रविवार, 19 मई 2013

क्रिकेट में फिक्सिंग का ‘A’ कनेक्शन


  क्रिकेट में स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में जिन तीन क्रिकेटरों को गिरफ्तार किया गया है, उसमें सबसे ज्यादा चर्चा श्रीसंत की हो रही है। स्वभाविक है, श्रीसंत वर्ल्डकप विजेता टीम के हिस्सा रह चुके हैं। श्रीसंत टेस्ट खिलाड़ी रह चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में श्रीसंत का कद इतना तो जरूर है, जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन इस सबसे अलग मेरी नजर बाकी दो क्रिकेटरों पर है। जिनके नाम अंकित चव्हाण और अजीत चंदीला है। ये अलग बात है कि इन दोनों की क्रिकेट में कोई खास पहचान नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग इन्हें नहीं जानते हैं। लेकिन एक बात है जो फिक्सिंग की दुनिया में इन्हें खास बनाती है। वो है इनके नाम।

दरअसल दोनों के नाम की शुरुआत अक्षर से होता है। और स्पॉट फिक्सिंग में भारतीय खिलाड़ियों की लिहाज से अक्षर विशेष महत्व रखता है। क्योंकि इन तीनों के अलावा जिस क्रिकेटर पर आईपीएल में फिक्सिंग का शक है, उसका नाम भी अक्षर से ही शुरू होता है। (आजिंक्य रहाणे)

इसके अलावा पुलिस ने अमित सिंह नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है, जो कभी गुजरात की रणजी टीम का हिस्सा था। आईपीएल खेल चुका है। लेकिन बेहतर क्रिकेटर नहीं बन पाया तो सट्टेबाज और क्रिकेटर का दलाल बन गया।

इसे इत्तेफाक कहिए या कुछ और। लेकिन उसका नाम भी अक्षर से ही शुरू होता है।

स्पॉट फिक्सिंग, भारतीय क्रिकेट और अक्षर का बेजोड़ समीकरण है। क्योंकि इससे पहले भी दावत, दौलत, औरत और शोहरत के चक्कर में जेंटलमैन खेल को शर्मसार करने का आरोप जिन दिग्गजों पर लगा उनके नाम भी  अक्षर से ही शुरू होता है।

टीम इंडिया के सबसे बेहतरीन कप्तान अहजरूद्दीन का कैरियर इसी फिक्सिंग की बजह से बर्बाद हुआ। अजहर पर दक्षिण अफ्रिका के खिलाफ मैच फिक्सिंग का आरोप लगा। उन्हें टीम से निलंबित कर दिया गया। क्रिकेट खेलने पर ताउम्र प्रतिबंध लग गया। हालांकि बाद में ये प्रतिबंध हटा। लेकिन जब तक वो खुद को बेकसूर साबित करते, तब तक उनका कैरियर खत्म हो चुका था।

कमोबेश ऐसा ही आरोप अपने जमाने के सबसे बेहतर बल्लेबाज अजय जडेजा पर लगा था। अजय का क्रिकेट जब पूरे फॉर्म में था, तभी उनपर भी फिक्सिंग का दाग लगा। जडेजा का कैरियर भी खत्म हो गया।

दोनों दिग्गजों के नाम की शुरूआत अक्षर से ही होता है।

जिस दौर में अहजरूद्दीन और अजय जडेजा पर फिक्सिंग का आरोप लगा था, उस समय एक और खिलाड़ी था, जो फिक्सिंग के फांस में फंसा था। उसका भी नाम अक्षर से शुरू होता है। नाम है अजय शर्मा। चूकि अजय शर्मा का कद अजहर और जडेजा के बराबर नहीं था, लिहाजा उनके नाम की जर्चा ज्यादा नहीं हुई।

क्रिकेट की कलंक कथा का सबसे काला अध्याय है फिक्सिंग। एक ऐसा पाप जिसने जेंटलमैन खेल को शर्मसार कर दिया। इसमें अक्षर के क्रिकेटरों का पूरा योग्दान है। मेरा नाम भी अक्षर से ही शुरू होता है। लेकिन राहत की बात ये है कि मैं क्रिकेटर नहीं क्रिकेट प्रशंसक हूं। 

बुधवार, 15 मई 2013

मैं जेल जा रहा हूं !



मैं आप सबसे दूर जा रहा हूं। बहुत दूर। जहां न तो मेरी बीवी का बेइंतहा प्यार साथ होगा। न ही मेरे बच्चों का हंसता-खिलखिलाता दुलार होगा। ना ही मेरी बहनें मेरे साथ होगी और ना ही बुलंदी की असमीति ऊंचाई पर पहुंचानेवाले आप लोग होंगे। मैं उस जगह पर जा रहा हूं जहां सिर्फ मैं और मेरी तन्हाई होगी। अकेलापन होगा। यादें होंगी।

हर भूल का प्रायश्चित होता है। मैं भी प्रायश्चित करने जा रहा हूं, उस गलती का, जो नादानी में, अनजाने में मुझसे हो गया था। मैं उसी गुनाह की सजा भुगतने जा रहा हूं। मैं जेल जा रहा हूं। जहां आपके प्यार के भरोसे मुझे साढे तीन बरस बिताने हैं।

जेल में जिंदगी के साढे तीन बरस कम नहीं होते। बहुत कुछ बदल जाते है। इस दौरान बहुत कुछ सहना पड़ता है। अहसास है मुझे कि कैसे जेल में दिन बिताने पड़ते हैं। कैसे जिल्लतभरी जिंदगी जी जाती है वहां पर। पूरे डेढ़ साल रह चुका हूं मैं उस काल कोठरी में। जहां आजादी का कतराभर रौशनी नसीब नहीं होती। जहां पर बेबसी और लाचरगी ठहाके लगाती रहती है। और लोग बेचारे की तरह सबकुछ देखते रहते हैं।

इस बार पूरे साढे तीन बरस तक मैं सबसे दूर रहूंगा। मैं अपने परिवार को आपके भरोसे छोड़कर जा रहा हूं। मेरी बीवी, मेरे बच्चे आप ही के आसरे हैं। उम्मीद है, जरूर ख्याल रखेंगे आपलोग।
साढ़े तीन बरस कम नहीं होते उस औरत के लिए जिसका पति उससे इतना दूर हो कि चाहकर भी वो मिल न सके। जिसके साथ अपना दुख दर्द नहीं बांट सके। जिसने जिंदगी भर साथ निभाने का वादा करके उसे अपने घर लाया और अब उसके होठों पर सिसकियां और आंखों में आंसू छोड़कर खुद जेल चला गया।

जिंदगी के साढे तीन बरस कम नहीं होते उन नादान बच्चों के लिए जिन्हें अपने पिता का प्यार नहीं मिला। मेरे बच्चों को जिस उम्र में मेरे साथ की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उसी वक्त मैं उससे दूर जा रहा हूं। जब मैं लौटकर आऊंगा तब तक मेरे बच्चे बड़े हो जाएंगे। वे स्कूल जा रहे होंगे। हो सकता है कि जब मैं अपना दाग धोने के बाद आजाद होकर दोबारा उनसे मिलूंगा तो वे मुझे पहचान भी ना पाएं। मेरे लिए कितना दर्दनाक होगा वो पल, जब मेरे बच्चे मुझे नहीं पहचान पाएंगे। सोच सोचकर मरा जा रहा हूं। मैं समझ रहा हूं। सिर्फ कानून का ही गुनहगार नहीं, अपने परिवार का भी गुनहनगार हूं मैं।

गुनहगार हूं मैं उनलोगों का जिनकी फिल्मों में मैं काम कर रहा हूं। मेरी वजह से कई फिल्में अधूरी रह गई। कई लोग बेरोजगार हो गए। कइयों की जिंदगीभर की कमाई दांव पर लगी है। अदालत से सजा मिलने के बाद जितना हो सका, मैंने किया। लेकिन जो नहीं हो सका उसके लिए मैं क्षमा मांगता हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरी लाचरगी को आप जरूर समझेंगे।

मुझे यकीन है कानून पर। भरोसा है देश के संविधान पर । मैं इज्जत करता हूं इस देश का, जहां की मिट्टी में पलकर मैं बड़ा हुआ हूं। जहां के लोगों ने मुझे सिर आखों पर बिठाकर रखा। मैं इस देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश का सम्मान करने जा रहा हूं।

जब मैं लौटकर आऊंगा, तब तक बहुत कुछ बदल चुका रहेगा। मुझको लेकर लोगों का नज़रिया बदल जाएगा। लोगों की सोच बदल जाएगी। मुझको लेकर लोगों में सहानुभूति होगी। अपनापन होगा। और ज्यादा प्यार होगा। लेकिन नहीं होगा, तो बीचे के ये साढ़े तीन बरस।