13 बरस बाद एक गरीब परिवार को न्याय मिलने वाला था। लेकिन लोग चाहते
थे कि हत्यारा बच जाए। फैसले की तारीख से पहले दुआएं मांगी जाने लगी। मंदिरों में
पूजा होने लगी। हवन होने लगा। मस्जिदों में अजान के बाद सलमान खान की सलामती के
लिए हाथ उठने लगे। या खुदा अदालत बख्श दे उन्हें।
अदालत ने सजा सुनाई। सलमान खान हत्यारे हैं। एक नहीं तीन-तीन गुनाह
किया है। नशे में गाड़ी चलाई। गाड़ी तेज चलाई। एक शख्स का कत्ल कर दिया। चार-चार
लोग अपाहिज हो गए।
सलमान खान को सजा मिलते ही एक बड़ा तबका अफसोस के समंदर में डूब गया।
कुछ रोने लगे। कुछ ने ट्वीट किया। कुछ ने मैसेज किया। जो बहुत ज्यादा करीब थे वे
सलमान के घर पहुंच गए। जैसे अपराधी नहीं पीड़ित हों। जैसे किसी ने सलमान खान के
ऊपर गाड़ी चढ़ा दी हो।
इसमें हर तबके के लोग थे। बॉलीवुड का बहुत बड़ा हिस्सा था। सियासी
हस्तियां थी। सिल्वर स्क्रीन पर गरीबी का मजाक उड़ाने वालों को हीरो के हाथों
पिटते देखनेवाले लोग भी थे। वे लोग भी थे जो सलमान खान के पिता सलीम की लिखी कहानी
को सिनेमाई पर्दे पर गरीब हीरो में अपना अक्स देखते थे।
न्यूज चैनल और अखबार में सलमान को सजा होने पर दर्द दिखने लगा। ऐसे
जैसे सलमान गुनहगार नहीं पीड़ित हैं। पीड़ित को न्याय मिला यह कहीं चर्चा नहीं। हर
जगह सलमान के जेल जाने से नफे-नुकसान का हिसाब लगाने लगा।
इस सब के बीच रवींद्र पाटील तो कहीं था ही नहीं। जिसकी गवाही पर सलमान
खान को सजा मिली। जो अंतिम सांस तक अपने बयान पर डटा रहा। जिसे जेल जाना पड़ा। भीख
मांगनी पड़ी। हार कर मर गया। “सत्यमेव जयते” वाले आमिर खान को भी सलमान ही याद रहे रवींद्र
पाटील नहीं।
यानी हीरो तो हीरो होता है। हत्यारा नहीं हो सकता। अगर साबित हो भी
गया तो भी हीरो ही है। प्रशंसकों की नजर में सलमान खान हीरो हैं। वाकई सलमान खान
के फैंस फॉलोअलर बहुत विशाल है।
दरअसल हम ऐसे देश में रहते हैं जहां हत्यारे भी पूजे जाते हैं। जहां
हत्यारों का महिमा मंडन होता है। हत्यारे को पूजने की पुरानी रवायत रही है हमारी। हैसियत
के मुताबिक। आजादी के ठीक बाद से। हम तो महात्मा गांधी के हत्यारे को पूजने लगे।
उसकी मूर्ति बना ली।
देश को आजाद कराने वाले के हत्यारे को महान बना दिया तो एक गरीब को
कुचलकर मार देने वाले को क्यों नहीं? जिसे हम ढाई दशकों
से हीरो की तरह देखते आ रहे हैं। किसी हत्यारे को लेकर ऐसी दीवानगी शायद किसी और
मुल्क में मिले।
यानी झूठ बोलते हैं हम जब कहते हैं कि कानून अंधा
होता है। नहीं साहब। सबसे बड़े अंधे तो हम हैं। दीवानगी ने हमे अंधा बना दिया है।
सिल्वर स्क्रीन के चकाचौंध में हमे कुछ सूझ नहीं रहा। इतने अंधे हैं हम कि अपने
दिल के अंदर से सही और गलत का फर्क मिटा चुके हैं। हम क्या कर रहे हैं? किसके लिए कर रहे हैं? एक हत्यारे को अदालत में सजा नहीं मिले, इसके लिए
हर जतन कर रहे हैं और कहते हैं कि कानून अंधा होता है।
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