शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

सुनो कल्पना

सुनो कल्पना
आज तुम्हारे पापा बहुत उदास थे। तुम्हारी मां को देखकर लग रहा था कि उन्होंने कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया है। तुम्हारे घर का माहौल ऐसा इस से पहले कभी नहीं लगा था।

इतने दिनों से जा रहा हूं तुम्हारे घर। पहली बार बड़ी अजीब सा अहसास हुआ। घर के हर कोने में खामोशी पसरी हुई थी। उदासी की चादर में पूरा माहौल लिपटा हुआ था। पता है कल्पना। पहली बार ऐसा हुआ, जब मैं तुम्हारे घर पहुंचा तो अंकल के होंठों पर मुस्कुराहट नहीं था। उन्होंने कुछ बोला नहीं। उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी।

मैं खुद बैठ गया। उन्होंने हालचाल भी ऐसे पूछा जैसे रस्म अदायगी कर रहे हों। ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ था।

पहली बार ऐसा हुआ कल्पना कि तुम्हारी मां ने मुझे देखा और बिना हालचाल पूछे भीतर के कमरों की तरफ चली गई। बहुत ही अजीब सा लग रहा था। जिस घर को मैं हमेशा अपने घर की तरह समझा वहां बेगाना सा लग रहा था।

अंकल को देखकर क्यों ऐसा लग रहा था कि उनके दिल में बहुत बड़ा तूफान अटका हुआ है। जिसे खुद उन्होंने रोक कर रखा है। अगर बाहर निकल आया तो पता नहीं क्या होगा।

चाची चाय बनाकर लाई। मैंने चाय पीना शुरू किया। इतने सालों में पहली बार आज लग रहा था कि जरूरत से ज्यादा चीनी रहने के बावजूद चाय में मिठास नहीं है। जैसा माहौल कड़वा था, वैसी चाय भी कड़वी लग रही थी। इधर-उधर आंखें भटकाते हुए मैंने चाय पीनी शुरू कर दी।

जिस घर में कदम रखते ही मेरे सारे गम, सारा दुख दूर हो जाता था। जहां हमेशा लोग खिलखिलाते रहते थे। जहां मैं अपना हर सुख दुख अंकल और चाची को ऐसे सुनाता था जैसे वो मेरे भी मां-पापा हों। उन्होंने अपने बेटे की तरह प्यार दिया था मुझे। तुम जानती हो इसे।

जहां चारो तरफ खुशियां बिखरी रहती थी, वहां खामोशियों की मोटी पड़त जमी हुई थी।जिनसे मैं छोटी-छोटी बात पूछ लेता था, उनसे इतनी बड़ी खामोशी का राज नहीं पूछ पा रहा था मैं। बहुत हिम्मत चाहिए थी इस खामोशी को तोड़ने के लिए। प्याली की पूरी चाय खत्म हो गई। लेकिन कहीं आवाज नहीं आई।

आखिर सन्नाटे को अंकल ने तोड़ा। पूछा- कैसे हो। चेन्नई से कब आए। सब ठीक तो है।

मैंने कहा- हां अच्छा हूं। कल रात में आया।

फिर खामोशी छा गई। फिर मैंने पूछा- कल्पू कैसी है?

कोई उत्तर नहीं मिला। ऐसा लगा जैसे किसी ने सुना ही नहीं। मैंने फिर से पूछा- अंकल कल्पू कैसी है, उसका फोन आया था कि नहीं ?

अंकल ने धीरे से जवाब दिया। कल्पना अब बड़ी हो गई है। बहुत बड़ी। बहुत खुश है।

मुझे लगने लगा कि कुछ गड़बड़ है। क्योंकि एक तो इतने दिनों पहली बार मैंने अंकल के मुंह से तुम्हारा पूरा नाम सुना था कल्पना। इससे पहले जब भी अंकल तुम्हारा नाम लेते थे, बस कल्पू ये, कल्पू वो, कल्पू ऐसा, कल्पू वैसा...बस कल्पू ही बोलते थे। और दूसरा उनकी आवाज में दर्द था।

मैंने तुंरत अगला सवाल कर दिया- अंकल समझा नहीं, बड़ी हो गई मतलब ?

हां, एक बार तो मैं भी नहीं समझा था। कल्पना मेरी बेटी है इसके बावजूद मैं नहीं समझ पाया कि वो बड़ी हो गई है। इतनी बड़ी कि खुद अपने अच्छे-बुरे का ख्याल रखने लगी है अब। इतनी समझदार हो गई है मुझे अहसास ही नहीं हुआ इसका।

अंकल बोलते चले गए।

हम तो आज भी उसे वही बच्ची समझते थे जिसे मैंने ऊंगली पकड़कर चलना सिखाया था। उसकी हर जरूरतों को अपना समझते हैं। समझे भी क्यों नहीं। वो मेरी इकलौती बेटी है। जो है सब वही तो है। दो बेटों के बाद वो एक बेटी हुई थी। कितने लाड़-प्यार से पाला उसे। उसके मुंह से निकलता नहीं था कि हम उसे पूरा कर देते थे। कई बार उसकी मां ने मुझे टोका था- कि आप अपनी बेटी को बहसा रहे हैं। लेकिन मैं हर बार नजर अंदाज कर देता था। बेटा-बेटी में क्या फर्क। बड़ी होगी तो खुद समझ जाएगी।

तुम्हारे पापा कहते चले गए।

पता है जब उसने पढ़ाई के लिए दिल्ली जाने की बात कही थी तो तुम्हारी चाची ने मना कर दिया था। रोहित और सुमित ने भी कहा था कि रांची में ही पढ़ेगी तो क्या होगा। सब अड़ गए थे। लेकिन मैंने जिद कर के उसे दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा था। क्योंकि मैं चाहता था कि वो बड़ी होकर कुछ करे। अपने पैरों पर खड़े हो सके। कुछ ऐसा करे जिससे हमारे खानदान का नाम और ऊंचा हो। मैंने उसे हर वो काम करने की आजादी दी जो वो चाहती थी। जो उसके कैरियर के लिए बेहतर हो सके। जो मैंने रोहित और सुमित को करने दिया। लेकिन वो इतनी आजाद हो जाएगी इसका अहसास नहीं था। मैं समझ नहीं पाया कि वो ये सब कर जाएगी।

इतना कहते कहते अंकल की आंखें डबडब गई। गला रुंधने लगा उनका। गरदन झुक गई। बगल में बैठी चाची ने उन्हें जाकर ऐसे पकड़ लिया जैसे कोई पेड़ गिरने लगा हो और उसे कोई मजबूती से थामने की कोशिश कर रहा हो । अपनी आंखों के आंसू को पल्लू से पोंछते हुए उन्हें संभालने लगी। छोड़िये न, जो होना था वो हो गया।

पता है कल्पना। जितना मैं तुम्हारे पापा और मम्मी को समझ पाया, मैंने यही महसूस किया कि उन्होंने ऐसे ही तुम्हारा नाम कल्पना नहीं रख दिया था। वो तुमको लेकर बहुत बड़ी ख्वाब देख रहे थे। कल्पना की उड़ान में बड़े-बड़े पंख लगाना चाहते थे वो। वे उस पंख को पकड़कर उड़ना चाहते थे। आसमां से लोगों को बताना चाहते थे कि देखो ये मेरी बेटी है। मेरी प्यारी बेटी। उसने जो चाहा करने दिया। वो तुम्हें एक मिसाल बनाना चाहते थे कि बेटी को भी अपने सपने में पंख लगाने दीजिए, वो बेटे से कमतर साबित नहीं होगी।

लेकिन आज तुम्हारा पूरा परिवार उस कल्पना की उड़ान से गिरकर लहुलूहान हुआ पड़ा था। छटपटा रहा था। तुम्हारे मां और पापा दोनों एक-दूसरे को संभाल रहे थे। लेकिन जितना एक-दूसरे को समेटने की कोशिश कर रहे थे, उतना ही बिखरते जा रहे थे।

बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

नाक किसकी कटी ?

स्वर्ग में डॉक्टर अंबेडकर जार-जार रो रहे थे। अपने हाथों से लिखे संविधान को फाड़ रहे थे। कभी माथा पटक रहे थे। कभी चिल्ला रहे थे। तो कभी नाक पर हाथ रख रहे थे। कभी कान पर। कुर्सी से उतकर जमीन पर बैठ गए थे। बार-बार उनके मुंह से यही निकल रहा था कि हमने कहां गलती कर दी। क्या छूट गया मुझसे।

65 बरस बाद भी जाहिलों को हमारी बात क्यों समझ में नहीं आई। कब तक ये जानवर जैसा बर्ताव करते रहेंगे। हमारे बाद के बचे लोगों ने क्या किया। दलितों और पिछड़ों के नाम पर जितनी सियासत की, उसका सौवां हिस्सा भी लोगों की जागरुकता में क्यों नहीं लगाई।

डॉक्टर अंबेडकर के ठीक सामने बापू भी चारपाई पर लेटे हुए थे। सांसें उनकी भी तेज चल रही थी। अंडेबकर की बातें सुन रहे थे। क्या बोलते। गुस्सा आ रहा था। खुद पर। देश के कर्णधारों पर। तथाकथित सभ्य समाज पर। 

छुआछूत खत्म करने के लिए क्या-क्या नहीं किया था गांधी ने। 24 जुलाई 1934 को कट्टरपंथियों से शास्त्रार्थ तक किया था। दलितों को भरोसा दिलाया था कि आजाद हिंदुस्तान में अपना स्वराज होगा। गरीबों की सरकार होगी। सब समान होंगे। छुआछूत को टांग दिया जाएगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। जस का तस।

इस बीच ज्योतिबा फुले अपने हाथ से नाक को हसोथते हुए दाखिल हुए। उन्हें लगा कि अचानक उनकी आंख से नीचे मुंह तक सपाट हो गया है। नाक तो है ही नहीं। नीच मानसिकता वाले कुछ उच्च वर्गों के लोगों ने उनकी नाक पर छुरी चला दी है।

उधर से नेहरू जी दौड़ते हुए पहुंचे। चुपचाप गांधी के बगल में बैठ गए। कहना चा रहे थे कि नाक मेरी भी कट गई है। लेकिन माहौल देखकर चुप हो गए। 

बात फैलती जा रही थी। अब तक लोहिया भी पहुंच चुके थे। सुबक रहे थे। किस समाजवाद का सपना उन्होंने देखा था। क्या कर दिया उनके नाम पर सियासत करनेवालों ने। इतने सालों बाद भी कितना बिखरा पड़ा है भारतीय समाज।

आजादी के 68 साल बीत गए। गांधी की बात झूठी हो गई थी। अंबेडकर की कलम दगा दे गई थी। लोहिया का समाजवाद वोटों का हाथ बिक चुका था।

मुल्क के सबसे बड़े प्रदेश में अनर्थ हुआ है। एक दलित ने तथाकथित उच्च जाति के लोगों के साथ बैठकर भोजन कर लिया तो उसकी नाक काट दी गई। समाज अंधा हो गया। कानून बहरा हो गया। सरकार के मुंह में बकार नहीं है। सबकुछ वैसे ही चल रहा है, जैसे पहले था। कब सुधरेंगे हम ?

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

इश्क में राह आसान नहीं है।

देश के एक अधूरे और बीत्ते भर के प्रदेश में सबसे बड़ा सियासी प्रयोग हुआ है। दिल्ली की जनता ने तमाम समीकरणों को चकनाचूर कर दिया। पहली बार ऐसा लगा कि लोगों ने धर्म, जाति, क्षेत्र और कहीं-कहीं पार्टीगत भावनाओं से उठकर उम्मीदों के समर्थन में मतदान किया। पिछली बार केजरीवाल ने जो अल्पमत की शिकायत कर के कुर्सी छोड़ दी थी, उस शिकायत को दूर कर दिया।

इश्क में राह आसान नहीं है। दिल्ली का इंट्रेंस टेस्ट पास कर चुके केजरीवाल को हर पल परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। सरकारी तंत्रों में लिपटे भ्रष्टाचार को साफ करना है। जिसके लिए धैर्य और जज्बे की जरूरत होगी। केजरीवाल ने बिजली-पानी, मुफ्त वाई-फाई, स्कूल कॉलेज जैसे ऐसे वादे  हैं जिसके लिए पैसों की जरूरत होगी। दिल्ली अधूरा राज्य है, लिहाजा पग-पग पर केंद्र सरकार से सहायता लेनी होगी। जो आसान नहीं है। क्योंकि केंद्र में उसी की सरकार है, जिसे दिल्ली में केजरीवाल ने पानी पिला दिया। ऐसे में केजरीवाल को बड़ी ही चालाकी से बैर किए बगैर मदद लेनी होगी।

केजरीवाल ने सियासत का स्वरूप बदलने का बीड़ा उठाया है। इसमें मिली रसायन को बदलने की जिम्मेदारी ली है। क्योंकि पिछले कुछ सालों में सियासत, सरकार, नेता और सरकारी तंत्र को लेकर लोगों के बीच जो सोच बनी है, वो काफी नकारात्मक है। सरकार और नेताओं ने लोगों को प्रभावित नहीं किया है, बल्कि एक आम लोगों को इससे दूर ले गया है। सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों के लिए नेताओं का मतलब अपराधी, झूठा, भ्रष्टाचारी जैसा हो गया है, जबकि सियासी पार्टियों को लोग भ्रष्टाचारियों का समूह समझने लगे हैं। 

दूसरी बात आप किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाइए। काम करवाने के चक्कर में आपके चप्पल घिस जाएंगे। बिना चढ़ावे का काम नहीं होगा। बाबू, ब्यूरोक्रैट्स और नेताओं के नेक्सस में लोग उलझ कर लुट जाते हैं। लोग असल में इसी व्यवस्था को खत्म होते देखना चाहते हैं।

ऐसे में व्यवस्था से आजीज आ चुके लोगों के बीच केजरीवाल नई उम्मीद लेकर आए हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार पर प्रहार किया। उन्होंने सियासत और नेता दोनों के मायने बदलने के वादे किए हैं । बहुत ही आम लोगों को टिकट देकर इसके संकेत भी दिए। लोगों को लगा कि शायद अब कुछ बदलेगा। लिहाजा लोगों ने आम आदमी पार्टी को पूर्ण से कहीं आगे तकरीबन संपूर्ण बहुमत देकर कसौटी पर चढ़ा दिया है। अब केजरीवाल को जनता के भरोसे पर खरा उतरना है।

1977 में जेपी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने को लेकर ऐसा ही सपना दिखाया था। लेकिन उनके तथाकथित उत्तराधिकारियों ने बेड़ा गर्क कर दिया। नेताओं पर लोगों को फिर से भरोसा करने में कई दशक लग गए। केजरीवाल तक जाते-जाते लोगों को एक रौशनी दिखी। ऐसे में अगर पूरी व्यवस्था में फैले अंधेरे में अगर केजरीवाल दीया नहीं जला पाए तो लोगों का भरोसा टूटेगा। फिर किसी केजरीवाल पर लोगों को ऐतबार नहीं होगा।

टीम इंडिया को जीत की संजीवनी!

वर्ल्ड कप में टीम इंडिया ने चैंपियन की तरह आगाज किया। दबावों से भरे मैच में 76 रनों से शानदार जीत, टीम इंडिया के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगी। एडिलेड में पाकिस्तान के खिलाफ टीम इंडिया के खिलाड़ियों का बॉडी लैंग्वेज बेहद सकारात्मक लग रहा था। शुरू में रोहित शर्मा का विकेट गिरने से थोड़ा झटका लगा लेकिन विराट कोहली और शिखर धवन ने सधी हुई पारी खेली। फिर रैना के साथ मिलकर कोहली ने ये दिखा दिया कि भारतीय बल्लेबाजों को शेर क्यों किया जाता है। रैना की आक्रमकात देखने लायक थी। हालांकि कोहली और रैना के आउट होने के बाद बाकी बल्लेबाज वो नहीं कर पाए, जो उन्हें करना चाहिए था। लेकिन एक सम्मानजन स्कोर पर जरूर ले गए। आगे इस कमी को पूरा करना होगा।

भारत - पाकिस्तान के बीच मैच में मैदान में उतरते ही दोनों टीम की खिलाड़ियों पर जीतने का मनोवैज्ञानिक दबाव रहता है। इस दबाव के बीच धोनी अपने टीम को समेट कर रखने में कामयाब रहे। पहले बल्लेबाजों ने दम दिखाया। फिर गेंदबाजों ने बेहतर गेंद फेंकी। वर्ल्ड कप में एक बार फिर पाकिस्तान की टीम बिखर गई।

भारत के लिए ये जीत बेहद अहम है। पहले मैच में ही बड़े अंतर से जीत। वो भी पाकिस्तान के खिलाफ। शानदार जीत से टीम इंडिया के हौसले काफी बुलंद होंगे। ये मैच टीम इंडिया के आगे की राह थोड़ी आसान कर देगी। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से ड्रेसिंग रूम से लेकर मैदान तक टीम इंडिया के हालात बेहत नहीं रहे हैं । 2 महीने पहले ही ऑस्ट्रेलिया में ही ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड दोनों टीमों से करारी शिकस्त खा चुकी है। बॉर्डर-गावस्कर सीरीज में धोनी के धुरंधर धारशाही हो गए।

धोनी ने टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़ दी। फिर भी वन डे में हालात नहीं सुधरे। बीच-बीच में टीम में मनमुटाव की खबर भी आती रहती है। वर्ल्ड कप के लिए जब टीम इंडिया का चुनाव हुआ था, तो भी टीम पर सवाल उठे थे। प्रैक्टिस मैच में भी टीम पूरी तरह से फेल हो गई थी।

क्षमता और आपसी रिश्ते को लेकर सवालों में घिरी टीम इंडिया के सामने चैंपियन का ताज बचाने की बड़ी चुनौती है। धोनी के धुरंधर को आगे बड़े मैच खेलने हैं। अगला ही मैच दक्षिण अफ्रीका से होगा। फिर सामने न्यूजीलैंड होगा। फिर ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड जैसी धाकड़ टीम होगी। जिससे निपटना आसान नहीं है। फिर भी पहले ही मैच में पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंदी को जिस तरह से सभी खिलाड़ियों ने मिलकर पटखनी दी ये बड़े ही सकारात्मक संकेत देते हैं। बेशक इससे पूरी टीम का मनोबल बढ़ेगा।

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

AK 67


बेहद जिद्दी। महत्वाकांक्षी। कुछ करने की तमन्ना। खुद से असंतुष्ट। ज्यादा पाने की हसरत। बदलाव की ख्वाहिश। किसी भी हद तक जाने को तैयार। गिरकर संभलने वाला। मासूमियत से माफी मांगनेवाला। धरना-प्रदर्शन को गहना बनाने वाला। गांधी के रास्ते पर चलकर। लोगों को जोड़ने वाला। बेहद आम। ठिगना सा कद। ढिलाढाला हाफ सर्ट। स्वेटर। मामूली सा पैंट। सिर पर उम्मीदों की टोपी। सिर से गरदन तक मफलर। बोलते- बोलते खांसनेवाला। मफलरमैन। यानी अरविंद केजरीवाल। 

बात-बात पर धरना देना। कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ। कभी सरकार के खिलाफ। यू हीं पोल पर चढ़ जाना। बिजली का कनेक्शन जोड़ना। अंबानी-अडानी-वाड्रा पर आरोप लगाना।

अन्ना आंदोलन ।कौन भूल सकता है। केजरीवाल की प्लानिंग। सियासी पार्टियों की दगाबाजी। अहंकार में डूबे नेताओं की वो चुनौती।

बात-बात में पार्टी बनाई। लोगों में भरोसा जगाया। आम लोगों की बात की। उनसे मिला। उनकी सुनी। खुद की सुनाई। लोगों को सादगी में उम्मीद दिखी। लोग मफलर मैन के मुरीद हो गए। 

विरोधियों ने क्या नहीं कहा। अरजाक। नक्सली। नाली का कीड़ा। कुत्ता। और क्या-क्या। किसी ने गाली दी। किसी ने थप्पड़ मारा। बावजूद घबराया नहीं। गांधी को याद किया। और पाने की चाहत लिए। आगे बढ़ता गया। लोग जुड़ते गए। करवां बढ़ता गया। भीड़ बढ़ती गई। जीतने के लिए दिन-रात एक कर दिया।

कई बार अपने दगा दे गए। खुद को और मजबूत किया। अक्खर सेनापति की तरह। खुद भी लड़ता रहा। दूसरों का हौसला बढ़ता रहा। अहंकार को ललकारा। आम लोगों की बदौलत । उन्हें चुनौती दी। कांग्रेस को मटियामेट कर दिया। बीजेपी को बेहोश कर दिया। लोगों ने सिर-आखों पर चढ़ा लिया। 70 में 67 सीटें। कभी नहीं भूलेगा हिंदुस्तान।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

केजरीवाल के नाम एक चिट्ठी

केजरीवाल जी, नमस्कार
 
मैं एक आम आदमी हूं। लेकिन टोपी नहीं पहनता। रोज डीटीसी की बस और मेट्रो में धक्के खाकर दफ्तर पहुंचता हूं। किसी सियासी पार्टी का सदस्य नहीं हूं।दिल्ली का मतदाता जरूर हूं। आपको ये चिट्ठी इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि आप बार-बार आम आदमी की दुहाई देते हैं। इसलिए लगा कि थोड़ी अपनी बात आप से शेयर कर लूं।

सबसे पहले आपको ऐतिहासिक जीत के लिए अनेक-अनेक शुभकामना। उम्मीद है कि आप ने जिस रास्ते पर चलने का वादा किया, उसी पर अडिग रहेंगे। मैं आपसे ये उम्मीद इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि लोकतंत्र में उम्मीद और भरोसा बहुत जरूरी है। 

जनता ने आपकी बात मान ली है। 5 साल केजरीवाल। साथ में जिम्मादारियों का पुलिंदा आपके कंधों पर लाद दिया है। उम्मीदों से कहीं बड़ा। जीत के लिए आप खुश होइए। लेकिन उससे ज्यादा आपको ये सोचने की जरूरत है कि आप उसे पूरा कैसे करेंगे। ये मत सोचिएगा कि विपक्ष नहीं है। आपकी सरकार के विपक्ष में खुद जनता होगी। मीडिया होगी। खासकर सोशल मीडिया।

आप सरकार में रहेंगे तो आपके काम की निंदा होगी। आपकी आलोचना होगी। जो जरूरी भी है। भगवान आप में और 'आप' के कार्यकर्ताओं में आलोचना सहने की शक्ति दें। जिस तरह से आपने अपने कार्यकर्ताओं को आज अहंकार से दूर रहने की नसीहत दी। उम्मीद है कि आप खुद इससे दूर रहेंगे। समय-समय पर अपने समर्थकों को ऐसे ही आगाह करते रहेंगे। नहीं तो आप बिखर जाएंगे।

एक बार भगोड़े की ठप्पा लग चुकी है। फिर ऐसी गलती मत करिएगा। हर बार मासूमियत को माफी नहीं मिलती। आप धरना से ज्यादा डिलवरी पर ध्यान दीजिएगा। क्योंकि अभावों में जीनेवाली जनता में धैर्य की थोड़ी कमी होती है। आप हकीकत में क्या हैं, पता नही। लेकिन लोगों ने आपको मसीहा बना डाला।आपको मसीहे की तरह काम करना होगा। भरोसा का टूटना बहुत बुरा होता है।

इस बार 5 साल का मैंडेट है। पूर्ण बहुमत। काम करने की पूरी आजादी। जनता कोई बहानेबाजी नहीं सुनेगी। अपने हर वादे को पूरा करने की कोशिश कीजिएगा। आंकड़ों में जनता को मत उलझाइएगा। भीड़ देखकर भागिएगा मत। प्लान बनाकर काम कीजिएगा। अच्छा रहेगा। आपके लिए। जनता के लिए। हां, सकारात्मक सियासत करिएगा। आरोप लगाने के बदले चुपचाप कार्रवाई कीजिएगा। अच्छा लगेगा।

पता है आपको। आज रिक्शावाले बहुत खुश थे। रेहड़ी और खोमचे वाले कूद रहे थे। आरटीवी बस का कंडक्टर और ड्राइवर आप ही की जय जयकार कर रहे थे। उन्हें लग रहा था कि उनकी जीत हुई है। उनकी अपनी सरकार बननेवाली है। अब वही होगा जो वे सोचते हैं। आपको पता है कि उन्हें क्या चाहिए। उनको आहत मत कीजिएगा।

आपकी पार्टी का जन्म राजनीति का ढंग बदलने के लिए हुआ था। आपने सियासत में शूचिता का वादा किया था। याद रखिएगा इसे। सफलता के साथ अहंकार और लोभ आते हैं। आपकी टीम अगर इसकी चपेट में आई तो कहीं का नहीं रहिएगा। विकल्प बने हैं तो कसौटी पर खरा उतरिएगा। आप से उम्मीद है कि राजनीति को उस दहलीज पर ले जाएंगे जहां लोग उसे उत्कृष्ट नजरों से देखें। नहीं तो लोगों को बड़ा धक्का लगेगा। 

लोगों को इससे ज्यादा मतलब नहीं है कि आप मेट्रो में चढ़ें या रिक्शा में। आप रामलीला मैदान में शपथ लें या विधानसभा में। लोगों को चाहिए कि कोई उसे घूस के लिए तंग न करे। पानी-बिजली का बेलगाम बिल ना भरना पड़े। लोगों के बीच रहिएगा। आम आदमी बनकर। इज्जत मिलीगी। शोहरत मिलेगी। हां, कसम मत खाइएगा। न खिलाइएगा। बस सब पर नजर बनाए रखिएगा। इतना ही काफी होगा।

शुभकामनाओं के साथ

एक आम आदमी (टोपी रहित)

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

'अंधभक्ति' का नशा !

नशा मिजाज को अपने आगोश में समेट चुका था। दिन और रात में फर्क मिट चुका था।फासले पट चुके थे। वो जुनूनी बन चुका था। वो सोच रहा था कि अब सबकुछ बदल जाएगा। सबकुछ उसी की मर्जी से होने वाला है। जो अब तक कभी नहीं हुआ। वो होगा। चंद मिनटों की देर है। उसे वो सब कुछ मिल जाएगा, जो कभी ख्वाहिशें बनकर उसके जेहन को खिलखिलाता रहता था तो कभी अफसोस बनकर उस के मन को मरोड़ता रहता था।

उस पल को पाने के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। हर हद लांघ देना चाहता था।कंधे पर पड़नेवाले हर हाथ को झटका रहा था। हर आवाज से ऊपर खुद को बुलंद कर रहा था। कोई फर्क नहीं। कोई कुछ भी कहे। उसे इस बात का बिलकुल इल्म नहीं था कि वो आत्मविश्वास के सर्वोच्च शिखर को छू कर कब का आगे निकल चुका है। उसे तो बस वही याद है जो वो तोता की तरह रट्टा मार लिया है।

मिलेगा। जरूर मिलेगा। खुशफहमी पाराकाष्ठा पर थी। उसे ना मिलने वाले हर तर्क का काट उसके पास था। उससे होनेवाले हर सवाल का जवाब उसके पास था। वो प्लेटो से बड़ा तर्कशास्त्री बन चुका था। आर्यभट्ट से भी बड़ा गणितज्ञ। हर समीकरण उसकी जुबान पर था।

वक्त बीत रहा था। नशा कायम था। न हट रहा था। न छंट रहा था। अपनी जकड़ और मजबूत बना रहा था। वो इस बात से बेफिक्र था कि उसकी दीवानगी अब बेड़ियां बन चुकी है। वो गुलाम बन चुका है। खैर। वो उस वक्त को पाने को आतुर था।

मदहोशी में डूबे मुट्ठीभर लोगों की भीड़ में वो बैठा हुआ था। खुद को सबका सरदार समझ रहा था। घड़ी की टिक टिक के साथ वक्त बीतता जा रहा था। समय अपनी गति से भाग रहा था। स्याह रात का अंधेरा छंटने लगा था। सुबह दस्तक देनेवाली थी। वो अब तक मुगालते में था। 

धीरे-धीरे उजाला फैलने लगा। सूरज की किरणें मोटी हो चुकी थी। उसके कपार पर छोटी-छोटी पानी की बूंदे टघरने लगी थी। कुछ बूंदे आंखों में गिरी तो कड़वाहट महसूस हुई। उसने आंखें मिचमिचाई। लेकिन कड़वाहट कम हो नहीं रही थी। हां, आंखों में घुसे उस तीखे पानी से नशा जरूर उतरने लगा था। वो धूप से दूर भगना चाहता था। लेकिन घुप्प अंधेरे से भरे कमरे तक उसका पैर नहीं पहुंच पा रहा था। पूरा देह उसका पानी से नहा चुका था। बदहवास सा हो चुका था। उसका सारा नशा उतर चुका था। उसने चारो तरफ देखा। कोई कहीं नहीं था। वो अकेला बैठा हुआ था। बिल्कुल अकेला। 

उसे गुस्सा आ रहा था। खुद पर। शर्म भी हो रही थी। अफसोस भी। तमतमाया हुआ था।लेकिन खुद से हारा हुआ था। किसको क्या कहता। तभी उसे ध्यान आया। कुछ जरूरी काम उसका इंतजार रहा है। घर की तरफ चल दिया। लुटा-पिटा सा। हारा-हारा सा। हां, कुछ लोग बड़ी अजीब नजरों से उसकी तरफ ताक रहे थे। कुछ सहानुभूति भरी नजरें। कुछ तंज भरी। वो सबकुछ समझ रहा था। बस, चुपचाप आगे बढ़ता जा रहा था।

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

मोदी जी के नाम एक चिट्ठी



( नोट- इसे मोदी जी के लोकसभा चुनाव के पहले दिए गए भाषण को ध्यान में रखककर पढ़ें) 

मोदी जी नमस्कार

आपकी सरकार 9 महीने पूरे करनेवाली है, लेकिन विकास कहीं नजर नहीं आ रहा है।आपने ब्याज समेत वापस करने का वादा किया था, लेकिन अब तक मूलधन भी नहीं मिला। मोदी जी, आपको कहीं विकास दिख रहा है क्या? बताइए मोदी जी। आपने कहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। आप ही बताइए मोदी जी, कि अच्छे दिन आ गए क्या? क्या इसे ही अच्छे दिन कहते हैं? बताइए मोदी जी। देश जानना चाहता है। आप कहते थे कि देश की तस्वीर और तकदीर बदलने वाली है। बदली क्या? देश जवाब चाहता है मोदी जी। सिर्फ प्रधानमंत्री बदला। मंत्रिमंडल बदला। और क्या बदला ?

आप कहते थे कि आपके राज में महिलाओं पर अत्याचार नहीं होगा। लेकिन 9 महीने बाद भी क्या हुआ? महिलाओं पर जुल्म बंद हो गए क्या? मैं आप ही से पूछना चाहता हूं मोदी जी कि बहन-बेटियों की इज्जत सुरक्षित हो गई क्या? बताइए मोदी जी। नहीं ना। हमारी देश की बहन-बेटी आज भी सड़क पर अकेले निकलने में डरती हैं। मोदी जी। दिल्ली में बलात्कार और हत्या की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। कुछ भी नहीं बदला। आपके राज में भी। फिर आपको प्रधानमंत्री बनाने का क्या फायदा? क्या मिला आपको प्रचंड बहुमत देकर। कुछ तो कीजिए। आप सरकार हैं।

मोदी जी। आपने महंगाई कम करने का वादा किया था। हम जैसे आम लोगों ने इसी भरोसे आपको वोट दिया था कि सस्ती सब्जी मिलेगी। भरपेट खाना मिलेगा। लेकिन क्या मिला? देश जानना चाहता मोदी जी कि क्या महंगाई कम हुई? क्या सब्जी-तेल के दाम कम हुए ? बताइए मोदी जी, कुछ सस्ता हुआ क्या ? नहीं ना? बोलिए। नही ना? फिर क्या हुआ?  क्या किया आपने। गरीब जनता आज भी महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही हैं।

तेल के दाम कम हुए। लेकिन किराया जो बढ़ा वो कम नहीं हो रहा है। बताइए पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए तो किराया भी कम होना चाहिए था ना? लेकिन नहीं हुआ। आप को नहीं पता होगा। आप तो दस डेग भी हेलिकॉप्टर से ही चलते हैं। पता करवा लीजिएगा। किसी ने नहीं किराया घटाया। आप ही बताइए। क्या इसे ही अच्छे दिन कहते हैं क्या ?

माननीय मोदी जी। उस काले धन का क्या हुआ ? जो आप 100 दिन के भीतर वापस लाने वाले थे। 9 महीने हो गए मोदी जी। अब तक एक पाई भी वापस नहीं आया। देश के गरीब पूछ रहे हैं कि उनके खाते में 15 लाख रुपए कब आएंगे। आएंगे भी या नहीं? या बाकी चुनावी वादों की तरह विदेशों से कालेधन लाने का वादा हवा में उड़ जाएगा ? मोदी जी, देश के गरीब आपकी तरफ आंख पसारे देख रहे हैं।

देश जानना चाहता है मोदी जी कि दूसरी पार्टी के नेताओं की तरह आपने भी लोगों के साथ छल नहीं किया क्या ? क्या आपने लोगों को बेवफूक नहीं बनाया? क्या आपने झूठ बोलकर लोगों से समर्थन नहीं लिया? देश के सवा सौ करोड़ जनता आपसे ये पूछ रही है कि आप ने जो राम राज का सपना दिखाया था, वो कब पूरा होगा ? या फिर अगले चुनाव तक का इंतजार करना पड़ेगा?

इतना ही नहीं मोदी जी, देश के युवा आपसे सवाल कर रहे हैं कि क्या बेरोजगारी कम हुई? क्या नौजवानों को रोजगार मिला? उनके लिए आपने अब तक क्या किया है? बहुत उम्मीदों के साथ युवाओं ने आपका साथ दिया था मोदी जी। अब तक कहीं बंपर वैकेंसी नहीं निकली। न ही स्किल डेवलप करने के लिए कोई काम हुआ। न ही एजुकेशन की दिशा में ठोस पहल हुई है। आप ही बताइए मोदी जी अभी तक हुआ क्या है ? बताइए मोदी जी। देशभर के युवा आपसे जानना चाहते हैं।

बहुत बड़े-बड़े वादे कर आपने पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार के लिए वोट मांगे थे। लोगों ने दिल खोलकर समर्थन किया। प्रचंड बहुमत दिया। लोगों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। लोगों को लगा कि एक ऐसा प्रधानमंत्री हमें मिलनेवाला है, जो सबकुछ बदल देगा। लेकिन आज देश की 125 करोड़ जनता पूछ रही है कि क्या आप अपने वादे पूरे किए? नहीं किए ना? सिर्फ बैंक एकाउंट खुलावाने से क्या होगा मोदी जी? उसमें पैसा भी चाहिए ना? वो कहां से आएगा?

मोदी जी एलओसी पर फायरिंग बंद नहीं हुई। सीमा पार से घुसपैठ जा रही है। पाकिस्तान की तरफ से रूक- रूक कर गोलीबारी होती रहती है। चीन भी बीच-बीच में हिमाकत करता रहता है। देश जानना चाहता है मोदी जी, कि आपके 56 इंच का सीना आखिर किस काम का? कब तक सरहद पर देश के बेटे शहीद होते रहेंगे? हमारे देश के बेटे गोली से छलनी होते रहेंगे? कब तक बहन-बेटियां विधवा होती रहेगी? बहन-बेटियों के सिंदूर आपसे हिसाब मांग रहा है मोदी जी?

मोदी जी आपको कुछ और बातें याद दिलाना चाहता हूं। चुनाव से पहले आप कहते थे कि आप की सरकार बनेगी तो देश तरक्की करेगा। दुनिया में डंका बजेगा। 9 महीने हो गए मोदी जी। क्या हुआ। दूसरे देशों के प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति के आने-जाने के सिवाय और क्या हुआ। देश जानना चाहता है मोदी जी कि गरीबों के हक के लिए क्या हुआ?

मोदी जी, कब तक देश को उम्मीदों पर जीना होगा? कब तक सपने देखकर दिन कटेंगे? कुछ काम भी होगा या आप यू हीं विदेश घूमते रहेंगे? 

मोदी जी आपने अपने कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी ली है। लोगों को आपसे बहुत सारी उम्मीदें हैं। अपने वादों के मुताबिक आपको कुछ बहुत बड़ा करना होगा। कुछ कर के दिखाना होगा। मैं भी जानता हूं कि 9 महीने में आप आसमान से तारे नहीं तोड़ लाएंगे। फिर भी कुछ तो करेंगे! अभी भी आपके पास मौका है। कुछ तो करिए। ऐसा न हो कि लोगों की आप के ऊपर से भी भरोसा उठ जाए। संभल जाइए।

भारत माता की जय। भारत माता की जय।