गुरुवार, 27 अगस्त 2015

इंद्राणी मुखर्जी के नाम एक चिट्ठी

 इंद्राणी मुखर्जी जी,
          झूठ और फरेब के धागों से रिश्तों का गजब जाल बुना है आपने। यकीन मानिए, सुडोको और रिजनिंग के अच्छे-अच्छे स्टूडेंट भी आपके रिश्ते सुलझाने में फेल हो जाएंगे। जैसे-जैसे आपके रिश्तों के बारे में खुलासे हो रहे हैं, सुनकर दंग हूं। आपके पति। आपके बच्चे। आपकी शादी के बारे में सुनकर हैरानी होती है। हालांकि मैं जानता हूं कि ये मेरी नासमझी है। आप इसे मेरे लोअर मिडिल क्लास फैमिली की गंवार सोच कह सकती हैं। 

अब धीरे-धीरे समझ में आ रहा है कि मिडिल क्लास फैमिली क्यों आगे नहीं बढ़ पाती है। दरअसल वे लोग रिश्ता निभाने में ही अपनी पूरी जिंदगी खत्म कर लेते हैं। कितने बेवकूफ टाइप के लोग होते हैं ये भी। बेटा-बेटी, पति-पत्नी, प्यार-मोहब्बत, भाई-बहन के चक्कर में अपनी तरक्की को कुर्बान कर देते हैं। आपको देखिए। कितनी आसानी से आपने अमीर बनने के लिए रिश्तों का मतलब अपने तरीके से बनाया और आगे बढ़ती चली गईं। पैसे और पहचान के लिए आपने कितनी आसानी से पति बदल लिए। एक, दो नहीं तीन-तीन। बेटी की हत्या करने में भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। सुन रहा हूं कि बेटे को भी मार देना चाहती थीं आप। ये मीडिल क्लास के लोग मां की ममता, बच्चों का दुलार, पति-पत्नी के प्यार वगैरह-वगैरह में ही उलझ कर रह जाते हैं। बैकवॉर्ड सोच वाले सब।

एलीट क्लास होने का मतलब, इसकी परिभाषा आपने बड़े ही गजब अंदाज में गढ़ी है। कितनी आसानी से आपने कपड़ों की तरह पति बदल लिये। किसी को भनक तक नहीं लगी और आपने बेटे और बेटी को भाई-बहन बना लिया। यहां तक कि आपके पतियों को भी पता नहीं चला। हंसी आती है पीटर मुखर्जी के ऊपर। खुद को मीडिया किंग कहते हैं। कितनी आसानी से आपने उन्हें बेवकूफ बना दिया। लेकिन उससे ज्यादा आपकी हिम्मत, आपके रहस्य का कायल हो गया हूं। बहुत बड़ा लिक्खड़ नहीं हूं, वरना आपके ऊपर उपन्यास लिखता। आपके लिए भारत सरकार से सबसे रहस्यमयी महिला का सम्मान मांगता। 

पेज थ्री जिंदगी भी गजब की जिंदगी होती है। कितना कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि आपको पीड़ा नहीं हुई होगी। समझ सकता हूं। दर्द तो आपको भी बहुत हुआ होगा। लेकिन अय्याशी के इतने मजे हैं जिसमें ये छोटे-मोटे हादसे कोई मायने नहीं रखते। ऐसा सुनते थे। लेकिन आपको देखकर महसूस भी हो रहा है।

कहीं सुन रहा था कि राहुल मुखर्जी से रिश्तों की वजह से आप शीना से नाराज थीं। लेकिन ये बात मुझे पच नहीं रहा है। क्योंकि जितना अब तक आपके बारे में पता चला है, उससे इतना तो साफ है कि आपकी सोसायटी में ये सब कोई मायने नहीं रखता है। क्या फर्क पड़ता है कि दोनों तथाकथित भाई-बहन शादी कर रहे थे। खैर, जब आपके पति नहीं आपको समझ सके तो दुनिया क्या खाक समझेगी।

अंत में एक बात और। जिस तरह से मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिय खुद इस केस में इंटरेस्ट ले रहे हैं। इससे साफ है कि आपको कुछ साल जेल में बिताना पड़ेगा। शायद जिंदगी भर। आरुषि मर्डर केस की वजह से थोड़ा यकीन के कह साथ कह सकता हूं। खैर। आप घबराइयागा मत। आप जेल में बैठे-बैठे एक किताब जरूर लिखिएगा। अतिमहत्वाकांक्षा के शीर्ष पर पहुंचने के सूत्र टाइप का। मुझे यकीन है कि अतिमहत्वाकांक्षी लोग आपकी किताब जरूर पढ़ेंगे। किताब बिकेगी। आप और अमीर बन जाएंगी। आप और फेमस हो जाएंगी। जो आप चाहती थी। जो आप चाहती हैं।
शुक्रिया !


(एक मिडिल क्लास टीवी दर्शक)

बुधवार, 26 अगस्त 2015

केजरीवाल का 'नीतीश प्रेम'

प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखने वाले केजरीवाल बिहार में नीतीश कुमार का समर्थन कर वही गलती कर रहे हैं, जो नीतीश कुमार ने लालू यादव से गठबंधन कर की है। क्योंकि केजरीवाल जिस सियासी लकीर पर चलने का दावा करते हैं, उसे नीतीश कुमार ने कभी फॉलो ही नहीं किया। केजरीवाल जिस नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए दुआ कर रहे हैं, उनके साथ घोटाले का सजायाफ्ता लालू यादव भी हैं और कांग्रेस भी। यानी केजरीवाल अपनी यूएसपी से समझौता कर रहे हैं। ऐसे में केजरीवाल जिस रास्ते चल पड़े हैं, उसमें हर डेग पर एक सवाल उनसे पूछे जाएंगे। 

क्या नीतीश कुमार का समर्थन कर केजरीवाल जातिवादी राजनीति का समर्थन कर रहे हैंक्या केजरीवाल को बाहुबली नेताओं से कोई आपत्ति नहीं है ? क्या नीतीश कुमार के साथ-साथ केजरीवाल अब लालू यादव का भी समर्थन कर रहे हैं ? और सबसे अहम सवाल ये कि जिस कांग्रेस नीति के खिलाफ केजरीवाल की पार्टी खड़ी हुई, क्या अब वो सत्ता की खातिर उसी कांग्रेस के लिए प्रचार भी करेंगे ? क्योंकि बिहार में कांग्रेस भी नीतीश कुमार का अहम सहयोगी दल है।  

ये सवाल बीजेपी भी पूछेगी और इसका जवाब वे लोग भी जानना चाहेंगे जिन्होंने केजरीवाल के आसरे एक नई सियासत की उम्मीद देखी थी। जिन्होंने जातिवाद, क्षेत्रवाद, पार्टीवाद सरीखे तमाम वादों से ऊपर उठकर दिल्ली में केजरीवाल का समर्थन किया था। समर्थन करनेवालों में बड़ी तादाद उन बिहारियों की भी है, जिन्हें नीतीश कुमार पसंद नहीं है। जाहिर है, भविष्य में केजरीवाल के लिए ये मुश्किलें पैदा करेगी।

ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ये बातें नहीं जानते होंगे। सियासत के खिलाड़ी बन चुके केजरीवाल दरअसल 2019 की तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि वो खुद को राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के विकल्प के तौर पर तैयार करना चाहते हैं। वो जानते हैं कि ये उनके अपने बूते संभव नहीं है। जाहिर है, इसके लिए उन्हें क्षत्रपों का सहारा चाहिए। ताकि वो मोदी को बराबरी का टक्कर दे सकें। खुद को सर्वमान्य नेता बनाने की पहल 12 अगस्त को ही शुरू कर दी थी जब वो शरद पवार के घर उस बैठक में पहुंचे थे, जिसमें कांग्रेस को छोड़कर तमाम विपक्षी पार्टियां मसलन, एनसीपी, टीएमसी, एसपी, जेडीयू, आरजेडी के नुमाइंदे शामिल थे।

केजरीवाल उन तमाम नेताओं से संपर्क में हैं, जो निकट भविष्य में मोदी के करीब नहीं आना चाहेंगे। और जो भविष्य में केजरीवाल की मदद भी कर सके। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दोनों ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो मोदी से सीधे-सीधे टकरा भी रहे हैं और टक्कर भी दे रहे हैं।

फिलहाल बिहार में विधानसभा चुनाव है। लिहाजा केजरीवाल, नीतीश का समर्थन कर भविष्य का रास्ता साफ कर रहे हैं। तो नीतीश कुमार, केजरीवाल की साफ छवि के आसरे वोटरों को अपनी ओर खींचना चाहते हैं।


यानी नीतीश कुमार अगर निकट का फायदा देख रहे हैं तो केजरीवाल भविष्य का। हिसाब दोनों तरफ से लगाए जा रहा है। फायदा दोनों तरफ से देखा जा रहा है। लेकिन असली बाजीगर कौन होगा ये देखने के लिए थोड़ा इंतजार कीजिए।  

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

गुजरात का 'केजरीवाल'


तो क्या दूसरा केजरीवाल अब गुजरात में पैदा हो गया है। ये सवाल इसलिए क्योंकि 22 बरस के हार्दिक पटेल ने जिस अंदाज में सरकार को ललकारा है। जिस तरह से हार्दिक पटेल के एक आह्वान पर 8 लाख लोग जुट गए। लोग हार्दिक-हार्दिक के नारे लगाने लगे।  तकरीबन पौने घंटे तक लोग हार्दिक पटेल को सुनते रहे। इससे तो यही संकेत दिख रहे हैं।

बेहद ही साधारण अंदाज में हार्दिक पटेल बहुत कुछ कह गए। उन्होंने जता दिया कि आने वाले समय में वो सरकार के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करनेवाले हैं। केजरीवाल की खींची लकीर पर वो आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। और उनके पीछे बहुत बड़ी भीड़ भी खड़ी है। हार्दिक पटेल 12 जिलों में अब तक 100 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं।  चतुरता के साथ पटेल समुदाय के भीतर की चिंगारी को उन्होंने शोलों में बदल दिया।

केजरीवाल की तरह ही हार्दिक पटेल रैली और उपवास का सहारा ले रहे हैं। मीडिया को अपनी ओर खींचने में कामयाब भी दिख रहे हैं। पौने घंटे तक न्यूज चैनल के कैमरे उनपर टिके रहे। ये जानते हुए भी कि उनकी मांगें बहुत मजबूत नहीं है, वे अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। क्योंकि केजरीवाल की तीरह उनके पीछे भी नौजवान खड़े हैं। हार्दिक पटेल के निशाने पर भी सीधे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हैं।

आर्थिक रूप से संपन्न पटेल समुदाय अगर 4 फिसदी आरक्षण के लिए इतनी बड़ी तादाद में है। एक लड़के के पीछे खड़ा है तो ये छोटी बात नहीं है। जिस रणनीति के तहत हार्दिक पटेल उभरकर सामने आए हैं, उससे साफ है कि उनके पीछे बहुत बड़ी लॉबी है। कॉमर्स ग्रैजुएट हार्दिक पटेल के लिए रणनीति बनाने वालों में रिटार्यड अफसर खड़े हैं। कुछ नेता खड़े हैं। जाहिर है, ये आग आसानी से बुझने वाली नहीं है।

गुजरात की आनंदीबेन सरकार भले ही हार्दिक पटेल की मांग को नकार रही हो। भले ही पटेल समुदाय को आर्थिक रूप से मजबूत बता कर मांग मानने से इनकार कर रही हो। भले ही वो हार्दिक पटेल को तबज्जो नहीं दे रहीं हो। भले ही समिति बनाकर हार्दिक पटेल की मांग को टाल रही हो। लेकिन अहमदाबाद की रैली के बाद बीजेपी के थिंक टैंक को इस पर सोचने की जरूरत पड़ेगी। हार्दिक पटेल की ये भीड़ मोदी को भी परेशान कर रही होगी।

गुजरात में 27 फिसदी पटेल समुदाय के लोग हैं। 129 विधायकों में 44 विधायक पटेल हैं। पटेल समुदाय मजबूती के साथ बीजेपी के साथ खड़ी रही है। जाति समीकरण में उलझी सियासत में विकास के राग के बावजूद धीरे-धीरे ब्राह्मण नेताओं को किनारे कर पटेल नेताओं को तवज्जो दी गई। गुजरात सरकार में मुख्यमंत्रीआनंदीबेन पटेल से कर नितिन पटेल और सौरभ पटेल सरीखे आधा दर्जन मंत्री इसी समुदाय से हैं।

अगर इसी तरह हार्दिक पटेल आगे बढ़ते रहे। अपने आरक्षण के मुद्दे में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार सरीखे कुछ और मुद्दों को जोड़ लिया तो दिल्ली जैसे बदलाव अगर गुजरात में भी हो जाए तो अचंभा नहीं होगा।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

राधे मां के नाम एक चिट्ठी

परम श्रद्धेय राधे मां जी।

आपने धर्म और धर्मगुरु की जो नई परिभाषा गढ़ी है इसके लिए बहुत शुक्रिया। आपका नया-नया अवतार देखकर प्रशन्नता होती है। मन उत्साह से भर जाता है। हंसी आनेलगती है उन महामुनियों पर जो कई दशकों तक पहाड़ के किसी कोने में बैठकर, बाल-दाढ़ी बढ़ाए हुए। पागल की तरह तपस्या करते थे। तब जाकर कहीं भगवान का दर्शन हो पाता था। लेकिन आपने तो मायानगरी मुंबई में बैठकर सुक्ष्म वस्त्रों में चंद महीनों के भीतर मां दुर्गा को अपने भीतर समाहित कर लिया। मां बन गईं। देवी बन गईं। अद्भुत है।

छोटे-छोटे कपड़ों में जब आप फोटो शूट करवाती हैं। उसे भक्तों में बांटती हैं। जब नाचते-नाचते आप किसी भक्त की गोद में बैठ जाती हैं। जब आप किसी पुरूष भक्त के साथ बांह में बांह डालकर डांस करने लगती हैं तो यकीन मानिए कई बार जी चाहता है कि मैं भी आपका भक्त बन जाऊं। लेकिन भगवान और आस्था को लेकर मेरा रूढ़ीवादी संस्कार इजाजत नहीं देता।

वैसे तो चटनी वाले बाबा आदरणीय निर्मल बाबा जी ने धर्म और धर्मगुरुओं को लेकर पुरातन भ्रम को तोड़ा था। एक नई लकीर खींची थी। समोसा खिलाकर। जूता पॉलिस करवाकर। पत्नी की साड़ी सुखवाकर। और कितने आसान-आसान तरीकों से कृपा बरसाते हैं। लेकिन आपने तो उन्हें भी पीछे छोड़ दिया। पहले निर्मल बाबा मुझे बहुत पसंद थे। क्योंकि कृपा पाने का इससे आसान और सस्ता-सरल उपाय कोई नहीं बताता था। हालांकि मैं कभी उनके पास गया नहीं। ये मेरा दुर्भाग्य है। लेकिन आपने तो उन्हें भी पीछे छोड़ दिया। क्योंकि जब आप सामने आ जाती हैं तभी कृपा बरसने लगती है।

आपका जब वो नाचने वाला वीडियो देखा, तो एकबारगी यकीन ही नहीं हुआ कि आप ही हैं। किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं लग रही थीं आप। उसके बाद जब आपकी मॉडर्न अवतार वाली तस्वीरें देखी तो विश्वास हो गया कि किसी फिल्म में एक्स्ट्रेस का रॉल आप बहुत बेहतर कर लेंगी। एक फिल्मी दर्शक होने के नाते इतना जरूर कहूंगा कि आपकी फिल्म सुपर-डुपर हिट होगी। आप एक फिल्म जरूर बनाइए।

एक बातऊं राधे मां जी। पहले जब आपका नाम सुनता था। आपके बारे में सुनता था तो मुझे समझ में नहीं आता कि कोई कैसे आपको देवी मां मान लेता है। कैसे लोग आपकी भक्ति में लीन रहते हैं। लेकिन जब आपका वीडियो देखा। आपकी तस्वीरें देखी। आपकी कहानी पढ़ी तो पता चला कि मैं ही कितना बड़ा मूर्ख हूं। आपके भक्त तो बड़े ज्ञानी हैं। दूरदर्शी हैं। एकबार कोई भी देख ले, महसूस कर ले तो आपके प्रति आस्थावान बन जाए।

जिन्होंने आपके ऊपर अश्लीलता फैलाने का केस दर्ज किया है, उसे नहीं पता कि उसने कितना बड़ा पाप किया है। आप उसकी शिकायतों पर ध्यान मत दीजिएगा। वो वकील नादान है। कुछ ज्यादा ही पढ़ लिख गई है। इसलिए नादानी कर बैठी। हां, एक आदमी ने धमकी देने का आरोप भी लगाया है आप पर। आप अपना वकील भेजकर केस रफा-दफा करवा लीजिएगा। एक लड़की ने भी दहेज के लिए दबाव का केस दर्ज करवाया है। माफ कर दीजिएगा उसे भी। आप इतना महान काम कर रही हैं। विज्ञान के युग में आस्था को जिस तरह से प्रवाहित कर रही हैं, जाहिर है कुछ लोगों को पसंद नहीं आएगा।

आप क्रोधित होकर धर्मगुरु वाला ये काम मत छोड़ दीजिएगा। बहुत निराशा होगी। कई भक्त जिन्हें अपनी गोद में आपको उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जो आपके साथ डांस करते हैं। जो आपकी सिर्फ तस्वीरें देख-देखकर दिन-रात बिताया करते हैं, उन्हें बड़ा सदमा लगेगा। उनकी जिंदगी बचाने के लिए अपना ये रूप बरकरार रखिएगा।

अंत में एक बात और। डॉक्टर कलाम के दौर में विज्ञान के तमाम सिद्धांत को अपने रूप, अपनी कला, अपने जादू, अपनी शक्ति से एक ही झटके में तोड़ देने के लिए। विकास के तमाम दावों को अपने भ्रमजाल में लपेट देने के लिए। रोटी के लिए लड़ते लोगों को अपना काम छोड़कर आपकी भक्ति के प्रति प्रेरित करने के लिए ये देश आपको याद रखेगा।

धन्यवाद
( एक मूर्ख, जो आपका भक्त नहीं बन सका )

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

जाम में फंसा हुआ शहर दिल्ली

चमकदमक और आधुनिकतावाद को जीती दिल्ली दरअसल जाम में फंसा हुआ एक शहर है। जहां सड़कों पर गाड़ियां रेंगती है। लोग घुट-घुटकर सफर करते हैं। ये तय नहीं होता कि आप वक्त पर दफ्तर या फिर घर पहुंचेंगे या फिर नहीं। आगे निकलने की होड़ में ट्रैफिक नियम तोड़ने में भी गुरेज नहीं करते। भागने के चक्कर में अक्सर एक्सिडेंट होता है। गाड़ियां टूटती है। लोग मरते हैं। इसी जाम और भीड़ की वजह से रोडरेज की घटनाएं भी होती है। 

दरअसल दिल्ली में हर बरस जनसंख्या और गाड़ियों की तादाद बेहिसाब बढ़ती जा रही है। जितनी बड़ी संख्या में लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं, उतने ही बड़े तादाद में कार-बाइक सरीखे गाड़ियां भी बढ़ रही है। गाड़ियों के अनुपात में अब भी फ्लाइओवर काफी कम हैं। लिहाजा ज्यादातर रेडलाइट पर लंबा जाम लग जाता है।

सड़क पर अगर कोई गाड़ी खराब हो जाए तो उसे हटाने की तत्काल व्यवस्था तो है लेकिन चौपट है। अगर कोई बस या फिर ट्रक चलते-चलते सड़क पर दम तोड़ दे तो उसे हटाने में काफी वक्त लग जाता है। और जब तक उसे उठाकर गैरेज तक लाया जाए या फिर ठीक किया जाता है तब तक बाकी गाड़ियां रेंगती रहती है।  

कई इलाकों में सड़क को घेरकर मेट्रो लाइन बिछाई जा रही है। गाड़ियों के चलने के लिए तकरीबन एक-तिहाई जगह बच जाती है। मेट्रो का काम दिन में भी चलता है, लिहाजा जिस जगह पर मेट्रो का काम होता है वहां गाड़ियों की स्पीड सामान्य से भी आधे या उससे काफी कम हो जाती है।

वर्ल्डक्लास सिटी बनने का ख्वाब देख रही दिल्ली में सड़क के किनारे या ये कहिए की सड़क पर दुकानदारी आम है। लोग सड़क के किनारे रेहड़ी या ठेला लगाते हैं। पैसे लेकर पुलिस आंख मूंद लेती है। पार्किंग की व्यवस्था के बावजूद कुछ पैसे बचाने के चक्कर में कई इलाकों में लोग सड़क पर ही गाड़ियां खड़ी कर देते हैं। जाहिर है सड़क सिकुड़ती चली जाती है।

स्थिति रात में भी बेहतर नहीं है। रात में 11 बजे के बाद ट्रकवालों की मनमानी चलती है। नियम-कानून को ताक पर रखकर बेहिसाब रफ्तार में सड़क पर ट्रक दौड़ता है। हैरान करनेवाली बात ये है कि पुलिस या तो होती नहीं है या फिर कहीं होती भी है तो उसे कुछ दिखता नहीं है। यानी ट्रकवालों की मनमानी को रोकनेवाला कोई नहीं होता है।

पिछले कुछ दिनों में सड़क पर हरे रंग वाली डीटीसी बसों की तादाद काफी कम हो गई है। गर्मी में वैसे भी लाल रंग की बस का हालत पतली रहती है। बाकी बची क्लस्टर बसें। जो ब्लू लाइन सरीखे है। उसमें दैनिक या फिर मासिक पास नहीं होता है। ऐसे में लोगों को डीटीसी बसों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।


मेट्रो के शुरू होने से सड़क पर भीड़ कम तो हई है लेकिन हर जगह मेट्रो तो नहीं है। डीटीसी बसों का इस्तेमाल करना ही है। और अगर आप दिल्ली की सड़कों पर दिल्ली सरकार की बस से सफर करने के लिए निकलते हैं तो यह मानकर चलिए कि आप वक्त पर मंजिल तक पहुंच पाएंगे ये तय नहीं होता। यही सबसे बड़ी मुश्किल है और यही सबसे बड़ी सच्चीई भी।