श्री सुरेश प्रभु
रेल मंत्री, भारत सरकार
सर, दिल्ली से मधुबनी जाना है। लेकिन टिकट नहीं मिला रहा है। किसी भी
क्लास में नहीं। किसी भी ट्रेन में नहीं। जितने जुगाड़ थे सब आजमा लिए। दसियों
रिजर्वेशन एजेंट से बात कर ली। गुहार लगाया। मिन्नतें की। सब ने मना कर दिया। सब
एक ही बात कह रहा है कहीं और का कहो तो टिकट बना देंगे, लेकिन बिहार का टिकट मुझसे
नहीं होगा।
तत्काल टिकट मिलना तो स्वयं भगवान के हाथों प्रसाद पाने से भी मुश्किल
है। खुलते ही दस मिनट के अंदर बुकिंग फुल हो जाती है। IRCTC का सर्वर उस दस मिनट के दौरान सबसे ज्यादा सुस्त
हो जाता है। 5 दिन से कीबोर्ड पर मेहनत कर रहा हूं कि IRCTC मेहरबान हो जाए।
जब कहीं से कुछ नहीं हुआ तो तत्काल टिकट के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा। रात
के 2 बजे से लाइन में लगा। कितनी भीड़ थी, क्या बताऊं। शायद विधायक या सांसद के
टिकट के लिए भी बीजेपी दफ्तर के बाहर इतनी भीड़ नहीं रहती होगी। खैर, सुबह दस बजे
तक लाइन में खड़ा रहा। जब तक मेरी बारी आती, उससे पहले ही हल्ला हो गया कि टिकट
खत्म। जो टिकट लेकर लौटा वो इतना खुश था, जैसे इस्लामाबाद पर कब्जा करके लौटा है।
सर, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि खिड़की के रास्ते बॉगी में घुस
सकूं। टॉयलेट में बैठकर जा सकूं। बीवी और बच्चों के साथ खड़े होकर 1200 किलोमीटर
का सफर तय कर सकूं। बताइए सर, मैं क्या करूं।
क्या सर छुट्टी में घर जाना गुनाह है क्या? अपने मां-पापा से मिलना गुनाह है क्या ? क्या अपने पारिवारिक फंक्शन
में शामिल होने का अधिकार मुझे नहीं है क्या ?
ऐसा लग रह है जैसे मैं संदिग्ध आदमी हूं और पाकिस्तान के लिए वीजा
मांग रहा हूं। इराक और अमेरिका जाने से ज्यादा मुश्किल लग रहा है मधुबनी जाना। ऐसा
क्यों सर?
आजकल अपने काम से ज्यादा इस बात पर माथापच्ची कर रहा हूं कि कैसे टिकट
की व्यवस्था होगी ताकि घर जा सकूं। परेशान हो गया हूं।
सर, आपने 3 महीना पहले एडवांस बुकिंग की व्यवस्था की है। बताइए, कितने
लोग हैं जो 3 महीने पहले अपना काम प्लान करते हैं। हम प्राइवेट नौकरी करनेवाले
आदमी हैं सर। पता भी नहीं रहता है कि अगले 3 महीने उस कंपनी में काम करेंगे भी या
नहीं। या फिर मेरा बॉस जो मुझे छुट्टी देता है वो काम करेगा कि नहीं। 3 महीने में
बहुत कुछ बदल जाता है सर।
मैं जानता हूं कि आपके पास ढेर सारा काम है। लेकिन सर, आप किसी दिन
रेलवे स्टेशन जाकर देख लीजिए। बिहार जाने वाली किसी भी ट्रेन का मुआयना करिए। अगर
आपके पास दिल है और वो सही में धड़कता भी है तो यकीन मानीए आप रो पड़ेंगे। सर,
जानवर से भी बदतर हालत में लोग सफर कर रहे हैं। खिड़की में एक आदमी मूरी घुसता है
और दूसरा उसे धक्का मारता है। तब जाकर वो बॉगी के भीतर किसी के ऊपर गिरता है।
गाली-गलौज के बीच मुश्किल से जगह बनाता है। सोचिए कैसे वो सफर करता होगा।
हां सर, पहले ऐसी स्थिति सिर्फ जनरल बॉगी में थी। अब तो स्लिपर में भी
यही हाल है। अगर थर्ड एसी का शीशा हटा देंगे तो लोग उसमें भी ऐसे ही घुसना शुरू कर
देंगे। वैसे सीट से ज्यादा लोग तो थर्ड एसी में भी कब से सफर कर रहे हैं। मजबूरी
है सर। क्या करे।
सर, आप दुनिया के तीसरे सबसे बड़े रेलवे के मालिक हैं। आप तो कुछ भी
कर सकते हैं। तो फिर बिहार के लिए कुछ और ट्रेनें क्यों नहीं बढ़ा देते। कुछ
वैकल्पिक व्यवस्था करिए सर। क्योंकि ये आज की समस्या नहीं है। साल के आठ महीने ऐसी
ही स्थिति रहती है।
इस बार घर जा पाएंगे कि नहीं पता नहीं। या परिवार से फिर तंज सुनने को
मिलेगा। कि बड़ा आदमी हो गया है। कि घर-परिवार से कोई मतलब नहीं है। वैसे कोशिश
जारी है। लेकिन सर हम अच्छे दिन का इंतजार कर रहे हैं। एक अदद कंफर्म टिकट के लिए।
मेरे ससुर जी का देहांत हो गया, कल बिहार जाना था, पर टिकट कन्फर्म न हो पाने के वजह से नहीं गए,
जवाब देंहटाएंअब कल जाना है, और अगले पांच लगातार दिन का टिकट ले रखा है ...........
देखते हैं, कब पहुँचते हैं ............
यही त्रासदी है सर। इसको लेकर कोई नेता न तो दबाव बना रहा है न आवाज उठा रहा है। न तो विरोधियों को पाकिस्तान भेजने वाले मंत्री। न ही प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले मुख्यमंत्री और न ही पूर्व रेल मंत्री। यह ज्यादा सालता है।
जवाब देंहटाएंउनके अच्छे दिन आ गए। .… उन्हें सब सुविधाएँ मिल गयी ----------- वे कहाँ आम लोगों के हालातों को देखने चले। …
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