किसान कौन हैं? किसानी क्या है? दरअसल मजाक है। मजाक करने का साधन है। इतिहास गवाह है। जिसको जब मौका मिला। हर किसी ने छलात्कार किया है। किसानों का। किसी ने मासूमियत को छला। किसी ने हैसियत को रौंदा। कभी कुदरत ने। कभी इंसानों ने। सिर्फ नाम रख दिया अन्नदाता।
निजाम बदला। नियति नहीं। काल, राज और सरकार बदलते गए। किसानों की तड़प से खेलना बंद नहीं हुआ। मुगल काल से ब्रिटिश की गुलामी और आजाद हिंदुस्तान की सरकार तक। देश के चौकीदार से लेकर पंचायत के ठेकेदार तक। अफसर। कर्मचारी तक। हर किसी ने किसानों को चूसा। किसी ने जबरन टैक्स वसूला। किसी ने जबरन खेती करवाई। कोई जबरन जमीन छीन रहा है।
बाढ़ में बह चुकी फसल। ओला से बर्बाद हुई फसल। वादों से वापस नहीं मिलती। सूखे खेतों में नेताओं की संवेदना जताने भर से उपज नहीं होती। उपाय से होती है। जो कभी नहीं होता। बस दिखावा होता है। वही हो रहा है।
ठीक डेढ़ बरस पहले कांग्रेस की सरकार थी। हरियाणा में किसानों को 6 रुपए का मुआवजा दिया था। चेक काटकर। हुड्डा सरकार ने। आज बीजेपी की सरकार है। बारिश के बाद फसल बर्बाद हुआ। खुद सोनिया गांधी पहुंच गईं। किसानों से मिलने। वादा किया है कि केंद्र सरकार से उनके लिए बातें करेंगी। पता नहीं दिखावे और ढकोसले की पढ़ाई किस यूनिवर्सिटी में होती है। हद है। किसानों की मासूमिय से खेलने में कांग्रेस के नेता तो पीएचडी हैं।
हिंदुस्तान सत्य है। तो खेती भी सत्य है। किसान भी सत्य हैं। लेकिन खेती और किसानों का तो रामनाम सत्य हो रहा है। क्यों ? वजहें क्या है? प्रधानमंत्री मोदी को नहीं पता। उन्हें ये जानने के लिए किसानों से चिट्ठियां मंगवनी पड़ी। बताइए इससे भी बड़ा मजाक कुछ हो सकता है क्या? लेकिन इससे भी बड़ा मजाक हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद किया। किसानों से मन की बात के जरिए।
एक महीना पहले ही डंके की चोट पर ऐलान हो चुका था। प्रधानमंत्री मोदी खेती की बात करेंगे। किसानी की बात करेंगे। किसानों की बात करेंगे। चिट्ठियां मंगवाई गई। मोदी जी ने खुद कहा। किसानों की जरूरतों का पूरा पुलिंदा जमा हो गया। लेकिन जब प्रधानमंत्री जी ने बोलने के लिए अपना चिट्ठा खोला तो बस किसानी, खेती, उनकी जरूरतें, उनकी समस्याएं, उनका दर्द, उनकी परेशानी, सब मजाक की पोटली में बंधकर रह गई।
लोग तो ये सोचकर रेडियो कान में सटाकर बैठे रहे कि आप बताएंगे कि ब्लॉक में खाद, बीज नहीं देनेवाले बाबूओं पर आप तुरंत क्या और कैसे कार्रवाई करेंगे? सभी किसानों को खाद, बीज मिलेगा? बैंक अगर लोन नहीं देता है तो क्या करें ? घूस मांगने वाले बैंक अफसरों पर कार्रवाई के लिए आप क्या कर रहे हैं? कृषि विभाग के कार्यालय में घूस लेता है तो कैसे बंद होंगा? किसान कैसे बेहतर बनेंगे? क्या-क्या योजनाएं हैं जिसका सीधा लाभ किसानों को मिलेंगे? पशुपालन के लिए लोन लेने के लिए जूते घिस जाते हैं। कैसे तुरंत लोन मिल जाएगा। सूखा या बाढ़ आने के बाद मुआवजे में हेराफेरी रोकने के लिए आपने क्या किया? उपज होने के बाद अन्न कैसे बिकेगा? बाजार की क्या व्यवस्था है? FCI अगर कम कीमत पर अनाज लेता है तो उस पर कार्रवाई के लिए आपने क्या किया ? बेबस किसान खुदकुशी न करे, इसके लिए भी कुछ नहीं कहा प्रधाननमंत्री ने।
लगा कि कुछ बाढ़ से बर्बादी रोकन के उपाय बताएंगे। कहेंगे कि बाढ़ का पानी जमा करने के लिए सरकार अगले महीने से कुछ उपाय करने वाली है। लेकिन मोदी जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा। ठगे से रह गए। हां, स्वाइल कार्ड के बारे में अंत में थोड़ी सी चर्चा की। जिसे कुछ दिन पहले उन्होंने खुद शुरू किया था। बाद बाकी भूमि अधिग्रहण पर व्याख्यान देते रहे। जब जमीन अधिग्रहण बिल पर ही बोलना था तो खेती, किसानी, पर तामझाम करने की क्या जरूरत थी। जिसको सुनना होता ये भी सुन लेता।
स्टैंडर्ड मजाक करते हैं मोदी जी। किसानों के नाम पर कई राज्यों में सत्ता सुख भोगनेवाले वामदलों से बेहतर। खुद को किसान नेता बताने वालों का मजाक इससे भद्दा लगता है। करते रहिए मजाक। अच्छा लगने लगा है। अब बस यही समझ में आता है। दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना।
निजाम बदला। नियति नहीं। काल, राज और सरकार बदलते गए। किसानों की तड़प से खेलना बंद नहीं हुआ। मुगल काल से ब्रिटिश की गुलामी और आजाद हिंदुस्तान की सरकार तक। देश के चौकीदार से लेकर पंचायत के ठेकेदार तक। अफसर। कर्मचारी तक। हर किसी ने किसानों को चूसा। किसी ने जबरन टैक्स वसूला। किसी ने जबरन खेती करवाई। कोई जबरन जमीन छीन रहा है।
बाढ़ में बह चुकी फसल। ओला से बर्बाद हुई फसल। वादों से वापस नहीं मिलती। सूखे खेतों में नेताओं की संवेदना जताने भर से उपज नहीं होती। उपाय से होती है। जो कभी नहीं होता। बस दिखावा होता है। वही हो रहा है।
ठीक डेढ़ बरस पहले कांग्रेस की सरकार थी। हरियाणा में किसानों को 6 रुपए का मुआवजा दिया था। चेक काटकर। हुड्डा सरकार ने। आज बीजेपी की सरकार है। बारिश के बाद फसल बर्बाद हुआ। खुद सोनिया गांधी पहुंच गईं। किसानों से मिलने। वादा किया है कि केंद्र सरकार से उनके लिए बातें करेंगी। पता नहीं दिखावे और ढकोसले की पढ़ाई किस यूनिवर्सिटी में होती है। हद है। किसानों की मासूमिय से खेलने में कांग्रेस के नेता तो पीएचडी हैं।
हिंदुस्तान सत्य है। तो खेती भी सत्य है। किसान भी सत्य हैं। लेकिन खेती और किसानों का तो रामनाम सत्य हो रहा है। क्यों ? वजहें क्या है? प्रधानमंत्री मोदी को नहीं पता। उन्हें ये जानने के लिए किसानों से चिट्ठियां मंगवनी पड़ी। बताइए इससे भी बड़ा मजाक कुछ हो सकता है क्या? लेकिन इससे भी बड़ा मजाक हो गया। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद किया। किसानों से मन की बात के जरिए।
एक महीना पहले ही डंके की चोट पर ऐलान हो चुका था। प्रधानमंत्री मोदी खेती की बात करेंगे। किसानी की बात करेंगे। किसानों की बात करेंगे। चिट्ठियां मंगवाई गई। मोदी जी ने खुद कहा। किसानों की जरूरतों का पूरा पुलिंदा जमा हो गया। लेकिन जब प्रधानमंत्री जी ने बोलने के लिए अपना चिट्ठा खोला तो बस किसानी, खेती, उनकी जरूरतें, उनकी समस्याएं, उनका दर्द, उनकी परेशानी, सब मजाक की पोटली में बंधकर रह गई।
लोग तो ये सोचकर रेडियो कान में सटाकर बैठे रहे कि आप बताएंगे कि ब्लॉक में खाद, बीज नहीं देनेवाले बाबूओं पर आप तुरंत क्या और कैसे कार्रवाई करेंगे? सभी किसानों को खाद, बीज मिलेगा? बैंक अगर लोन नहीं देता है तो क्या करें ? घूस मांगने वाले बैंक अफसरों पर कार्रवाई के लिए आप क्या कर रहे हैं? कृषि विभाग के कार्यालय में घूस लेता है तो कैसे बंद होंगा? किसान कैसे बेहतर बनेंगे? क्या-क्या योजनाएं हैं जिसका सीधा लाभ किसानों को मिलेंगे? पशुपालन के लिए लोन लेने के लिए जूते घिस जाते हैं। कैसे तुरंत लोन मिल जाएगा। सूखा या बाढ़ आने के बाद मुआवजे में हेराफेरी रोकने के लिए आपने क्या किया? उपज होने के बाद अन्न कैसे बिकेगा? बाजार की क्या व्यवस्था है? FCI अगर कम कीमत पर अनाज लेता है तो उस पर कार्रवाई के लिए आपने क्या किया ? बेबस किसान खुदकुशी न करे, इसके लिए भी कुछ नहीं कहा प्रधाननमंत्री ने।
लगा कि कुछ बाढ़ से बर्बादी रोकन के उपाय बताएंगे। कहेंगे कि बाढ़ का पानी जमा करने के लिए सरकार अगले महीने से कुछ उपाय करने वाली है। लेकिन मोदी जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा। ठगे से रह गए। हां, स्वाइल कार्ड के बारे में अंत में थोड़ी सी चर्चा की। जिसे कुछ दिन पहले उन्होंने खुद शुरू किया था। बाद बाकी भूमि अधिग्रहण पर व्याख्यान देते रहे। जब जमीन अधिग्रहण बिल पर ही बोलना था तो खेती, किसानी, पर तामझाम करने की क्या जरूरत थी। जिसको सुनना होता ये भी सुन लेता।
स्टैंडर्ड मजाक करते हैं मोदी जी। किसानों के नाम पर कई राज्यों में सत्ता सुख भोगनेवाले वामदलों से बेहतर। खुद को किसान नेता बताने वालों का मजाक इससे भद्दा लगता है। करते रहिए मजाक। अच्छा लगने लगा है। अब बस यही समझ में आता है। दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना।
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