गिरिराज सिंह ने सोनिया गांधी को लेकर जिन शब्दों का
इस्तेमाल किया वो बेहद निंदनीय है। घटिया है। अफसोसजनक है। ऐसी ओछी बातों की जितनी
भर्त्सना की जाए, कम है। लेकिन उससे ज्यादा अफसोसजनक
है, उस बेहूदे बयान पर हो रही स्तरहीन राजनीति। बयानबाजी। प्रदर्शन।
आगजनी। घेराव। हंगामा। सवाल है कि महिलाओं का सम्मान क्या इसी बयानबाजी, प्रदर्शन, हंगामा और राजनीति से मिल जाएगी। या फिर इस
तरह हंगामा और विरोध करने से बेजुबान नेताओ पर लगाम लगेगा। कतई नहीं।
ना तो गिरिराज सिंह कोई पहले नेता हैं जिन्होंने महिलाओं
को लेकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और ना ही वो आखिरी नेता हैं। महिना भर पहले बिहार
में राज करने वाली पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष ने दक्षिण भारतीय महिलाओं को लेकर बेहूदी
टिप्पणी की थी। तब भारतीय जनता पार्टी ने इसकी कड़ी आलोचना की थी। कांग्रेस समेत कई
पार्टियों ने शरद यादव के बयान को ओछा बताया था। बावजूद इसके तथाकथित समाजवादी नेता
शरद यादव अपनी बात पर अड़े रहे। माफी मांगने की तो बात छोड़िए।
महिलाओं को लेकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल करनेवालों की
फेहरिस्त कांग्रेस में भी छोटी नहीं है। काफी लंबी है। केंद्रीय मंत्री रहते सुशील
शिंदे या फिर केंद्रीय मंत्री रहते श्रीप्रकाश जायसवाल या फिर दिग्विजय सिंह हों। लेकिन
न तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया और न ही पार्टी ने उन्हें बाहर निकाल दिया।
और उस वक्त यही बीजेपी महिला सम्मान के नाम पर छाती पीट रही थी। और आज वही बीजेपी कह
रही है कि गिरिराज सिंह ने माफी तो मांग ली, फिर हंगामा क्यों?
कांग्रेस-बीजेपी ही क्यों। समाजवादी पार्टी के मुखिया
मुलायम सिंह यादव से लेकर अदना तक विधायक तक। महिलाओं को लेकर हर किसी की गंदी सोच
समय-समय पर बाहर निकलती रहती है। या फिर दीदी की पार्टी के विधायक हों या फिर डीएमके
के कार्यकर्ता। महिलाओं के सम्मान को ताक रखने वाले कभी किसी नेता पर किसी पार्टी ने
कोई कार्रवाई नहीं की। ज्यादा से ज्यादा माफी मांग ली। मतलब साफ है। सब ने दिखावा किया।
हिन्दुस्तान की हर सियासी पार्टी में "गिरिराज"
नाम का तत्व पाया जाता है। जो अपने घर में हर किसी को स्वीकार है, लेकिन दूसरा कोई है तो बर्दाश्त नहीं। ऐसे 'गिरिराजों'
पर कानूनी कार्रवाई की जरूरत है ना कि सियासी प्रदर्शन की। ऐसे ऐसों
को चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का कानून बना दीजिए। फिर देखिए। कोई महिलाओं को लेकर चूं
तक नहीं करेगा। गोरी-काली-दक्षिण भारतीय-टंच माल-मजा-परकटी।हर शब्द भूल जाएंगे।
लेकिन यकीन मानिए। ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। कभी नहीं
होने वाला है। क्योंकि "नारी सम्मान" के नाम पर खालिस सियासत हो रही है। सियासत का सूत्र कहता है कि ऐसे मामलों को दबाने
के बजाय उछालो। टीवी, अखबार, इंटरनेट
पर सुर्खियां बने रहे। भावनाओं से जोड़ो। लिहाजा पार्टी के बरिष्ठ नेता तामझाम के साथ
प्रेस कॉन्फ्रेंस करने बैठ जाते हैं तो कर्मचारी टाइप कार्यकर्ता झंडा, बैनर, पेट्रोल और माचिस लिए सड़क पर उतर जाते हैं। इस
बार भी वही हो रहा है। चूकि नारी सम्मान के केंद्र में इस बार हिंदुस्तान की सबसे पुरानी
और समृद्ध पार्टी की अध्यक्ष हैं तो जाहिर है कि तपीश कुछ ज्यादा है। कुछ दिन बाद सब
भूल जाएंगे।
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