प्रिय नरेंद्र मोदी
संसद में आपका वक्तव्य सुन रहा था। आप ने देशभक्ति के नाम पर मेरा भी जिक्र किया।आपने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लिए आपके नेता यानी मैंने कुर्बानी दी। मेरी देशभक्ति याद रखने के लिए आभार।
आपने अब तक मुझे याद रखा लेकिन हमारी नीति भूल गए। पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में जो हो रहा है उससे मैं काफी आहत हूं। क्यों ऐसा लग रहा है कि कुर्सी और अहंकार में आपलोग अपना अस्तित्व भूलते जा रहे हैं। आपलोगों को स्मरण नहीं है कि कश्मीर को लेकर मैंने क्या सोचा था। मेरा, हमारी पार्टी का क्या सिद्धांत था। आपने हमारे सिद्धांत को सूली पर लटका दिया।
सत्ता में साझेदारी के लिए क्यों उस व्यक्ति से हाथ मिला लिया, जिसकी नीति हमारी नीति के विपरित है। जो देश द्रोहियों का हिमायती है। जो दुश्मन देश का परस्त है। मैं आपलोगों का अशुद्ध गठबंधन देखकर हैरान हूं।
आपका नया दोस्त मुफ्ती मोहम्मद सईद हर दो दिन पर मेरे सीने में नश्तर चुभा रहा है। हमारे सिद्धांत को रौंद रहा है। आपलोग कुर्सी की खातिर सब देख रहे हैं। सुन रहे हैं। सह रहे हैं। क्या हो गया है आपलोगों को।
मुफ्ती के शपथग्रहण समारोह में आप भी मौजूद थे।आडवाणी और जोशी भी थे।आपलोगों के सामने टेबल पर दो-दो झंडा फहरा रहा था। शूल की तरह चुभ रहा था वो दूसरा झंडा।
धारा 370 को हटाने के लिए मैंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। एक देश में दो निशान,दो प्रधान, दो विधान के खिलाफ मैंने लड़ाई लड़ी। नेहरू से बगावत की। शेख अब्दुल्ला से अदावत की। मुझे जान तक गंवानी पड़ी। और आपने एक झटके में उससे समझौता कैसे कर लिया।
आपने शायद अध्ययन किया होगा कि राष्ट्र के लिए मैंने कुर्सी त्याग दिया था। इसी कश्मीर के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। सरकार की मनाही के बावजूद मैंने 1953 में कश्मीर के लिए इसलिए प्रस्थान किया था, क्योंकि मेरे लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। अखंड भारत के सपने को पूरा करना चाहता था।
मैं जम्मू-कश्मीर को भी पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह देश का हिस्सा बनाना चाहता था। मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।फिर क्या-क्या हुआ मेरे साथ, उसका जिक्र नहीं करना चाहता। वो दर्द तो गैरों ने दिया था। लेकिन 6 दशक के बाद आपलोग जो दर्द दे रहे हैं, वो बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है।
ऐसा लग रहा है कि आपलोग मेरे नाम का सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं। अपने फायदे के लिए। मैं जो काम अधूरा छोड़कर आया था, उसे आपलोगों ने सब्र के कब्र में दफ्न कर दिया। क्यों ऐसा लग रहा है कि आपलोग मात्र अपने फायदे के लिए मेरा नाम लेते हैं। मेरी नीति, मेरे सिद्धांत से आपलोग सिर्फ सत्ता के लिए वास्ता रखना चाहते हैं। कुर्सी के मोह में कुछ भी कर रहे हैं। कृपा करके आप लोग सत्ता के शीर्ष पर हुंचने की सीढी मुझे मत बनाइए।
आप देश के प्रधानमंत्री हैं। उस पार्टी के निर्विवादित नेता हैं, जिसका बीज हमने कुछ साथियों के साथ करीब छह दशक पहले बोया था। सुना है कि आज की तारीख में आप से पूछे बगैर पार्टी में कुछ नहीं होता है। इसलिए ये पत्र आपको लिख रहा हूं।
यहां पर कश्मीरी पंडितों की टोली अक्सर मिलकर मुझसे पूछती है कि कब घर वापसी होगी हमारे बच्चों की। शहीद होकर स्वर्ग पहुंचे सेना के जवान मुझसे मिलने आते हैं। किस - किसको क्या जवाब दूं। आप ही बताइए।
अगर सच में आपलोग मुझे अपना नेता मानते हैं। मेरी नीति पर आपलोगों को भरोसा है। मेरे सिद्धांत को आपलोग आगे बढ़ाना चाहते हैं तो कुर्सी का मोह त्यागना होगा। राष्ट्र सम्मान को अपनाना होगा। नहीं तो इतना आग्रह है कि आपलोग मेरा नाम लेना छोड़ दीजिए। बहुत कृपा होगी।
क्षमा कीजिएगा। थोड़ा कष्ट में हूं। इसलिए आक्रोशित हो गया। हां, लेकिन मेरी बात पर गौर जरूर कीजिएगा।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी
संस्थापक, जनसंघ
संसद में आपका वक्तव्य सुन रहा था। आप ने देशभक्ति के नाम पर मेरा भी जिक्र किया।आपने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लिए आपके नेता यानी मैंने कुर्बानी दी। मेरी देशभक्ति याद रखने के लिए आभार।
आपने अब तक मुझे याद रखा लेकिन हमारी नीति भूल गए। पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में जो हो रहा है उससे मैं काफी आहत हूं। क्यों ऐसा लग रहा है कि कुर्सी और अहंकार में आपलोग अपना अस्तित्व भूलते जा रहे हैं। आपलोगों को स्मरण नहीं है कि कश्मीर को लेकर मैंने क्या सोचा था। मेरा, हमारी पार्टी का क्या सिद्धांत था। आपने हमारे सिद्धांत को सूली पर लटका दिया।
सत्ता में साझेदारी के लिए क्यों उस व्यक्ति से हाथ मिला लिया, जिसकी नीति हमारी नीति के विपरित है। जो देश द्रोहियों का हिमायती है। जो दुश्मन देश का परस्त है। मैं आपलोगों का अशुद्ध गठबंधन देखकर हैरान हूं।
आपका नया दोस्त मुफ्ती मोहम्मद सईद हर दो दिन पर मेरे सीने में नश्तर चुभा रहा है। हमारे सिद्धांत को रौंद रहा है। आपलोग कुर्सी की खातिर सब देख रहे हैं। सुन रहे हैं। सह रहे हैं। क्या हो गया है आपलोगों को।
मुफ्ती के शपथग्रहण समारोह में आप भी मौजूद थे।आडवाणी और जोशी भी थे।आपलोगों के सामने टेबल पर दो-दो झंडा फहरा रहा था। शूल की तरह चुभ रहा था वो दूसरा झंडा।
धारा 370 को हटाने के लिए मैंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। एक देश में दो निशान,दो प्रधान, दो विधान के खिलाफ मैंने लड़ाई लड़ी। नेहरू से बगावत की। शेख अब्दुल्ला से अदावत की। मुझे जान तक गंवानी पड़ी। और आपने एक झटके में उससे समझौता कैसे कर लिया।
आपने शायद अध्ययन किया होगा कि राष्ट्र के लिए मैंने कुर्सी त्याग दिया था। इसी कश्मीर के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। सरकार की मनाही के बावजूद मैंने 1953 में कश्मीर के लिए इसलिए प्रस्थान किया था, क्योंकि मेरे लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। अखंड भारत के सपने को पूरा करना चाहता था।
मैं जम्मू-कश्मीर को भी पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह देश का हिस्सा बनाना चाहता था। मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।फिर क्या-क्या हुआ मेरे साथ, उसका जिक्र नहीं करना चाहता। वो दर्द तो गैरों ने दिया था। लेकिन 6 दशक के बाद आपलोग जो दर्द दे रहे हैं, वो बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है।
ऐसा लग रहा है कि आपलोग मेरे नाम का सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं। अपने फायदे के लिए। मैं जो काम अधूरा छोड़कर आया था, उसे आपलोगों ने सब्र के कब्र में दफ्न कर दिया। क्यों ऐसा लग रहा है कि आपलोग मात्र अपने फायदे के लिए मेरा नाम लेते हैं। मेरी नीति, मेरे सिद्धांत से आपलोग सिर्फ सत्ता के लिए वास्ता रखना चाहते हैं। कुर्सी के मोह में कुछ भी कर रहे हैं। कृपा करके आप लोग सत्ता के शीर्ष पर हुंचने की सीढी मुझे मत बनाइए।
आप देश के प्रधानमंत्री हैं। उस पार्टी के निर्विवादित नेता हैं, जिसका बीज हमने कुछ साथियों के साथ करीब छह दशक पहले बोया था। सुना है कि आज की तारीख में आप से पूछे बगैर पार्टी में कुछ नहीं होता है। इसलिए ये पत्र आपको लिख रहा हूं।
यहां पर कश्मीरी पंडितों की टोली अक्सर मिलकर मुझसे पूछती है कि कब घर वापसी होगी हमारे बच्चों की। शहीद होकर स्वर्ग पहुंचे सेना के जवान मुझसे मिलने आते हैं। किस - किसको क्या जवाब दूं। आप ही बताइए।
अगर सच में आपलोग मुझे अपना नेता मानते हैं। मेरी नीति पर आपलोगों को भरोसा है। मेरे सिद्धांत को आपलोग आगे बढ़ाना चाहते हैं तो कुर्सी का मोह त्यागना होगा। राष्ट्र सम्मान को अपनाना होगा। नहीं तो इतना आग्रह है कि आपलोग मेरा नाम लेना छोड़ दीजिए। बहुत कृपा होगी।
क्षमा कीजिएगा। थोड़ा कष्ट में हूं। इसलिए आक्रोशित हो गया। हां, लेकिन मेरी बात पर गौर जरूर कीजिएगा।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी
संस्थापक, जनसंघ
आपका blog अच्छा है। मै भी Social Work करती हूं।
जवाब देंहटाएंअनार शब्द सुनते ही एक कहावत स्मरण हो आता है-‘एक अनार, सौ बीमार।' चौंकिए मत, अनार बीमारियों का घर नहीं है, बल्कि यह तो हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। इससे उपचार और अन्य आयुर्वेदा के टीप्स पढ़ने के लिए यहां पर Click करें और पसंद आये तो इसे जरूर Share करें ताकि अधिक से अधिक लोग इसका फायदा उठा सकें। अनार से उपचार