सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

'समाजवादी संत' के नाम एक चिट्ठी

नेताजी, 
मेरी राजनीतिक समझ के हिसाब से आपकी ज़िंदगी में 23 अक्टूबर की तारीख बहुत ही दर्दनाक होगी। तकलीफ देनेवाली होगी। झकझोरनेवाली होगी। तिनका-तिनका जोड़कर जिस पार्टी को आपने बनाया। जिस परिवार को आपने दशकों तक जोड़ कर रखा। उसके दो फाड़ साफ-साफ दिख रहे थे। आपकी भावुकता इसे प्रमाणित करता है। लेकिन महाबैठकों के बाद ऐसे लग रहा है कि परिवार में मचे तूफान को  आपने तत्काल थाम लिया है। हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ये सुलह कब तक रहेगी? क्योंकि ये पार्टी के ऊपर परिवार और ईगो की लड़ाई है। खैर, ये सब आप बेहतर जनते होंगे। लेकिन मेरा सवाल इसे कहीं दूसरा है।  24 अक्टूबर को जब आप महाबैठक में बोल रहे थे, तो आपने कई सारी बातें कही। आपने मुख्यमंत्री को बेटे के अंदाज में फटकारा तो भाई का साथ दिया। उन्हें पुचकारा। आपने बहुत सारी अच्छी बातें कही। जो किसी अनुभवी नेता को कहनी चाहिए। जो एक पिता को कहनी चाहिए। लेकिन आपकी बातों से मेरे दिमाग में कुछ सवाल कौंध रहे हैं, क्योंकि आप लोहिया की समाजवादी विचारधारा की बात करते हैं। क्योंकि आपको कुछ लोग आपको समाजवादी  संत कहते हैं। समाजवादी शिरोमणि कहते हैं।

नेताजी, आपने कहा कि मुख्तार अंसारी का परिवार ईमानदार है। जो फैसला हुआ वो पार्टी के हित में हुआ। सर, आपको किस हिसाब से मुख्तार अंसारी का परिवार ईमानदार लगता है। क्या आपको पता नहीं है कि मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल का रॉबिनहुड यूं ही नहीं कहा जाता है। क्या आपको पता नहीं है कि मुख्तार पर धमकी देने, हत्या, वसूली, दंगा भड़काने के कितने केस दर्ज हैं। क्या आपको पता नहीं कि वो आपराधिक गिरोह चलता है। पूरा परिवार उसके साथ है। क्या आपको याद नहीं कि पहले भी वो आपके साथ था। फिर चला गया। फिर सटा। वो मौका परस्त है। क्या सच में मुख्तार का परिवार आपको ईमानदार लगता है। अगर हां  तो वाकई आप समाजादी संत हैं।

नेताजी, आपने संकेत में ही सही लेकिन अखिलेश यादव को कहा कि वो शराबियों और जुआरियों की मदद कर रहे हैं। सर, वो तो ठीक है। हो सकता है कि कर रहे होंगे। लेकिन जिन-जिन लोगों की तारीफ में आप कसीदे पढ़ रहे थे। क्या वो कैसे हैं आपको नहीं पता है। वो किन-किन लोगों की मदद कर रहे हैं ये आप नहीं जानते। अगर नहीं जानते हैं तो वाकई आप समाजवादी संत हैं। 

नेताजी, आपने कहा कि युवा हमारे साथ हैं। तो सर, ये आप जान लीजिए कि आज की तारीख में समजावादी पार्टी का वही युवा आपके साथ हैं, जिसका कोई निजी हित होगा। अगर आप  अब भी ये मानने के लिए तैयार नहीं है कि समाजवादी युवाओं का असली नेता अखिलेश यादव हैं तो वाकई आप समजावादी संत हैं। 

नेताजी, आपने कहा कि शिवपाल आमलोगों के नेता हैं। कई लोगों ने चापलूसी को धंधा बना लिया। सर, इसमें कोई शक नहीं कि शिवपाल आमलोगों के नेता हैं। लेकिन क्या शिवपाल चापलूस नहीं हैं। क्या वो आपकी चापलूसी नहीं करते हैं। लोगों के बीच शिवपाल यादव की छवि कैसी है ये आपको पता नहीं है। कैसे-कैसे कब्जाधारियों से शिवपाल के संपर्क हैं ये आपको नहीं मालूम हैं। अगर नहीं है तो आप वाकाई समाजवादी संत हैं।

नेताजी, आपने अमर सिंह को अपना भाई बताया। उनके  कई अहसानों का जिक्र किया आपने। कुछ का नहीं किया। कर भी नहीं सकते। ये सबको पता है। खैर। आप भूल गए कि आपका ये भाई कुछ महीने पहले तक आपको क्या-क्या कहता था। आप भूल गए कि पार्टी से जब आपने अमर सिंह को बाहर कर दिया था, तो उन्होंने आपके लिए कैसे-कैसे विशेषणों का इस्तेमाल किया था। कैसे-कैसे मुहावरे और शेरो-शायरी पढ़ता था आपके लिए। अगर आप वाकई भूल गए हैं तो आप सही में समजावादी संत हैं।

नेताजी, आपने कहा कि लाल टोपी पहनकर कोई समजवादी नहीं बन जाता। आपने बिल्कुल ठीक बातें कही। लेकिन लाल टोपी पहनाकर आपने ही लोगों को समजावादी बनाना सिखाया है। अमर सिंह और जयाप्रदा को क्या पता कि समाजवाद का संघर्ष क्या है। अखिलेश, धर्मेंद्र, रामगोपाल, डिंपल, तेजप्रताप को तो आपने ही लाल टोपी पहनाकर समाजवादी बनाया। आपने तो कल्याण सिंह और उनके बेटे को भी टोपी पहनाकर समाजवादी बना दिया था। क्या आपको याद नहीं है। अगर याद नहीं है तो ठीक ही लोग आपको समजावादी संत कहते हैं।

नेताजी, आपने अपने भाषण के दौरान एक बार समाजवाद की परिभाषा पूछी थी। जाहिर वो अखिलेश और अखिलेश समर्थकों के तरफ उछाला गया सवाल था। लेकिन एक बात बताइए सर कि आपकी पार्टी के कितने लोग समजावाद का असली मतलब समझते हैं। अगर एक-आध समझते भी हैं तो क्या वो उसपर अमल करते हैं। अगर आप इसका जवाब नहीं देंगे तो वाकई आप समजावादी संत हैं।

नेताजी, आपने एक बार जिक्र किया कि समाजवादी पार्टी टूट नहीं सकती। तो सर ये बात एक मंझे हुए नेता के तौर पर बिल्कुल ठीक है। पार्टी सुप्रीमो होने के नाते कहा तो भी ठीक। लेकिन हकीकत आफ जानते हैं। आपको पता है कि आपकी पर्टी, आपके परिवार में खेमेबाजी किस हद तक है। अब तो पार्टी अंदर से बिखर चुकी है। आपकी लाज रखकर दोनों गुट कब तक एक रहते हैं ये देखना है। फिर भी आपको लगता है कि पार्टी नहीं टूटेगी तो आप वाकई समाजवादी संत हैं। 

आखिरी में नेताजी, पार्टी में चल रहे झगड़ों से आपका दुखी होना लाजिमी है। लेकिन आप वक्त को समझिए। अब अखिलेश युग आ चुका है। साइकिल पर चढ़नेवाले भी अब लैपटॉप की बात करते हैं। जाति और धर्म की सियासत ठीक है। लेकिन इससे कहीं ऊपर अब विकास की सियासत पहुंच चुकी है। इसमें आपसे और शिवपाल यादव से अखिलेश कहीं आगे हैं। अगर आप नहीं समझ रहे हैं तो वाकई आप समाजवादी संत हैं।

धन्यवाद

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

'दलाली' के बाद ममा-बाबा की बात

बाबा के एक बयान के बाद टीवी पर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी थी। एंकर सब गला फाड़कर चिल्लाने लगा था। तभी मैडम के फोन की घंटी बजी। पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता ने फोन किया था। 
मैडम, बाबा ने क्या कहा दिया है सुना आपने?  
हां, सुना है।
मैडम, वो मीडिया वाले मेरे घर के बाहर खड़े हैं। रिएक्शन मांग रहे हैं।
छोड़ो अभी। कोई रिएक्शन मत दो। फोन कर रहा है तो कह दो कि मुझे इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
जी मैडम। 
फोन रखते ही। दूसरे नेता का फोन। मैडम ने उसे भी यही बातें कही। फिर तीसरा। फिर चौथा। फिर पांचवा। फिर एक-एक कर न जाने पार्टी के कितने पदाधिकारियों के फोन आ गए। सिर्फ यही पूछने के लिए मैडम, बाबा के बयान पर क्या रिएक्शन दूं।
अंत में मैडम झल्ला गईं। दो-चार नेताओं को झाड़ लगाई। मोबाइल को साइलेंट मोड में रख दिया। फोन से रिसिवर हटा दिया। बेटी को भी अपने घर बुला लिया। सलाहकार मियां को भी बुला लिया था। बिन बुलाए आफत के बारे में दोनों मां-बेटी सोच ही रही थी कि सभा खत्म करने के बाद बाबा घर आए। अपने घर जाने की बजाय सीधे ममा से मिलने पहुंचे।
मैडम ने पूछा- आ गए। हां ममा, जवाब मिला।
पता है तुझे, आज फिर तुमने बोलते-बोलते क्या बोल दिया।
येस ममा। लेकिन ममा, मैं तो कड़े शब्दों में फेकू पर अटैक रहा था। मीडिया अटेंशन के लिए। 
लेकिन दलाली शब्द बोलने की क्या जरूरत थी?
मैंने तो ऐसे ही बोल दिया था ममा।
क्या ऐसे ही बोल दिया। 12 साल में तुमने कुछ नहीं सीखा। सही में तुम पप्पू हो। लोग कुछ गलत नहीं कहते।  
ममा के मुंह से पप्पू सुनते ही बाबा गुस्सा गए। तुनकते हुए कहा- आपने भी तो एक बार उसे मौत का सौदागर कहा था। मैंने तो सिर्फ दलाल ही कहा है। इतना ही नहीं। आपने तो ये भी एक बार कहा था कि फेकू जहर की खेती करता है।
ये क्या फेकू-फेकू  बोल रहे हो। 'डिग्गी' ने एक बार सिखा दिया। वही रट्टा मार लिया। अपने मन से भी कुछ बोलो। और हां, वो जब मैंने मौत का सौदागर बोला था, तब क्या हुआ था, तुम्हें याद है। गुजरात में कितनी कम सीटें मिली थी कांग्रेस को। उससे भी कुछ नहीं सीख पाए पप्पू। सच तो ये है कि तुम्हें कुछ याद ही नहीं रहता। नशे से बाहर निकलो तब तो।
ऐसे मत बोलिए। रट्टा मार के न बोलूं तो क्या बोलूं। पूरे यूपी में घूम-घूमकर वही बोला जो रट्टा मारा था। एक बार अपने मन से बोल दिया तो आप लोग कह रहे हैं कि गोबर कर दिया। 
ममा निराश होकर बोली। जा पप्पू। तेरा कुछ नहीं होगा। कब तू बड़ा होगा पता नहीं। इसीलिए तुम्हारी शादी भी हम नहीं करवा रहे हैं।
जो होगा। सो होगा। लेकिन आप मुझे पप्पू मत कहा कहिए हां।
रूठ कर बाबा मां के कमरे से बाहर निकले। अपने घर पर पहुंचे। उस कमरे में खुद को बंद कर लिया, जहां गांजा, अफीम जैसे कुछ चीजें रखी हुई थी। उधर दूसरी तरफ मैडम अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई।