत्र में घूमने नहीं जाते हैं क्या....
अरे भाई साब, आप भी ग़ज़बे बात करते हैं.... क्षेत्र में घूमने के लिए लोग मंत्री बनता है का....उनका फेस देखा है आपने... सेब की तरह लाल है... बड़े-बड़े लोगों के साथ उठक-बइठक करते हैं... गोरी गोरी मेम साब सब से मिलना होता है.... बताइए तो... अगर क्षेत्र में घूमेंगे....तो फेस काला नहीं पड़ जाएगा....बीमारो हो सकते हैं न.....स्टेटस का ख्याल रखना पड़ता है ...इसलिए कोई बड़ा नेता क्षेत्र में नहीं घूमता है.....वैसे टाइमो तो नहिये न मिलता है... देखिए न....कानून मंत्री हैं...साथ में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय भी है.... देश भर के बारे में उन्हें सोचना है....फिर पार्टी के बारे में.....मैडम का टीटीएम करने में टाइम लगता है....फिर विलायत जाकर बड़का यूनिवर्सिटी में पढ़ाते भी न हैं....
अच्छा, तो इसीलिए केजरीवाल को अंग्रेजी में ऐसी गाली दिए कि बहुत लोगों समझ में भी नहीं आया....
हां भाई साब, बड़े लोग की इहे तो खासियत होती है...गाली में भी स्टैंडर्ड खोजता है.....अइसन वइसन गाली तो नेता सब की आम भाषा हो गई है....ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने और पढ़ाने का इहे सब तो फायदा है....कि गाली भी सुर्खी बन जाती है....
सुने हैं कि प्रेस कांफ्रेंस के लिए पत्रकारों को घर पर बुलाये थे.....लेकिन एक टीवी चैनल वाले पर बहुत गुस्सा गये.....
खिसियाते नहीं तो क्या करते....ऊ बार-बार उनको डिस्टर्ब कर रहा था...पहले तो मंत्रीजी के खिलाफ स्टोरी चला दी....और फिर उन्हीं के घर जाकर सबूत दिखाने लगा...अरे भाई सबूत है तो रखिए न.....जाने दीजिए...अइसन एगो दूगो सबूत है सरकार के पास....हजारो है.....लेकिन कभी निकालती है क्या....वो भी सरेआम...कैमरा...टीवी....मीडिया के सामने....
जो भी हो, लेकिन मंत्री होकर लहू से होली खेलने वाली बात नहीं कहनी चाहिए.....
क्या करते भाई साब ऊ भी.....अरे ऊ भी आदमिये हैं...उसमें भी नेता हैं....देखिए बात ई है कि इस बार के आरोप में स्याही और कलम से बरी नहीं सकते...तो अंतिम उपाय तो करना ही पड़ेगा न....दो दिन पहिलेहे बोले थे कि मैडम के लिए जान दे देंगे....जो दूसरों के लिए जान देगा ऊ अपने लिए ले नहीं सकता है का....वैसे भी नेता..मंत्री के लिए.....लहू....होली....जिंदगी...मौत....घोटाला...आरोप.. समझ गए न....
हां भाई सब समझ गए भाई....बड़े लोग....बड़ी बात...

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

सलमान खुर्शीद से सवाल

 महज 71 लाख के घोटाले के आरोप में सलमान खुर्शीद टूट जाएंगे ये उम्मीद नहीं थी । लेकिन खुर्शीद साहब टूटकर बिखर गए । विरोधियों को आरोप का जवाब इस अंदाज़ में देने लगे जैसे वो कानून मंत्री नहीं बल्कि पढ़े लिखे हिस्ट्री शीटर हों । अपनी खिसियाहट में कानून मंत्रालय की गरिमा को भी चकनाचूर कर दिया । मर्यादा की दीवार को लांघकर गुंडों की तरह खून बहाने की धमकी देने लगे । अब वो पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहते हैं कि  पत्रकार उनसे सवाल पूछने का हक खो दिया । अब कानून मंत्री खुर्शीद साहब ही बताएंगे कि आईपीसी की किस धारा में किसी मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट चलाने पर पत्रकार को उससे सवाल पूछने का हक़ समाप्त हो जाता है । 
 केजरीवाल ने जब इस्तीफे की मांग की तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ानेवाले खुर्शीद साहब उन्हें 'गटर स्नाइफ' बता दिया । विदेशी गाली । लेकिन हद तो तब हो गई जब केजरीवाल ने फार्रूखाबद जाकर खुर्शीद का विरोध करने की बात कही तो वो किताबों के काले अक्षर और कलम को छोड़कर खून बहाने की बात करने लगे । अब तीस बरस से राजनीति कर रहे सलमान खुर्शीद ही बेहतर बता सकते हैं कि मंत्री से इस्तीफा मांगने पर कोई कैसे गटर का कीड़ा हो जाता है ।   किसी सांसद के संसदीय क्षेत्र में जाकर विरोध करने पर आईपीसी की किस धारा के तहत खून बहाने की इजाजत है । या फिर कोई जनप्रतिनिधि जब खुलेआम किसी को जान से मारने की धमकी देता है, तो उस के पर कौन सी धारा लगती है ।
डॉक्टर जाकिर हुसैन ट्रस्ट के जरिए फर्जीवाड़ा की ख़बर  टीवी चैनल पर दिखाये जाने के कई दिनों के बाद जब खुर्शीद साहब मीडिया के सामने आए तो अपने गांव से एक गवाह को भी पकड़ लाये थे । कांपती आवाजों में जब गवाह ने माननीय मंत्री के हां में हां मिलाया, तो देश का कानून मंत्री इस कदर उछल पड़ा, जैसे गरीबी खत्म करने के लिए कितन बड़ा कानून बना दिये हों । ये अलग बात है कि पत्रकारों का जवाब देते- देते मंत्री महोदय को दस गिलास पानी पीना पड़ा । फिर भी एक चैनल के पत्रकार को एक ही सवाल पूछने की इजाजात दी ।
     इंदिरा गांधी के समय राजनीति की शुरुआत करनेवाले खुर्शीद साहब वाणिज्य मंत्रालय से अल्पसंख्यक मंत्रालय और कानून मंत्रालय तक को देख चुके हैं । सलमान खुर्शीद पूर्व केन्द्रीय मंत्री खुर्शीद आलम खान के बेटे हैं । पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन के नाती हैं ।  दुनिया के गिने चुने यूनिवर्सिटी में सुमार ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़कर अब वहां के बच्चों को तालिम भी देते हैं ।  देश के वरिष्ठ वकीलों में खुर्शीद साहब को जाना जाता है । वो राइटर भी हैं । लेकिन हैरान करने वाला सवाल ये है कि इतने अलंकारों से जड़ित खुर्शीद साहब महज एक आरोप पर कैसे बौद्धिक रूप से नंगे हो गए ।  

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

आम सूचना (बिहार की जनता के लिए...)

एतद् द्वारा सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि मुख्यमंत्री महोदय अधिकार यात्रा पर हैं । जिसमें वो राज्य को केन्द्र से मिलनेवाले अधिकार की बात कर रहे हैं । वो काफी गंभीर मुद्दे को लेकर राज्यभ्रमण पर हैं । आप उनकी सभा में अपने अधिकार की बात पूछ कर भाषण में खलल न डालें । अधिकार यात्रा के दौरान किसी भी मुद्दे को लेकर विरोध जतानेवाले असमाजिक तत्व घोषित कर दिए जाएंगे ।
  अधिकार यात्रा में विकास पुरूष की बात सुनने के लिए भारी से भारी संख्या में पधारें । लेकिन ध्यान रहे कि सभा में चप्पल जूता पहनकर आना सख्त मना है । काले कपड़े के साथ काले व्यक्ति भी सभा में प्रतिबंधित है । क्योंकि जिस काले चश्मे से मुख्यमंत्री महोदय पूरे राज्य में विकास देख रहे हैं, उसके काले वस्तु से सख्त नफरत है । अत: आप सभा में पहुंचने से पहले या तो केस कटवा लें या फिर माथे पर तौलिया रख लें ।
 मुख्यमंत्री की सभा में किसी प्रकार का विरोध-प्रदर्शन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । अगर साल 2005 के बाद बिहार सरकार की नौकरी मिली है, तो आपको सख्त हिदायत है कि आप सभा से दूर ही रहें । अगर सभा में पहुंचते हैं तो सिर्फ अपने नौकरीदाता का जयघोष करें । अधिकार यात्रा में अधिकार का गलत अर्थ समझकर अपने अधिकार की बात कतई न करें । नहीं तो गर्दन पर हाथ रखकर सभा स्थल से फेंकवा दिया जाएगा । आपका कचूमर निकाल दिया जाएगा । नौकरी छीन ली जाएगी ।  
 हमारे मुख्यमंत्री महोदय विकास पसंद इंसान हैं । वो सकारत्मक सोच के हैं । इसीलिए आप भी अपनी सोच बदलें । हर समय भ्रष्टाचार, घुसखोरी, कानून व्यवस्था पर बात न करें । समय की नजाकत को समझा करें । अगर आपसे इंदिरा आवास के लिए मुखिया ने घूस मांगा । अगर कोटे पर राशन समय और सही मात्रा में नहीं मिल रहा है । अगर बीडीओ घूस मांग रहा है । अगर थानेदार परेशान कर रहा है । अगर वेतन को लेकर कोई समस्या है । अभी इसे भूल जाइए । अभी आप सिर्फ मुख्यमंत्री महोदय के हां में हां मिलाइये । क्योंकि विशेष राज्य के दर्जे का सवाल है । अधिकार का सवाल है । आपकी समस्यों को पटना के जनता दरबार में सुनी जा सकती है ।  
उम्मीद है कि आप सभी को मेरी बात समझ में आ गई होगी । आप सभी उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखेंगे और शासन प्रशासन को दंडात्मक कार्रवाई करने पर विवश नहीं करेंगे ।
                                   भवदीय  

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

फ्रंट फुट पर बीजेपी


बिहार में बीजेपी और जदयू गठबंधन की गांठ ढिली होने लगी है । इस बार चोट भारतीय जनता पार्टी ने मारी है । पिछले सात बरस में पहली बार भारतीय जनता पार्टी फ्रंट फुट पर खेल रही है और जनता दल यूनाइटेड के नेता ऑफेंसिव हैं । पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने के संकेत दिए तो उसके ठीक बाद बीजेपी के एक सांसद ने राज्य सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठा दिया । और अब नरेन्द्र मोदी को पटना बुलाने की तैयारी है ।
याद कीजिए, जब नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी की तस्वीर प्रचार के तौर पर अखबार के आखिरी पन्ने पर छपी थी, तो नीतीश कुमार ने भोज स्थगित कर दिया था । जदयू के नेता गठबंधन तोड़ने की बात कहते फिर रहे थे और बीजेपी नेताओं के पास जवाब नहीं था । बिहार विधान सभा में नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार करने को लेकर जदयू ने दो टूक कह दिया था कि अगर चुनाव साथ लड़ना है तो मोदी को प्रचार नहीं करने देंगे । जब प्रधानमंत्री के तौर पर एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का नाम तय करने की बात हुई, तब भी जदयू धमकाता रहा । देश के बेहतर सीएम को लेकर हुई जुबानी जंग में नीतीश कुमार से लेकर जदूय के अदना नेता तक बीजेपी के सबसे सफल सीएम पर ऊंगली उठाते रहे । और राष्ट्रपति चुनाव में तो बकायदा ठेंगा ही दिखा दिया । लेकिन बीजेपी आलाकमान हमेशा अफेंसिव मूड में रहा । हालांकि ये बात प्रदेश बीजेपी के कुछ नेताओं को अखरता जरूर था । वो सरकार में मंत्री रहते हुए भी सवाल-जवाब करते रहे लेकिन आलाकमान के दबाव में चुप्पी साध लेते थे ।
 लेकिन कहते हैं कि सही वक्त पर सही चाल चलना ही असल राजनीति की पहचान होती है । और बीजेपी ने यही किया ।  बीजेपी नेताओं की ओर से तमाम बयान उस वक्त आ रहे हैं, जब बतौर सीएम नीतीश कुमार सबसे मुश्किल दौर में हैं । विकास पुरूष के नाम से मशहूर नीतीश कुमार की ऐसी किचकिच कभी नहीं हुई थी ।  प्रदेशभर में नीतीश कुमार का विरोध हो रहा है । और यात्रा के दौरान विरोध के जवाब में नीतीश कुमार का खिसियानी बयान, उनका गुस्सा, पार्टी  गले की हड्डी बन गई है । इतना ही नहीं , नीतीश की यात्रा के जवाब में लालू भी यात्रा पर हैं । वो सरकार की पोल पट्टी खोल रहे हैं ।  और इसी मौके का फायदा उठाकर बीजेपी ने चोट मारी है । लगे हाथ हुंकार रैली का भी एलान कर दिया है ।
 और इस सब के बीच अगर पूर्णिया के बीजेपी सांसद उदय सिंह भ्रष्टाचार के जरिए सरकार पर सवाल उठाते हैं । रैली करते हैं । टीवी चैनल पर सरकार के खिलाफ बोलते हैं और सरकार में शामिल बीजेपी अपने सदस्य से किसी तरह का सवाल जवाब नहीं करती है तो इसका सीधा मतलब निकाला जा सकता है कि कहीं न कहीं इसे आलाकमान से मौन सहमति है । यानी यानी जिस भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस को बीजेपी घेर रही है, उसे वो बिहार में भी जिंदा रखना चाहती है, ताकि समय आने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके । जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ना पड़े तो भ्रष्टाचार के तीर से ही सरकार पर वार किया जा सके ।  

शनिवार, 22 सितंबर 2012

आओ सरकार-सरकार खेलें....


आओ सरकार-सरकार खेलते हैं । एक गठबंधन बनाते हैं । मैं तुम्हें समर्थन दूंगा । तुम मुझे सहयोग करना । प्रधानमंत्री तुम्हारी पार्टी से । गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री भी तुम अपनी पार्टी के नेता को बना लो । मुझे कोई मंत्रालय नहीं चाहिए । लेकिन हमारी पार्टी गठबंधन में रहेगी । हम बाहर से समर्थन करेंगे ।

तुम जब चाहो, जिस विभाग में चाहो घोटाला करना । जब मर्जी हो, किसी भी चीज की कीमत अपने हिसाब से बढ़ा लेना । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है । लेकिन चूकि हमारी पार्टी गरीब, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पार्टी है, इसलिए हम रौल बैक की मांग करेंगे । समर्थन वापसी की धमकी भी देंगे । तुम्हारे खिलाफ मीडिया में बोलेंगे । नारे लगाएंगे । प्रदर्शन करेंगे । यहां तक कि तुम्हारी पार्टी और मंत्री को गरियाऐंगे भी । लेकिन तुम घबराना मत । हम समर्थन वापस नहीं लेंगे । अगर कोई दूसरी पार्टी समर्थन वापस लेती है तो भी हम सरकार गिरने नहीं देंगे । चाहे जैसे भी हो । सहयोग देकर समर्थन लेना पड़े तो भी ।

 लेकिन इसके बदले तुम मुझे विकास फंड के नाम पर मोटी रकम दे देना । इसमें कटौती बिल्कुल नहीं । क्योंकि मुझे भी राज्य का, अपने मंत्रिमंडल का और नेताओं का विकास करना है । हां, केन्द्र प्रायोजित कुछ योजनाएं भी  विशेष रूप से मेरे राज्य में चलती रहना चाहिए । मिल बांटकर काम करेंगे । सरकार चलती रहेगी । 

राज्य में मेरी सरकार है । वहां तुम्हारी समर्थन की जरूरत नहीं है । लेकिन सहयोग जरूर करते रहना । अगर किसी घोटाले को लेकर सीबीआई जांच की मांग हो, कोई दंगा वगैरह हो तो तुम अपने हिसाब से संभाल लेना ।

घोटाला मिल बांटकर करेंगे । विपक्ष अगर ज्यादा हो हल्ला करे तो एक जांच आयोग बना देना । लेकिन ख्याल रहे कि जब तक मैं ज़िंदा रहूं तब तक आयोग की रिपोर्ट नहीं आनी चाहिए । इसके लिए तुम आयोग का कार्यकाल बढ़ाते रहना ।

एक बात और । चूकि हम चुनाव अलग-अलग लड़ते हैं । आगे भी अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगे । इसलिए सार्वजनिक तौर पर तुम्हारे हर मुद्दे का हम विरोध करेंगे । लेकिन अंतिम में समर्थन हम तुम्हारी सरकार का ही करेंगे ।

कभी-कभी ऐसा मौका भी आएगा, जब लगेगा कि मैं विपक्ष के साथ जा रहा हूं । मीडिया ज्यादा ज़ोर देगी । लोगों को दिखाने के लिए कुछ ऐसा बयान मुझे देना पड़ेगा, जो तुम्हें अच्छा नहीं लग सकता है । लेकिन इसे दिल से मत लगाना । क्योंकि वो सारी बातें सिर्फ मीडिया के लिए होगी । आम जनता को दिखाने के लिए होगी ।

हां एक बात और सुनो । अगर दाम बढ़ाने को लेकर हालात ज्यादा बिगड़ने लगे तो एक आध रूपये 
जरूर घटा देना । तुम भी जनता की हक़ की बात कहकर वाहवाही लूटना । और मैं लोगों को बताऊंगा कि  मेरे दबाव में दाम घटाया गया है ।

मेरे खिलाफ सीबीआई में जितने भी केस हैं, उसकी फाइल बंद रहनी चाहिए । मुमकिन हो तो तमाम मामलों में मुझे बड़ी कर दिया जाए । या फिर जांच की रफ्तार धीमी कर दी जाए ।
तुम मेरी इन बातों का ध्यान रखना । 

हम सरकार-सरकार खेलते  हुए पांच साल यूं ही गुजार देंगे । और फिर चुनाव की घोषणा के बाद गठबंधन तोड़ देंगे । 

बुधवार, 5 सितंबर 2012

उच्च सदन में निम्नता


      शर्म करूं या गुस्सा। समझ में नहीं आता। देश की सबसे बड़ी पंचायत में जो कुछ भी हो रहा था, वो लोकतंत्र के इतिहास में काले अक्षरों में लिखता जा रहा था। सदन की गरिमा लुट रही थी। गणतंत्र की जननी कलंकित हो रही थी। लोकतंत्र का चीरहरण हो रहा था। धृतराष्ट्र की तरह हमसब देख और सुन रहे थे। बेबस। लाचार। चाहकर भी हम कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि हममें से कुछ पार्टी के गुलाम हैं, कुछ जाति तो कुछ मजहब के गुलाम हैं। और गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा इंसान सोचता तो बहुत है लेकिन कुछ करता नहीं। और इसी स्थिति में कमोबेश हम सब थे।
    ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। महज एक बरस पहले इसी उच्च सदन में राजनीति प्रसाद ने लोकपाल बिल फाड़कर जो तुच्छ राजनीति की थी, उसे संसद कभी भूल नहीं सकता। निचले सदन में भी कई बार ये निम्न काम हो चुके हैं। राज्यों की पंचायतों में भी मननीय कई बार चारित्रीक रूप से नंगे हो चुके हैं। कश्मीर से कर्नाटक तक और बिहार से यूपी और महाराष्ट्र तक सदन के भीतर हमारे माननीय दो दो हाथ कर चुके हैं। 
    दरअसल सदन में विरोध का स्वरूप बदल गया है। वैचारिक शून्यता में भटक रहे राजनैतिक दल बहस करने से कतराते हैं। ऐसे में विरोध के लिए हंगामा,तोड़फोड़ और हाथापाई हथियार बन चुका है। प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर भी सदन में यही हुआ। बहस के बजाय दो माननीय दो-दो हाथ करके फैसला करने पर उतर आये।
     बता दें कि पैसे देकर सदन पहुंचे इनमें से एक माननीय कुछ दिन पहले तक बहन जी के साथ थे तो इस बिल का समर्थन कर रहे थे। लेकिन यूपी चुनाव के दौरान पार्टी बदल ली। सोच और निष्ठा बदल गई। अब किसी भी कीमत पर प्रमोशन में रिजर्वेशन का विरोध कर रहे हैं। राज्यसभा में जैसे ही बिल पेश हुआ, पहलवान ब्रांड के मोटे कदकाठी वाले नेताजी को बर्दाश्त नहीं हुआ। बेल की ओर बढ़ गये । लेकिन कई महीनों से खुन्नस खाये बहनजी के दूसरे भाई सरदार जी ने ताक़त दिखाई। उन्हें रोकने की कोशिश की। तो धक्का मार दिया । और फिर देखते ही देखते दोनों माननीय बेपर्दा हो गए ।
    दो माननियों की लड़ाई में जीत किसकी हुई, ये समझ में नहीं आया। लेकिन हारनेवालों में बहुत कोई हैं । हम, आप और सबसे ज्यादा निसहाय लोकतंत्र । 

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

हम कौन हैं

(पाकिस्तान से भारत पहुंची समझौता एक्सप्रैस रेलगाड़ी से पाकिस्तानी 12 हिंदू परिवारों के करीब 32 सदस्य अपने वतन को सदा के लिए अलविदा कहकर भारत पहुंचे... )

  हम कौन हैं । किसके हैं । कहां के हैं । क्या हैं । खुद का पता ढूंढ रहे हैं । पता ढूंढूते-ढूंढ़ते शरहद पार पहुंच चुके हैं । चूकि भारी तदाद में हैं । इसलिए हम हैं । लेकिन सवाल वही, कि आखिर हम कौन हैं ।
   जहां जन्म लिया । जहां पला -बढ़ा । बड़ा हुआ । जहां कि मिट्टी को मां की तरह पूजा । वहीं दुत्कार मिल रही है । इज़्जत के साथ खिलवाड़ हो रहा है । धर्म, जाति से लेकर अस्तित्व तक पर बन आई है । जबरन धर्म बदल दिया जाता है । पता नहीं कब बेटी बुरके में शौहर के साथ घर लौटे । खूबसूरती की कीमत चुकानी पड़ती है हमारी बेटियों को । पता नहीं कब मनीषा, मुमताज बन जाए । कब बेटा सुनील के शमशाद बनने की ख़बर मिले । पता नहीं कब कुछ वहशी दीवारों को तोड़कर बेछत कर जाए । 
      कौमी झंडा बनानेवाले अमीरूद्दीन किदवई पर गुस्सा आ रहा है । क्या सोचकर उन्होंने झंडे में हरे के साथ सफेद रंग डाला था । कि बहुसंख्यक के नीचे अल्पसंख्यक फलेत-फुलते रहेंगे । खिलखिलाएंगे । लेकिन उनके अनुयायियों ने तो सफेद का दूसरा मतलब ही समझ  बैठा । मुल्क से अल्पसंख्यक को साफ करने पर तुले हैं। डर डर के जी रहे हैं । या यूं कहें कि मर मर के जी रहे हैं ।
    पूरे देश में कभी हम लाखों में थे । अब महज हजारों में हैं । दुनियाभर में मानव अधिकार की दुहाई देनेवाले यहां मौन हैं । आंखों पर पट्टी बंधी हुई है । हमारे दर्द पर किसी की नज़र नहीं पड़ती । हमारे लिए किसी सम्मेलन में बहस नहीं होती । हमारी पीड़ा कभी आवाज नहीं बनती । हम राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल नहीं होते । चौराहों पर रजानीति हंगामे में हमारी बात नहीं होती । देश के लीडरान भरोसा देने में जुटे हैं । और उनके अपने बेघर करने में लगे हैं ।
 मुल्क में अत्याचार है । प्रांत पार जाने पर भी दुत्कार है ।  शक भरी नज़रों से देखा जाता है । माथे पर शरणार्थी का ठप्पा लगा दिया जाता है । महज कुछ महीनों का मेहमान बनकर रहते हैं । हमारे सपने बिना मिट्टी के दफन हो जाते हैं । हम किसी के नहीं बन पाते हैं ।  हम कहां जाएं । क्या करें । आखिर हम भी इंसान हैं ।