शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

गुजरात चुनाव के टर्निंग प्वॉइंट

 सरदार की खोज में गुजरात ने इस बार सारे रंग देख लिए । विकास भी पागल हुआ। पाकिस्तान की भी एंट्री हुई। किसी ने हाफिज का जिक्र किया तो किसी ने ISI का। एक बार जब जुबान खुली और मर्यादा गिरी तो गिरती चली गई। खिलजी और तुग़लक से होते हुए बात बाबर, अकबर और औरंगजेब तक पहुंची। नीची होती गई सियासत नीचता की हद को पार कर गई। लेकिन उस गोधरा का कहीं भी जिक्र नहीं हुआ, जिसके ईर्द-गिर्द पिछले 3 चुनाव लड़े गए। भटकते मुद्दे और बदजुबानी के तूफान में आकर अटकलें पेंडुलम की तरह डोलने लगी। गौर फरमाइए ज़रा उन टर्निंग प्वाइंट पर जहां से गुजरात चुनाव का रूख बदलता हुआ दिखा।

राहुल का हिंदूवादी अवतार

गुजरात चुनाव का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट था ये। पहली बार राहुल गांधी का ये रूप देखा लोगों ने। राहुल का यूं हिंदूवादी अवतार में अवतरित होना चौंकाने वाला था। ललाट पर त्रिपुंड चंदन और गले में रूद्राक्ष की मालाधारण कर मंदिर-मंदिर घूमते दिखे ।  यहां तक कि कांग्रेस ने वकायदा जेनऊधारी ब्राह्मण घोषित कर दिया राहुल गांधी को। राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व का झंडा उठाकर मुस्लिम तुष्टिकरण वाली छवि को ध्वस्त करने की कोशिश की। राहुल गांधी के हिंदूवादी अवतार ने बीजेपी के ध्रुवीकरण की राजनीति को डिरेल करने की कोशिश की। यहां तक कि मोदी से ज्यादा मंदिर जाकर खुद को बड़ा हिंदूवादी घोषित करने की कोशिश की।

राहुल का ये अवतार चौंकाने वाला था। लेकिन एग्जिट पोल के संकेत बता रहे हैं कि राहुल गांधी का हिंदूवादी बन जाना काम नहीं आया।  गुजरात का चुनाव का दूसरा टर्निंग प्वॉइंट था

मोदी का गुजराती अस्मिता कार्ड

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी। इसकी बड़ी वजह ये थी कि 2002 के बाद पहला ऐसा चुनाव था, जिसमें मोदी गुजरात छोड़कर दिल्ली शिफ्ट कर गए थे। बीजेपी के पास मुख्यमंत्री का वैसा चेहरा नहीं था, जैसा मोदी का था। मोदी जैसा कद, पद और चेहरे से जूझ रही बीजेपी का खेवनहार बनकर आए और अपने कंधों पर पूरा बोझ उठाया। यहां तक कि चुनाव को आखिर-आखिर तक गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया। चूकि गुजरात में मोदी से बड़ा कोई दूसरा नेता नहीं है। गुजरात अस्मिता की बात कर मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, ऐसे में मोदी की भावुक अपील ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया।

मोदी बार-बार खुद को गुजरात का बेटा कहकर लोगों से इमोशनली जुड़ने की कोशिश की। प्रधानमंत्री का यूं अपने गृहराज्य में खुलकर उतरना बड़ी बात थी। इसका फायदा भी मिलता हुआ दिख राह है बीजपी को।  गुजरात चुनाव का तीसरा टर्निंग प्वॉइंट था

हार्दिक पटेल की एंट्री

गुजरात चुनाव में पहली बार इस तरह से बीजेपी और कांग्रेस से अलग किसी जातीय नेता का उभार हुआ। पटीदार नेता के तौर पर हार्दिक की एंट्री हुई। हालांकि इसके पीछे बीजेपी सरकार की अपनी गलतियां थी। जिस तरह से पटेल आंदोलन से निपटने में बीजेपी सरकार चूकी, हार्दिक पर देशद्रोह का मुकदमा हुआ, फायरिंग में 14 लोगों की मौत हुई, उसने हार्दिक को बड़ा नेता बना दिया।

सियासी मौके की तलाश में खड़े हार्दिक ने राहुल गांधी का हाथ थाम लिया। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने दिल खोलकर पटेलों को टिकट दिया ।पटेल के साथ जिग्नेश और अल्पेश भी खुलकर सामने आए। 


लेकिन जो एग्जिट पोल बता रहे हैं उसके मुताबिक ये भी कुछ ज्यादा काम नहीं आया।पटेलों को वोट बंट गए। हार्दिक को जो उम्मीदें थी, वो होती नहीं दिख रही है। वहीं इस सब के बीच आखिरी वक्त में एक और टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ। वे थे

सिब्बल, अय्यर और पाकिस्तान
अयोध्या मसले पर कपिल सिब्बल का सुप्रीम कोर्ट में 2019 तक मंदिर न बनाने की दलील को बीजेपी ने लपक लिया। तो वहीं मणिशंकर अय्यर के पीएम को नीच कहना भी कांग्रेस भारी पड़ा। मोदी ने इस नीच शब्द को अपनी जाति से जोड़कर जबरदस्त इमोशनल कार्ड खेला। वहीं आखिरी में जिस तरह से कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने पाकिस्तानी राजनयिकों के साथ गुप्त बैठक की, उसे भी बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बना दिया

स्थिति ये हुई कि चुनाव प्रचार के आखिरी 5 दिनों तक कांग्रेस सिर्फ इन्हीं तीन मुद्दों पर सफाई देती रह गई। बीजेपी ने दूसरे फेज में इसका जमकर फायदा उठाया। लेकिन इस सब के बीच याद कीजिए तो गुजरात चुनाव से पहला और सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट था वो राज्यसभा का चुनाव जिसमें अहमद पटेल मैदान में थे। इस चुनाव का पटेल और अमित शाह दोनों ने प्रतिष्ठा का चुनाव बना दिया था। कांग्रेस टूट गई। विधायक छिटक गए। लेकिन कांग्रेस के अंदर यहीं, इसी जीत से आत्मविश्वास जगा। कई गुटों में बंटी पार्टी एकजुट हुई। वहीं सूबे में चेहरे की कमी को राहुल गांधी ने भरा। यहीं से बीजेपी ने भी खुद को दुरुस्त किया।

तमाम टीवी चैनलों के एग्जिट पोल बताते हैं कि कांग्रेस की तमाम मशक्कत यहां भी काम नहीं आई। कांग्रेस को पिछले चुनाव से फायदा जरूर मिलता हुआ दिखा,  लेकिन बीजेपी को हराने में काम नहीं आती दिख रही है कांग्रेस। कुल मिलाकर ये तमाम वे टर्निंग प्वॉइंट थे, जहां से गुजरकर गुजरात का चुनाव एक तरफा होता दिख रहा है। 

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