शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

अलगाववादियों के नाम एक चिट्ठी

25 बरस पहले मार-काट कर भगा दिए। अब कहते हो कि उन्हें मेरे घर के पास ही बसाओ। यार तुम्हारे घर के आसपास ही तो रहते थे सब। एक साथ उठते-बैठते थे। खेलते-कूदते थे। तुम्हारे खुशी और गम में शरीक होते थे। अपनो से बढ़कर मानते थे। और तुमलोगों ने एक ही झटके में सबकुछ खत्म कर दिया था। मोटी सी दीवार खड़ी कर दी थी। आज जब उनके लिए तुमलोगों से दूर घर बनाने की बात हो रही है तो कह रहे हो कि दीवार खड़ी मत करो। गजब करते हो यार। यही तो चाहते थे तुमलोग। कि वो तुमलोगों से दूर चले जाएं।

तुम्हीं लोगों ने तो घर जलाये थे उनके। किसी ने बच्चे को मारा था। किसी ने बुजुर्गों को। किसी ने गर्भवती महिलाओं को लूटा था। हिंदुस्तान की धरती पर किसने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे । आइना हाथ में उठाओ तो सही। एक-एक कर बहुत कुछ दिख जाएगा यार। अगर तुम नहीं तो तुम्हारे पुर्वज। अगर तुम में से किसी ने उस वक्त हथियार नहीं उठाए थे तो क्या हुआ। उन्हीं की खींची लकीर पर आगे बढ़ रहे हो। फिर कैसे कोई यकीन करे यार।

आज भी उनके कानों में मस्जिदों से उड़ती वो आवाज गर्म शीशे की तरह गिरती है तो बेचैन हो उठते हैं। इस्लाम कबूलो नहीं तो हत्या की धमकी। पलायन की पीड़ा अंतहीन होती है। खैर, जो हो गया उसे मिटाया नहीं जा सकता। लेकिन नये सिरे से ऐसा माहौल तो जरूर बन सकता है कि वो गम कम हो। वे लोग अपनी जमीन। अपने आवोहवा में लौट जाएं। 25 बरस तक वनबास की तरह जीने का दर्द बहुत जल्दी तो ठीक नहीं होगा। लेकिन जो एक प्रयास हो रहा है उसे होने दो। उनलोगों को कश्मीर लौटने दो।

अगर तुमलोग वाकई भाईचारे में भरोसा करने लगे हो तो ठीक है। उन्हें अलग कॉलोनी में रहने दो ना । कॉलोनी अलग रहने से क्या फर्क पड़ता है। दूर से भी उन्हें अहसास दिला सकते हो कि तुमलोग अब भरोसे के काबिल हो। तमाम गलतफहमियां मिट चुकी है। जो गिला-शिकवा था वो खत्म हो चुका है। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहते। क्योंकि तुम्हारा मकसद कुछ और है। तुम सियासत करते हो। खुदा के लिए सियासत करने के और भी कई मुद्दे हैं यार। समाज को बसाओ। इंसानियत दिखाओ। खुदा भी खुश होंगे।

हकीकत कड़वी होती है। लेकिन जो सच है वो है। बताओ यार जब-जब विपदा आती है, तो कहां लापता हो जाते हो। एक साल के भीतर जम्मू-कश्मीर में छोटी-बड़ी दो बड़ी विपदा आई। जिसे तुम आजाद कराने की नापाक सोच रखते हो। जिसका तुम खुद को खुदा कहते हो। वहां मुश्किल की घड़ी में कहां गुम हो गए थे। कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे थे। एक लोगों की जान बचाई होती तो समझ में आता। लेकिन ये तुम्हारे बस की बात नहीं है। तुम तो नफरत फैलाना जानते हो। दूसरों के हाथों की कठपुतली बनकर रह चुके हो। असलियत को समझो। हिंदुस्तान ही तुम्हारा मुल्क है। तुम हिन्दुस्तान के हिस्सा हो। अपनी हिस्सेदारी के लिए लड़ो।


बहुत दिनों के बाद एक अच्छी पहल हो रही है। होने दो। लाखों लोगों को घरवापसी की उम्मीद जगी है। तुमलोग अगर वाकई उनके हिमयती हो तो बस इतना सा कर दो कि उन्हें आगे कोई तंग न करे। क्योंकि तुम वहां बहुसंख्यक हो। सब मिलकर आतंकियों के खिलाफ लड़ो। कश्मीरी पंडित अगर मुसीबत में हों तो तुम पनाह देना। वे अपने आप तुम्हारे करीब आते आजाएंगे। वे तुम्हारे हैं। तुम उनके हो। दूसरों को इससे क्या लेना देना। तुम सब मिलकर रहो। खुश रहो। मुल्क ऐसी ही तो आगे बढ़ेगा। बस, इस पर सियासत मत करो। प्लीज।  

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