धर्म
परिवर्तन पर धर्मयुद्ध छिड़ा हुआ है। धर्म-परिवर्तन की नई-नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। अपनी सहुलियत के अनुसार। आार्यावर्त के तमाम विद्वान
धर्म और परिवर्तन की विवेचना कर रहे हैं। अर्थ समझा रहे हैं। मायने बता रहे हैं। संविधान
का हवाला दे रहे हैं। अनुच्छेदों को छान-छान कर समझा रहे हैं। टीवी पर चिल्लमपेल है। अखबार पर लंबे-लंबे लेख लिखे जा रहे हैं। मैंने अपनी जिंदगी में पहलीबार पर धर्मपरिवर्तन
पर इतनी बड़ी बहस देखी है। पहली बार इतने बड़े-बड़े ज्ञानियों
को उगते हुए देख कर अद्भुद लग रहा है। टीकाधारी, दाढ़ीधारी,
गमछाधारी, मालाधारियों का मेला लगा है।
संसद
में लंबे-लंबे भाषण हो रहे हैं। तर्क और कुतर्कों के मिश्रण से संसद ठप हो रही है। खादी
धारियों के तेवर तल्ख हैं। मानों देश में इससे बड़ा मुद्दा कोई है ही नहीं। पहले इसका
हल निकालो, फिर आगे किसी बिल पर बहस होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो
देश में आग लग जाएगी।
इतने
सालों में तो कभी आग नहीं लगी। लेकिन इस बार लग जाएगी। सबकुछ खाक हो जाएगा। बहुत चिंतित
हैं माननीय। देश के बुद्धिजीवी।
पता नहीं अब तक ये तमाम धर्म-परिवर्तन मामलों के जानकार कहां छिपे हुए थे। इससे पहले इन्हें धर्म परिवर्तन
पर शिक्षा देने की जरूरत महसूस क्यों नहीं हुई। अचानक क्या हो गया कि इन्हें दिव्य
ज्ञान की प्राप्ति हो गई। जिसे संसार में छिटने के लिए प्रगट होना पड़ा। लेकिन मन में
खोट लिए हुए। आधा-अधूरा। पूर्ण करने की हिम्मत नहीं हो रही। पता नहीं
ऐसा क्यों ?
ऐसा
नहीं है कि हिंदुस्तान में पहलीबार किसी शख्स, परिवार का या समूह
का धर्म परिवर्तन हुआ है। इससे पहले भी थोक भाव में लोगों ने अपना धर्म बदला है। अगर
मुगल काल की बात छोड़ भी दें तो आजाद हिंदुस्तान में लोगों ने अपना धर्म बदला है। एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों, हजारों लाखों की तादाद में। लालच
देकर धर्म बदलवाया गया। और हां, जिस वक्त अभी संसद में माननीय
हंगामा कर रहे हैं, टीवी पर बैठकर ज्ञानी प्रवचन दे रहे हैं,
अखबार में लेख लिखे जा रहे हैं उस वक्त भी देश के अलग-अलग हिस्सों में धर्म बदले जा रहे हैं। लेकिन उससे किसी को मतलब नहीं।
जो
मनानीय सीताराम येचुरी साहब धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर संसद को अपने सिर पर उठाए हुए
हैं,
उनके पश्चिम बंगाल से महज कुछ ही दूरी पर झारखंड के आदिवासियों को ईसाई
बनाया जा रहा है। लालच देकर बनाया जा रहा है। प्रलोभन देकर आदिवासियों का धर्म परिवर्तन
कराया जा रहा है। क्या ये बात येचुरी साहब को नहीं पता है। अगर नहीं पता है कि शर्म
की बात है। अगर पता है तो अब तब क्यों चुप थे। शरद यादव प्रधानमंत्री से जवाब चाहते
हैं। लेकिन वो बता पाएंगे कि उनके संसदीय क्षेत्र मधेपुरा से सटे भागलपुर में जो हिंदू
को इसाई बनाया गया उस पर वो क्यों नहीं बोल रहे हैं। सिर्फ बिहार और झारखंड ही क्यों,
उड़ीसा, केरल, यूपी,
देश के तमाम हिस्सों में धर्म-परिवर्तन हो रहे
हैं। दशकों से होते आ रहे हैं। लेकिन किसी ने इस मुद्दे को न तो संसद में उठाने की
जेहमत उठाई और न ही किसी ने टीवी पर इसको लेकर बहस करने की जरूरत समझी।
ये
हंगामा हर वक्त क्यों नहीं होता। ये चर्चा हर समय क्यों नहीं होती है। या फिर कभी भी
क्यों होती है। जाहिर है, इसमें हंगामा, चर्चा करनेवालों की मंशा छिपी हुई है। अपने फायदे की।
कुछ
लोग तर्क देते हैं कि आदिवासियों को इसाई बनाकर उनके भविष्य को संवारा जा रहा है। क्या, बेहतर जिंदगी देने का वादा करना ,प्रलोभन नहीं है क्या
? अगर नहीं है तो हर किसी के लिए नहीं है। इसमें आप फर्क कैसे कर सकते
हैं कि अगर बेहतर जिंदगी की बात कहकर हिंदू से ईसाई या हिंदू से मुस्लिम बना दिया गया
तो ठीक है। लेकिन मुस्लिम से हिंदू या ईसाई से हिंदू बना दिया गया तो जबर्दस्ती है।
लालच है। ढोंग है। और हां, ये बात भी कई जगह सामने आई है कि पैसे
देकर एक धर्म से दूसरे धर्म की लड़कियां खरीदी जा रही है।
हालांकि
ये तमाम बातें वो नेता भी जानते हैं जो हंगामा कर रहे हैं। वो बुद्धिजीवी भी समझते
है तो जो अपनी विद्वता की विवेचना करते फिर रहे हैं। लेकिन हकीकत ये है कि सब सियासत
है। एक पार्टी का दूसरी पार्टी को घेरने का च्रकव्यूह है। आम लोगों को बरगलाकर सत्ता
का सुख पाने की चेष्टा है। धर्म और जाति के नाम पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयत्न
है।
सर आपकी बातें एकदम ठीक है।नरेंद्र मोदी की सारी रणनीति भी यहीं थी कि धर्मांतरण पर खुदके घेराव के ज़रिये ही क़ानून का रास्ता प्रस्तावित किया जाए।एकतरफ़ा विमर्श ज़मीनी हक़ीकत से अलग होने के बावजूद ही चीज़ों को सकारात्मक दिशा में ले जाने की अपनी क्षमता खो देता है।वैसे,मेरा यह भी मानना है कि धर्मांतरण किन कारणों से किया जाता है इस पर भी विस्तार से चर्चा होनी चाहिये।
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