राजनीति में मुर्दे
भी बड़े काम के होते हैं। इसलिए ये कभी गाड़े नहीं जाते हैं। इसे हमेशा जिंदा रखा
जाता है। ताकि मुफीद वक्त पर काम आ सके। हमारे सियासतदानों ने सियासत के इस सूत्र
का बखूबी इस्तेमाल किया है। खासकर चुनावी मौसम में जब राजनेता वैचारिक रूप से मर
जाते हैं तो सालों पहले दम तोड़ चुके यही मुर्दे बोल पड़ते हैं। चिल्लाते हैं। वोट
बटोरते हैं। सरकार बनबाते हैं।
एक बार फिर सरकार
बनाने की बारी है। भ्रष्टाचार। महंगाई। गरीबी। घोटाला। विकास सरीखे मुद्दे हैं। देशभर
की जनता महंगाई से हांफ रही है। भ्रष्टाचार से त्रस्त है। शहर से लेकर गांव तक, एक
बड़ा तबका, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक विकास से कोसों दूर है। लोग सरकार से एक
मजबूत नीति की उम्मीद लगए बैठे हैं। एक ऐसी नीति जिसमें लोगों को भरपेट खाना मिल
सके। सुकून की जिंदगी जी पाए।
लेकिन हमारे सियासी
गणित के आर्यभट्टों ने हिसाब लगाकर दंगों में मारे गए मुर्दों को जिंदा किया है। एक
बार फिर मुर्दे बोल पड़े हैं। सड़क पर हंगामा मचा है। दंगों पर सियासी दंगल हो रह
है। हत्या का हिसाब मांगा जा रहा है। बहुत हो चुका। अब माफी से काम नहीं चलेगा। गुनहगारों
के लिए फांसी मांगी जा रही है।
29 बरस पहले भी एक
दंगा हुआ था। लोकतंत्र की हत्या हुई थी। इंसानियत के पीठ पर खंजर घोंपा गया था।
दिल्ली की सड़क खून से लथपथ हो गई थी। हजारों बेगुनाह मारे गए थे। दंगों में मारे
गए उन मुर्दों को आज तक गाड़ा नहीं गया। सियासतदानों ने उसे जिंदा करके रखा। हर
दल, हर पार्टी के नेताओं ने उन मुर्दों को जिंदा रखने के लिए जरूरत के हिसाब से
केमिकल का इस्तेमाल किया। जब-जब जरूरत पड़ी उन
मुर्दों को बाहर निकाला। उनका इस्तेमाल किया। और उसे रख दिया। एक बार फिर यही हो
रहा है।
सिर्फ सिख दंगा
नहीं। गुजरात दंगा। भागलपुर दंगा। कईं दंगे हैं। जिनकी फाइल चुनाव नजदीक आते ही
खुल जाती हैं। करोड़ों लोगों के असली मुद्दे गौण जाते हैं। न्याय और अन्याय का
हिसाब होने लगता है। नेताओं के पेटी से मुर्दे बाहर निकलते हैं।
यकीन जानिए। दंगों
के असली गुनहगारों का कभी हिसाब नहीं होगा। उन मुर्दों के अपनों से सहानुभूति का
ढोंग करनेवाले किसी भी दल के नेता, न्याय नहीं होने देंगे। जब तक न्याय नहीं होगा,
मुर्दे कभी दफ्न नहीं होंगे। मुर्दे जिंदा रहेंगे और वैचारिक शून्यता में भटकनेवाले
नेताओं के लिए रामबाण की तरह इस्तेमाल होते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन टेलीमार्केटिंग का ब्लैक-होल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
चुनावी मौसम में ही दंगो पर राजनीती कि जाती है।
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