इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी । यानी इंदिरा गांधी। कभी हार नहीं माननेवाली
गांधी । दुश्मनों को धूल चटानेवाली गांधी । भारत को परमाणु संपन्न देश बनानेवाली
गांधी । दुनिया को भारत की ताक़त का अहसास करानेवाली गांधी । अमेरिका को आर्थिक
चुनौती देनेवाली गांधी । खालिस्तान राष्ट्र की मांग करनेवाले देशद्रोहियों को
मटियामेट करनेवाली गांधी । पाकिस्तान को नाक रगड़वानेवाली गांधी । विश्व के
मानचित्र पर बंग्लादेश बनवाने वाली गांधी । दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के सब से
बड़े दुश्मन के रूप में विश्व विख्यात वीर, साहसी और सच्चे राष्ट्रभक्त गांधी । राजनीति
में हार कर भी जीतनेवाली गांधी । आमलोगों से मिलने के लिए ट्रैक्टर, हाथी और नाव
की सवारी करनेवाली गांधी । एक असाधारण हिम्मतवाली महिला । आयरन लेडी । जिसे
राजनैतिक दुश्मनों ने भी कभी दुर्गा कहा तो कभी सच्चा राष्ट्रभक्त । जिसके बारे मे
किसी ने कहा है कि उनका नाम देश के महानतम प्रधानमंत्रियों में शामिल किया जाएगा ।
क्योंकि वो बेहद शाहसी और राष्ट्रीय हितों के प्रति समर्पित थी । राष्ट्र निर्माता
के रूप में उनसे ऊपर सिर्फ उनके पिता थे ।
मंगलवार, 30 अक्टूबर 2012
गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012
नेताजी का इंटरव्यू
नमस्कार....अभी हमारे साथ मौज़ूद हैं हिमाचल प्रदेश के पूर्व
मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता, जो घोटालों की मंडी में वीबीएस के नाम से
मशहूर हैं । नेताजी ने घोटाले को नया आयाम दिया है । इन्होंने पेड़ पर पैसा उगाकर
नई तकनीक इजाद की है। आजकल धमकी-माफी को लेकर काफी चर्चा में है । नेताजी से हम कई
मुद्दों पर बात करेंगे । नेताजी आपका बहुत बहुत स्वागत है.....
नेताजी- जी धन्यवाद
पहला सवाल- नेताजी, कैमारा देखते ही आपका पारा सातवें आसमान पर क्यों
चढ़ जाता है । कुछ दिन पहले आपने एक कैमरामैन को कैमरा तोड़ देने की धमकी दी ।
नेताजी- देखिए, आप पत्रकार कुछ समझते नहीं है । कब क्या पूछना चाहिए,
किस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए इसको लेकर कतई गंभीर नहीं हैं । खासकर ये टीवी
मीडिया वाले तो और ज्यादा । निकलते हैं चुनावी सभा करने और प्रश्न पूछने लगते हैं
कि घोटाला कैसे किया । कब किया । क्यो किया । आजकल हम वैसे ही बहुत टेंशन में हैं
। अब उम्र भी ज्यादा हो चुकी है । पांच बरस पहले हाथ से गई कुर्सी वापस पाने की
जुगाड़ में लगे हैं । दिन रात हिसाब किताब में लगे रहते हैं । ऊपर से ये लोग कैमरा
चमकाने आ जाते हैं । स्वभाविक है गुस्सा तो आएगा ही।
दूसरा सवाल- नेताजी, आपने नई तकनीक इजाद की है...पेड़ पर पैसा उगाया
है, क्या कुछ बताएंगे इसके बारे में....ये कैसे संभव हो पाया...
नेताजी- आप भी वही सवाल लेकर बैठ गए। आप लोग समझने की कोशिश क्यों
नहीं करते हैं। पेड़ पर पैसा उगाने का टेक्निक हम सरेआम कैसे बता सकते हैं। हमारे
सहयोगी सब जमीन में उगाते हैं हम पेड़ पर उगा लिये । इसमें कौन सा अनर्थ हो गया ।
सवाल- अगर आप तकनीक के बारे में बता देते तो देश के महा अर्थशास्त्री
प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी का भी ज्ञान वर्धन होगा, जो कहते हैं कि पैसा
पेड़ पर नहीं उगता ।
नेताजी- अरे भाई, सब पता है उनको ।
सवाल- तो फिर उन्होंने अपने भाषण में क्यों कहा कि पैसा पेड़ पर नहीं
उगते...
नेताजी- देखिए, वो अपना भाषण खुद तैयार तो करते नहीं । दूसरा जो लिखकर
दे देता है, वो उसे पढ़ देते हैं । उनकी हिन्दी कमजोर हैं । वो खुद नहीं समझते हैं
कि क्या पढ़े हैं । बाद में जब मीडिया में हल्ला होने लगता है तब वो दूसरों से
पूछते हैं कि मैंने क्या कहा ।
सवाल- सुने हैं कि आपने इंकम टैक्स में घपला किया है..
नेताजी- सब बकवास है,,,,ऐसा कुछ भी नहीं है...मेरे ऊपर लगे सारे आरोप
निराधार हैं....अब आपका समय समाप्त हुआ...अब जा सकते हैं....धन्यवाद....
जी, धन्यवाद.....
बुधवार, 24 अक्टूबर 2012
गडकरी, आरोप और इस्तीफा
जमीन के जंजाल से उबरे भी नहीं थे कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय
अध्यक्ष नितिन गडकरी कंपनी में फर्जीवाड़े के आरोप में कटघरे में हैं । टाइम्स ऑफ इंडिया
की माने तो गडकरी ने अपनी कंपनी में चपरासी, ड्राइवर, बेकर से लेकर ज्योतिषी तक को डायरेक्टर बना
दिया है । वाड्रा, वीरभद्र और खुर्शीद को लेकर फजीहत झेल रही
कांग्रेस को भी हल्ला बोलने का मौका मिल गया है । इधर पार्टी के भीतर से भी गडकरी को
लेकर सवाल उठने लगे हैं । संघ ने भी पल्ला झाड़ लिया है । ऐसे में सवाल उठता है कि
क्या नितिन गडकरी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ।
देशभर में भ्रष्टाचार को लेकर कंग्रेस की किचकिच हो रही है । एक के बाद
एक यूपीए के मंत्री पर घोटालों के आरोप लग रहे हैं । बीजेपी भ्रष्टाचार और महंगाई को
हथियार बनाकर यूपीए सरकार पर वार कर रही है । ऐसे में अगर नितिन गडकरी अपने ऊपर लगे
आरोप गलत साबित होने तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हैं या फिर
दोबारा अध्यक्ष बनने से इनकार करते हैं तो
इससे न सिर्फ बीजेपी का बल्कि गडकरी का भी साख बढ़ेगा । पार्टी को कांग्रेस के खिलाफ
भ्रष्टाचार के जरिए वार करने में और मजबूती मिलेगी ।
जिस तरह से कांग्रेस के नेता
और मंत्री पुख्ता आरोपों के बावजूद न तो अपनी कुर्सी छोड़ रहे हैं और न ही जांच के
लिए तैयार हैं, ऐसे में गडकरी के इस्तीफे से बीजेपी
के नेता और आसानी से कांग्रेस पर वार कर सकते हैं । बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन
गडकरी के इस फैसले का गुजरात और हिमाचल प्रदेश
में होनेवाले चुनाव के अलावा 2014 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिल सकता
है ।
गडकरी इस्तीफा
देकर न सिर्फ विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं, बल्कि पार्टी के भीतर जो विरोधी हैं उनका मुंह भी बंद कर सकते हैं । क्योंकि पिछले
कुछ दिनों से पार्टी के भीतर से भी गडकरी को लेकर सवाल उठने लगे हैं । रामजेठ मलानी
ने तो बकायदा इस्तीफे की मांग कर दी है ।
बीजेपी को भी इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए । अगर
गडकरी इस्तीफा नहीं देते हैं तो आखिर बीजेपी किस मुंह से कांग्रेस नेताओं से
इस्तीफा मांगेगी । क्या दलील देकर कांग्रेस नेताओं की जांच की मांग करेगी । क्योंकि
इस्तीफा देने से पार्टी के पास विरोधियों और मीडिया को देने के लिए जवाब होगा । अगर नितिन गडकरी अब भी आरोपो को चिल्लर बताते रहेंगे तो आगामी चुनाव में जब पार्टी चिल्लर बनकर सामने आएगी, तो न ही गडकरी के पास जवाब होगा और न ही बीजेपी के पास ।
सोमवार, 22 अक्टूबर 2012
बड़े लोग...बड़ी बात
अरे भाई, सुने हैं कि मंत्री जी के ट्रस्ट से उन लोगों को भी सामान मिला
है...जिनकी मौत कई बरस पहले हो चुकी है....कई के बारे में तो ये भी सुना है कि पैर
में बीमारी है और कान की मशीन मिल गई....मंत्री जी कभी क्षेत्र में घूमने नहीं
जाते हैं क्या....
अरे भाई साब, आप भी ग़ज़बे बात करते हैं.... क्षेत्र में घूमने के लिए
लोग मंत्री बनता है का....उनका फेस देखा है आपने... सेब की तरह लाल है...
बड़े-बड़े लोगों के साथ उठक-बइठक करते हैं... गोरी गोरी मेम साब सब से मिलना होता
है.... बताइए तो... अगर क्षेत्र में घूमेंगे....तो फेस काला नहीं पड़
जाएगा....बीमारो हो सकते हैं न.....स्टेटस का ख्याल रखना पड़ता है ...इसलिए कोई
बड़ा नेता क्षेत्र में नहीं घूमता है.....वैसे टाइमो तो नहिये न मिलता है... देखिए
न....कानून मंत्री हैं...साथ में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय भी है.... देश भर के
बारे में उन्हें सोचना है....फिर पार्टी के बारे में.....मैडम का टीटीएम करने में
टाइम लगता है....फिर विलायत जाकर बड़का यूनिवर्सिटी में पढ़ाते भी न हैं....
अच्छा, तो इसीलिए केजरीवाल को अंग्रेजी में ऐसी गाली दिए कि बहुत लोगों
समझ में भी नहीं आया....
हां भाई साब, बड़े लोग की इहे तो खासियत होती है...गाली में भी स्टैंडर्ड
खोजता है.....अइसन वइसन गाली तो नेता सब की आम भाषा हो गई है....ऑक्सफोर्ड
यूनिवर्सिटी में पढ़ने और पढ़ाने का इहे सब तो फायदा है....कि गाली भी सुर्खी बन
जाती है....
सुने हैं कि प्रेस कांफ्रेंस के लिए पत्रकारों को घर पर बुलाये
थे.....लेकिन एक टीवी चैनल वाले पर बहुत गुस्सा गये.....
खिसियाते नहीं तो क्या करते....ऊ बार-बार उनको डिस्टर्ब कर रहा था...पहले
तो मंत्रीजी के खिलाफ स्टोरी चला दी....और फिर उन्हीं के घर जाकर सबूत दिखाने
लगा...अरे भाई सबूत है तो रखिए न.....जाने दीजिए...अइसन एगो दूगो सबूत है सरकार के
पास....हजारो है.....लेकिन कभी निकालती है क्या....वो भी सरेआम...कैमरा...टीवी....मीडिया
के सामने....
जो भी हो, लेकिन मंत्री होकर लहू से होली खेलने वाली बात नहीं कहनी
चाहिए.....
क्या करते भाई साब ऊ भी.....अरे ऊ भी आदमिये हैं...उसमें भी नेता
हैं....देखिए बात ई है कि इस बार के आरोप में स्याही और कलम से बरी नहीं सकते...तो
अंतिम उपाय तो करना ही पड़ेगा न....दो दिन पहिलेहे बोले थे कि मैडम के लिए जान दे
देंगे....जो दूसरों के लिए जान देगा ऊ अपने लिए ले नहीं सकता है का....वैसे भी नेता..मंत्री
के लिए.....लहू....होली....जिंदगी...मौत....घोटाला...आरोप.. समझ गए न....
हां भाई सब समझ गए भाई....बड़े लोग....बड़ी बात...
शनिवार, 20 अक्टूबर 2012
सलमान खुर्शीद से सवाल
महज 71 लाख के घोटाले के आरोप में सलमान खुर्शीद टूट जाएंगे
ये उम्मीद नहीं थी । लेकिन खुर्शीद साहब टूटकर बिखर गए । विरोधियों को आरोप का जवाब
इस अंदाज़ में देने लगे जैसे वो कानून मंत्री नहीं बल्कि पढ़े लिखे हिस्ट्री शीटर हों
। अपनी खिसियाहट में कानून मंत्रालय की गरिमा को भी चकनाचूर कर दिया । मर्यादा की दीवार
को लांघकर गुंडों की तरह खून बहाने की धमकी देने लगे । अब वो पत्रकारों के सवाल के
जवाब में कहते हैं कि पत्रकार उनसे सवाल पूछने
का हक खो दिया । अब कानून मंत्री खुर्शीद साहब ही बताएंगे कि आईपीसी की किस धारा में
किसी मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट चलाने पर पत्रकार को उससे सवाल पूछने का हक़ समाप्त हो
जाता है ।
केजरीवाल
ने जब इस्तीफे की मांग की तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ानेवाले खुर्शीद साहब उन्हें
'गटर स्नाइफ' बता दिया । विदेशी गाली । लेकिन हद तो तब हो गई जब केजरीवाल ने फार्रूखाबद
जाकर खुर्शीद का विरोध करने की बात कही तो वो किताबों के काले अक्षर और कलम को छोड़कर
खून बहाने की बात करने लगे । अब तीस बरस से राजनीति कर रहे सलमान खुर्शीद ही बेहतर
बता सकते हैं कि मंत्री से इस्तीफा मांगने पर कोई कैसे गटर का कीड़ा हो जाता है । किसी सांसद के संसदीय क्षेत्र में जाकर विरोध करने
पर आईपीसी की किस धारा के तहत खून बहाने की इजाजत है । या फिर कोई जनप्रतिनिधि जब खुलेआम
किसी को जान से मारने की धमकी देता है, तो उस के पर कौन सी धारा
लगती है ।
डॉक्टर जाकिर हुसैन ट्रस्ट के जरिए फर्जीवाड़ा
की ख़बर टीवी चैनल पर दिखाये जाने के कई दिनों
के बाद जब खुर्शीद साहब मीडिया के सामने आए तो अपने गांव से एक गवाह को भी पकड़ लाये
थे । कांपती आवाजों में जब गवाह ने माननीय मंत्री के हां में हां मिलाया, तो देश का कानून मंत्री इस
कदर उछल पड़ा, जैसे गरीबी खत्म करने के लिए कितन बड़ा कानून बना
दिये हों । ये अलग बात है कि पत्रकारों का जवाब देते- देते मंत्री महोदय को दस गिलास
पानी पीना पड़ा । फिर भी एक चैनल के पत्रकार को एक ही सवाल पूछने की इजाजात दी ।
इंदिरा गांधी के समय राजनीति की शुरुआत करनेवाले खुर्शीद साहब वाणिज्य मंत्रालय
से अल्पसंख्यक मंत्रालय और कानून मंत्रालय तक को देख चुके हैं । सलमान खुर्शीद पूर्व
केन्द्रीय मंत्री खुर्शीद आलम खान के बेटे हैं । पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन
के नाती हैं । दुनिया के गिने चुने यूनिवर्सिटी
में सुमार ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़कर अब वहां के बच्चों को तालिम भी देते हैं
। देश के वरिष्ठ वकीलों में खुर्शीद साहब को
जाना जाता है । वो राइटर भी हैं । लेकिन हैरान करने वाला सवाल ये है कि इतने अलंकारों
से जड़ित खुर्शीद साहब महज एक आरोप पर कैसे बौद्धिक रूप से नंगे हो गए ।
सोमवार, 8 अक्टूबर 2012
आम सूचना (बिहार की जनता के लिए...)
एतद् द्वारा सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि मुख्यमंत्री महोदय
अधिकार यात्रा पर हैं । जिसमें वो राज्य को केन्द्र से मिलनेवाले अधिकार की बात कर
रहे हैं । वो काफी गंभीर मुद्दे को लेकर राज्यभ्रमण पर हैं । आप उनकी सभा में अपने
अधिकार की बात पूछ कर भाषण में खलल न डालें । अधिकार यात्रा के दौरान किसी भी
मुद्दे को लेकर विरोध जतानेवाले असमाजिक तत्व घोषित कर दिए जाएंगे ।
अधिकार यात्रा में विकास पुरूष की बात सुनने के लिए
भारी से भारी संख्या में पधारें । लेकिन ध्यान रहे कि सभा में चप्पल जूता पहनकर
आना सख्त मना है । काले कपड़े के साथ काले व्यक्ति भी सभा में प्रतिबंधित है ।
क्योंकि जिस काले चश्मे से मुख्यमंत्री महोदय पूरे राज्य में विकास देख रहे हैं,
उसके काले वस्तु से सख्त नफरत है । अत: आप सभा में पहुंचने
से पहले या तो केस कटवा लें या फिर माथे पर तौलिया रख लें ।
मुख्यमंत्री की सभा में किसी
प्रकार का विरोध-प्रदर्शन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । अगर साल 2005 के बाद बिहार
सरकार की नौकरी मिली है, तो आपको सख्त हिदायत है कि आप सभा से दूर ही रहें । अगर
सभा में पहुंचते हैं तो सिर्फ अपने नौकरीदाता का जयघोष करें । अधिकार यात्रा में
अधिकार का गलत अर्थ समझकर अपने अधिकार की बात कतई न करें । नहीं तो गर्दन पर हाथ रखकर
सभा स्थल से फेंकवा दिया जाएगा । आपका कचूमर निकाल दिया जाएगा । नौकरी छीन ली
जाएगी ।
हमारे मुख्यमंत्री महोदय
विकास पसंद इंसान हैं । वो सकारत्मक सोच के हैं । इसीलिए आप भी अपनी सोच बदलें । हर
समय भ्रष्टाचार, घुसखोरी, कानून व्यवस्था पर बात न करें । समय की नजाकत को समझा
करें । अगर आपसे इंदिरा आवास के लिए मुखिया ने घूस मांगा । अगर कोटे पर राशन समय
और सही मात्रा में नहीं मिल रहा है । अगर बीडीओ घूस मांग रहा है । अगर थानेदार
परेशान कर रहा है । अगर वेतन को लेकर कोई समस्या है । अभी इसे भूल जाइए । अभी आप
सिर्फ मुख्यमंत्री महोदय के हां में हां मिलाइये । क्योंकि विशेष राज्य के दर्जे
का सवाल है । अधिकार का सवाल है । आपकी समस्यों को पटना के जनता दरबार में सुनी जा
सकती है ।
उम्मीद है कि आप सभी को मेरी बात समझ में आ गई होगी । आप सभी
उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखेंगे और शासन प्रशासन को दंडात्मक कार्रवाई करने
पर विवश नहीं करेंगे ।
भवदीय
शनिवार, 6 अक्टूबर 2012
फ्रंट फुट पर बीजेपी
बिहार में बीजेपी और जदयू गठबंधन की गांठ ढिली
होने लगी है । इस बार चोट भारतीय जनता पार्टी ने मारी है । पिछले सात बरस में पहली
बार भारतीय जनता पार्टी फ्रंट फुट पर खेल रही है और जनता दल यूनाइटेड के नेता ऑफेंसिव
हैं । पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने के संकेत दिए तो
उसके ठीक बाद बीजेपी के एक सांसद ने राज्य सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठा दिया । और
अब नरेन्द्र मोदी को पटना बुलाने की तैयारी है ।
याद कीजिए, जब नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी की तस्वीर प्रचार के
तौर पर अखबार के आखिरी पन्ने पर छपी थी, तो नीतीश कुमार ने भोज
स्थगित कर दिया था । जदयू के नेता गठबंधन तोड़ने की बात कहते फिर रहे थे और बीजेपी
नेताओं के पास जवाब नहीं था । बिहार विधान सभा में नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार करने
को लेकर जदयू ने दो टूक कह दिया था कि अगर चुनाव साथ लड़ना है तो मोदी को प्रचार नहीं
करने देंगे । जब प्रधानमंत्री के तौर पर एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार
का नाम तय करने की बात हुई, तब भी जदयू धमकाता रहा । देश के बेहतर
सीएम को लेकर हुई जुबानी जंग में नीतीश कुमार से लेकर जदूय के अदना नेता तक बीजेपी
के सबसे सफल सीएम पर ऊंगली उठाते रहे । और राष्ट्रपति चुनाव में तो बकायदा ठेंगा ही
दिखा दिया । लेकिन बीजेपी आलाकमान हमेशा अफेंसिव मूड में रहा । हालांकि ये बात प्रदेश
बीजेपी के कुछ नेताओं को अखरता जरूर था । वो सरकार में मंत्री रहते हुए भी सवाल-जवाब
करते रहे लेकिन आलाकमान के दबाव में चुप्पी साध लेते थे ।
लेकिन
कहते हैं कि सही वक्त पर सही चाल चलना ही असल राजनीति की पहचान होती है । और बीजेपी
ने यही किया । बीजेपी नेताओं की ओर से तमाम
बयान उस वक्त आ रहे हैं, जब बतौर सीएम नीतीश कुमार सबसे मुश्किल दौर में हैं । विकास पुरूष के नाम से
मशहूर नीतीश कुमार की ऐसी किचकिच कभी नहीं हुई थी । प्रदेशभर में नीतीश कुमार का विरोध हो रहा है ।
और यात्रा के दौरान विरोध के जवाब में नीतीश कुमार का खिसियानी बयान, उनका गुस्सा, पार्टी गले की हड्डी बन गई है । इतना ही नहीं ,
नीतीश की यात्रा के जवाब में लालू भी यात्रा पर हैं । वो सरकार की पोल
पट्टी खोल रहे हैं । और इसी मौके का फायदा
उठाकर बीजेपी ने चोट मारी है । लगे हाथ हुंकार रैली का भी एलान कर दिया है ।
और
इस सब के बीच अगर पूर्णिया के बीजेपी सांसद उदय सिंह भ्रष्टाचार के जरिए सरकार पर सवाल
उठाते हैं । रैली करते हैं । टीवी चैनल पर सरकार के खिलाफ बोलते हैं और सरकार में शामिल
बीजेपी अपने सदस्य से किसी तरह का सवाल जवाब नहीं करती है तो इसका सीधा मतलब निकाला
जा सकता है कि कहीं न कहीं इसे आलाकमान से मौन सहमति है । यानी यानी जिस भ्रष्टाचार
और महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस को बीजेपी घेर रही है, उसे वो बिहार में भी जिंदा
रखना चाहती है, ताकि समय आने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके ।
जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ना पड़े तो भ्रष्टाचार के तीर से ही सरकार पर वार किया जा
सके ।
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