शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

दिल्ली में 'वाद' का अवसाद

नीडो तानिया की मौत ने बेदर्द दिल्ली की घटिया सोच को नंगा किया है। आज पहली बार उस मसले पर सार्वजनिक रूप से चर्चा हो रही है जो सालों से नासूर बना हुआ है। जिसके शिकार हजारों लोग हर रोज होते हैं। दिल्ली के हर गली मुहल्ले में जलालत का जहर पीकर जो लोग घुट घुट कर जीने को मजबूर हैं, उन्हें एक उम्मीद दिख रही है। संसद से सड़क तक, मीडिया में और चाय की दुकान पर दिल्ली की नस्लवादी और क्षेत्रवादी सोच मुद्दा बना हुआ है।

नस्लवाद और क्षेत्रवाद के शिकार लोगों की सिसकियां पहली बार बुलंद आवाज बनी है। लोग एकजुट हैं। सड़क पर हैं। भूखे पेट प्रदर्शन कर रहे हैं। लाठियां खा रहे हैं। क्योंकि इंसाफ चाहिए। जिस घुटन की जिंदगी जीने को मजबूर हैं, उससे आजादी चाहिए। सालों से झेल रहे मानसिक प्रताड़ना से निजात चाहिए। एक हिंदुस्तानी होने का पूरा अधिकार चाहिए।

नॉर्थ इस्ट के लाखों लोग दिल्ली में हैं। कुछ पढ़ते हैं। कुछ नौकरी करते हैं। कुछ बिजनेस करते हैं। अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं। अनजान शहर में अजनबियों के बीच हजारों लड़कियां अकेले रहती है। महज आत्मविश्वास के आसरे। जो लड़कियां हिम्मत की मिसाल हैं। उन्हें हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता है।

ये कितनी शर्म की बात है कि एक लड़के की हत्या इस वजह से कर दी जाती है क्योंकि उसका शक्ल ओ सूरत आम दिल्लीवालों के जैसा नहीं है। उसका हेयर स्टाइल थोड़ा अलग है। वो शुद्ध हिंदी नहीं बोल सकता। उसके ऊपर अश्लील कॉमेंट किये जाते हैं। उसे जलील किया जाता है। विरोध करने पर पीट पीट कर मार दिया जाता है।

दरअसल दिल्लीवालों के रगों में क्षेत्रवाद और नस्लवाद का अवसाद कूट कूट कर भरा है। मौका मिलते ही इसकी नुमाइश करने से नहीं चूकते। हर दिन सैकड़ों लोग घटिया मानसिकता के शिकार होते हैं। जिस तरह ये नॉर्थ इस्ट के लोगों से गैर हिंदुस्तानी की तरह व्यवहार करते हैं वैसे ही बिहारियों के ऊपर भी ओछी टिप्पणी करने से गुरेज नहीं करते। दिल्लीवालों ने बिहारी शब्द तो गाली बना दिया है।  


अच्छी बात ये है कि ओछी मानसिकता से ग्रसित लोग यहां टुकड़ों में बंटे हुए हैं। अगर शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सरीखे पार्टियां दिल्ली में होती तो यकीन जानिए यहां के हालात और ज्यादा खराब होते। हर दिन यहां एक नीडो बेमौत मारा जाता। 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सही कहा आपने हम अपने देश में भी सुरक्षित नहीं रह सकते। फिर दूसरे देशो से क्या अपेक्षा करे

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