शनिवार, 16 जून 2012

एक बेटी की व्यथा


       नमस्कार
            मैं उत्तर प्रदेश की एक बेटी हूं....आप मुझे किसी भी नाम से जान सकते हैं...मुन्नी, मीना, रजिया या कुछ और.. आज मैं व्यथा सुनाऊंगी इंसानियत की,,,मासूमियत की...कलेजा थाम के सुनियेगा...क्योंकि इसमें किसी का दर्द छुपा है...किसी की ज़ार जार रोती ज़िंदगी तो किसी की मौत की दास्तां है ये....ये व्यथा है मेरी उन बहनों की जिसे दरिंदों ने बलात्कार के बाद जलाकर मारने की कोशिश की...या फिर मार ही डाला...मेरी उन बहनों की जिसकी हंसती खेलती ज़िंदगी पल भर में नर्क बन गई...जिसका सपना देखते ही देखते चकनाचूर हो गया...जो या तो दुनिया छोड़ गई या फिर जिंदा लाश बनकर रह गई...ये मेरी उन बहनों की व्यथा है जिसे इंसान के शक्ल में भेड़ियों ने नोचा है...जिसके बेजान जिस्म के साथ हैवानों ने खेला है...आज मैं बताऊंगी अपनी बहनों की ऐसी सच्चाई जो उसे शूल की तरह चूभो रही है...जिसका दर्द उसे ताउम्र सालता रहेगा...मेरी इन बहनों की तदाद कोई एक, दो या तीन नहीं है...कई हैं...जो हर गली मुहल्ले में वहशी दरींदों के शिकार हुई हैं...आज मैं उन तमाम ज़ख्मों को कुदेरूंगी,  जिसे अपना बनकर गैरों ने मुझे दिया है...मैं वो घाव दिखाऊंगी जिसका दर्द सिसकियां बनकर मेरी बहनों की होठों से पल पल निकलती है...
         बेरहमी और बेदर्दी के फेहरिस्त काफी लंबी है...सबसे पहले बरेली की उस बहन की व्यथा...जिसके साथ तीन दरिंदों ने हैवानियत का खेल खेला,,,18 साल की मेरी वो बहन घर में अकेली थी...अपने सपनों की दुनिया  में खोई हुई थी,,,तभी तीन लड़कों ने घर में दस्तक दी...तीनों ने मिलकर उसके साथ बलात्कार किया...बेरहमी की  हद देखिए कि बलात्कार के बाद  हैवानों ने किरोसीन तेल छिड़ककर उसे आग के हवाले कर दिया...वो चिखती रही...चिल्लाती रही...लेकिन किसी ने उसे बचाना मुनासिब नहीं समझा...जब तक उसके घरवाले घर पहुंचते तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था....मेरी बहन 80 फीसदी तक जल चुकी थी...अस्पताल पहुंचते पहुंचते उसने दम तोड़ दिया....ये तो एक तरह से ठीक ही हुआ क्योंकि मेरी उस बहन के लिए ये जिंदगी अब अभिषाप ही बन जाती......
            बाराबांकी में तो एक रिश्तेदार ने रिश्ते को आग के हवाले कर दिया...जिसपर मेरी बहन आंख मूंदकर भरोसा करती थी,,,जिसके बारे में वो गलत सोच भी नहीं सकती थी...उसी ने उसके साथ घिनौनी हरकत की...पहले घर बंदकर बलात्कार किया...और फिर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी...इतना ही नहीं आग लगाकर वो घर को बंद कर फरार हो गया..लेकिन मेरी उस बहन ने हिम्मत नहीं हारी....आग बुझाया और फिर शोर मचाया...शोर सुनकर आसपास के लोग मौके पर पहुंचे...और फिर उसे अस्तपाल में भर्ती कराया गया.....
             देवरिया में ही रिश्ता तार तार हुआ...मेरी एक बहन के साथ एक सिरफिरे ने पहले   दुष्कर्म करने की कोशिश की...मेरी जाबांज बहन ने जब उसका विरोध किया तो वो दरिंदा आगबबूला हो गया....लड़के ने पेट्रोल छिड़कर आग लागा दी...ये घटना शाम के  वक्त हुई जब घर के सब लोग छत पर सो रहे थे,,,लड़की घऱ में अकेली थी..तभी पड़ोस का वो लड़का,,,जिसे वो भाई कहकर पुकारती थी..वो चुपके से घर में घुसा और जबर्दस्ती करने लगा.....
                   गाजीपुर में मेरी बहन को उन लोगों ने आग का गोला ही बना डाला.....महज सोलह साल की थी मेरी वो बहन..रात के वक्त शौच करने के लिए घर से निकली थी...कुछ ही दूर गई थी कि अंधेरों का फयादा उठकार कुछ लड़कों ने उसे अपना शिकार बना लिया...पहले उसके साथ बलात्कार किया....और फिर पोल खुल जाने के डर से उसे जला दिया...आग की लपटों से घिरी लड़की जोर जोर से चीखने लगी...बच्ची की दर्दनाक आवाज सुनकर गांव के लोग जब तक उसके पास पहुंचते, तब तक दरिंदे फरार हो चुके थे...लोगों ने आग बुझाई और फिर लड़की को अस्पताल ले गये...लेकिन वो मौत से ज्यादा देर तक नहीं लड़ पाई....ज़िंदगी से हार गई.....
             अब सुनाती हूं फतेहपुर की उस बहन की व्यथा....जिसे अपनी हिम्मत की कीमत चुकानी पड़ी....घटना शिवपुरी के एक गांव की है....जहां बीस बरस की मेरी बहन के साथ कुछ दरींदों ने मिलकर बलात्कार किया...ये बात उन्होंने अपने घरवालों से बताई....उन्होंने हिम्मत दिखाई...चुप रहना ठीक नहीं समझा,,,घरवालों को साथ लेकर सामूहिक बलात्कार का केस दर्ज कराने पुलिस के पास पहुंची,,,पुलिसवालों ने उसे इंसाफ का भरोसा दिलाया....आंखों में न्याय की आस लिए वो घर लौट रही थी...तभी हैवानों ने उसे घेरकर पहले पिटाई की...और फिर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी....
             महोबा के भरवारा गांव में बेखौफ हैवानों ने घर में घुसकर मेरी एक बहन के साथ बलात्कार किया....मेरी वो बहन  घर में अकेली थी....अपने घर का काम कर रही थी....तभी एक लड़का घर में घुसा....घर को बंद कर दिया और फिर खेला हैवानियत का वो खेल...जिसने उसकी ज़िंदगी बर्रबाद कर दी....महिला के चीखने की आवाज सुनकर आस पड़ोस के लोग दौड़ पड़े....जब तक वो हैवान वहां से भागता तब तक लोगों ने उसे पकड़ लिया...
               लखीमपुर खीरी के भीड़ा क्षेत्र में भी मेरी बहनें सुरक्षित नहीं है...उसकी इज्जत और आबरू से खेलने का दौर बदस्तूर जारी है,,,ये घटना अंबारा गांव की है....कुछ ही दिन बाद उस लड़की की शादी होने वाली थी....वो दुल्हान बनने वाली थी....डोली पर चढ़कर अपने साजन के घर जानेवाली थी...लेकिन पड़ोसी ने ही उसका सत्यानाश कर दिया...उस दिन मेरी वो बहन घर में अकेली थी....तभी पड़ोस का एक लड़का घर में घुसा और उसकी आबरू लूट ली...जब लड़की ने इसका विरोध किया उसने धारदार हथियार से हमला कर दिया...वो गंभीर रूप से घायल हो गई....खुशी के ख्वाबों का पंख लगाकर उड़ने वाली मेरी बहन ग़मों के समंदर में डूब गई.....
              इलाहाबाद में तो  दरींदों ने हैवानियत की सारी हदें लांघ दी...हैवानों ने मेरी उन मासूम बहनों को शिकार बनाया गया....जिसे बलात्कार का मतलब भी न पता था....जो इसका विरोध करना भी नहीं जानती थी...जिसे ये भी नहीं पता था कि इस गंदे खेल की शिकायत करनी होती है...उसकी उम्र तो गुड्डे गुड़ियों से खेलने की थी....लेकिन हवस के अंधे बेरहमों ने उसे भी नहीं बख्शा....इसका खुलासा तब हुआ, जब गोद ली जा चुकी एक लड़की ने अपने घरवालों से बालगृह की कहानी सुनाई....सच्चाई जब सामने आई तो सब के सब हैरान रह गये....जिसे बच्चियां अंकल कहा करती थी....जो  उसका देखभाल करता था.....वो चपरासी ही बलात्कारी निकला...बच्चियों से बलात्कार की इस घटना के बाद प्रशासन महकमा हिल गया....
     ये तो कुछ  की कथा है....और भी कई बहनें हैं जो इस बदमानी की बेइंतहा दर्द लेकर कहीं गुमनाम ज़िंदगी जी रही है या फिर दुनिया छोड़ गई.... मेरी इस व्यथा पर गौर जरूर कीजिएगा...एक बार जरूर सोचिएगा...मेरी तरह वो आपकी भी बहने हैं...खासकर अखिलेश भैया आप जरूर ध्यान दीजिएगा...क्योंकि आपसे काफी उम्मीदें हैं....अगर समय रहते इन दरीदों के जिंदगी में बेरियां नहीं पहनाई गई, तो आपके राज में मां, बेटियां पैदा करना छोड़ देंगी.....
                             नमस्कार   

रविवार, 10 जून 2012

वीर ब्रह्मेश्वर या हत्यारों का मुखिया


वही हुआ जिसकी आशंका थी । ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह ऊर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या कर दी गई । जो जैसा करता है, वो वैसा ही पाता है । ब्रह्मेश्वर सिंह की जो शख्सियत थी, या कहें कि उनकी जो छवि थी, उसका  ऐसा ही अंत होता है । सत्तर साल के बूढे शरीर में चालीस गोलियां  दाग दी गई । 273 हत्याओं का  मुखिया पलभर में ढेर हो गया । 
          आप ब्रह्मेश्वर सिंह को हत्यारों और नरसंहारों का मुखिया कह सकते हैं । आप उन्हें बेदर्द और बेदिल इंसान कह सकते  हैं । लेकिन सवाल उठता है कि आखिर बरमेसर नाम का दीनहीन, दुबला पुतला शरीर वाला इंसान हत्यारों का सरदार कैसे बन गया  ?  आखिर कैसे तथाकथित ऊपरी तबके के लोग उसके पीछे दौड़ पड़े  ?  वो कैसे बुद्धिजीवियों के बड़े तबके का हीरो बन गया ?  बरमेसर मुखिया कोई पेशेवर अपराधी नहीं था । वो पैसों के लिए या फिर स्वयं स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसी सेना नहीं बनाई, जो लोगों की बेरहमी से हत्या करती थी । 
         दरअसल हालात ने बरमेसर को ब्रह्मेश्वर मुखिया बना दिया । शातिर और खौफनाक दिमाग की करतूत एक तरह से प्रतिकार था । जिस समय ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई में रणवीर सेना एक के बाद एक नरसंहारों को अंजाम दे रही थी, उस वक्त बिहार में समाजिक और राजनीतिक समीकरण कुछ यूं थे, जिसका परिणाम मौते होती थी । दरअसल तथाकथित निचले तबकों का एक समूह  सरेआम सत्ता को चुनौती दे रहा था । जमींदारों की जमीन पर जबरन कब्जा कर रहा था । खेतों से फसल लूट लिये जाते थे । जमींदारों की बहू बेटियों की इज्जत खेला जाता था । सरकार मौन थी । प्रशासन बेपरहवाह था । पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही थी । छोटे छोटे कई संगठन पैदा हो गये थे ।  एमसीसी जैसे संगठनों के हौसले बुलंद होते जा रहे थे । फेल होती व्यवस्था के बीच इन्हीं संगठनों से निपटने और अपनी बहू बेटियों की इज्जत बचाने का बीड़ा उठाया ब्रह्मेश्वर सिंह ने । उन्होंने रणवीर सेना के नाम से एक संगठन बनाया ।  जिसमें कई छोटे छोटे संगठन शामिल हुए । जमीनदार तबके के लोग उसमें शामिल होने लोगे । पैसा और हथियार जमा होने लगा । और फिर एमसीसी के नरसंहार के बाद रणवीर सेना की ओर से नरसंहार होने लगा । 
        जिस तरह से ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई वाली रणवीर सेना कत्लेआम मचाती थी । महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ती थी । एक-एक नरसंहारों को अंजाम दिया । उससे  इतिहास में ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम एक कातिल के रूप में दर्ज होगा, लेकिन जातिगत समीकरण में उलझे बिहार का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो उन्हें 'वीर ब्रह्मेश्वर' के नाम से याद रखेगा ।