मैं आप सबसे दूर जा
रहा हूं। बहुत दूर। जहां न तो मेरी बीवी का बेइंतहा प्यार साथ होगा। न ही मेरे
बच्चों का हंसता-खिलखिलाता दुलार होगा। ना ही मेरी बहनें मेरे साथ होगी और ना ही बुलंदी
की असमीति ऊंचाई पर पहुंचानेवाले आप लोग होंगे। मैं उस जगह पर जा रहा हूं जहां
सिर्फ मैं और मेरी तन्हाई होगी। अकेलापन होगा। यादें होंगी।
हर भूल का
प्रायश्चित होता है। मैं भी प्रायश्चित करने जा रहा हूं, उस गलती का, जो नादानी
में, अनजाने में मुझसे हो गया था। मैं उसी गुनाह की सजा भुगतने जा रहा हूं। मैं जेल जा रहा हूं। जहां आपके प्यार के भरोसे
मुझे साढे तीन बरस बिताने हैं।
जेल में जिंदगी के
साढे तीन बरस कम नहीं होते। बहुत कुछ बदल जाते है। इस दौरान बहुत कुछ सहना पड़ता
है। अहसास है मुझे कि कैसे जेल में दिन बिताने पड़ते हैं। कैसे जिल्लतभरी जिंदगी
जी जाती है वहां पर। पूरे डेढ़ साल रह चुका हूं मैं उस काल कोठरी में। जहां आजादी
का कतराभर रौशनी नसीब नहीं होती। जहां पर बेबसी और लाचरगी ठहाके लगाती रहती है। और
लोग बेचारे की तरह सबकुछ देखते रहते हैं।
इस बार पूरे साढे
तीन बरस तक मैं सबसे दूर रहूंगा। मैं अपने परिवार को आपके भरोसे छोड़कर जा रहा
हूं। मेरी बीवी, मेरे बच्चे आप ही के आसरे हैं। उम्मीद है, जरूर ख्याल रखेंगे
आपलोग।
साढ़े तीन बरस कम
नहीं होते उस औरत के लिए जिसका पति उससे इतना दूर हो कि चाहकर भी वो मिल न सके। जिसके
साथ अपना दुख दर्द नहीं बांट सके। जिसने जिंदगी भर साथ निभाने का वादा करके उसे
अपने घर लाया और अब उसके होठों पर सिसकियां और आंखों में आंसू छोड़कर खुद जेल चला
गया।
जिंदगी के साढे तीन
बरस कम नहीं होते उन नादान बच्चों के लिए जिन्हें अपने पिता का प्यार नहीं मिला।
मेरे बच्चों को जिस उम्र में मेरे साथ की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उसी वक्त मैं उससे
दूर जा रहा हूं। जब मैं लौटकर आऊंगा तब तक मेरे बच्चे बड़े हो जाएंगे। वे स्कूल जा
रहे होंगे। हो सकता है कि जब मैं अपना दाग धोने के बाद आजाद होकर दोबारा उनसे
मिलूंगा तो वे मुझे पहचान भी ना पाएं। मेरे लिए कितना दर्दनाक होगा वो पल, जब मेरे
बच्चे मुझे नहीं पहचान पाएंगे। सोच सोचकर मरा जा रहा हूं। मैं समझ रहा हूं। सिर्फ
कानून का ही गुनहगार नहीं, अपने परिवार का भी गुनहनगार हूं मैं।
गुनहगार हूं मैं
उनलोगों का जिनकी फिल्मों में मैं काम कर रहा हूं। मेरी वजह से कई फिल्में अधूरी
रह गई। कई लोग बेरोजगार हो गए। कइयों की जिंदगीभर की कमाई दांव पर लगी है। अदालत
से सजा मिलने के बाद जितना हो सका, मैंने किया। लेकिन जो नहीं हो सका उसके लिए मैं
क्षमा मांगता हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरी लाचरगी को आप जरूर समझेंगे।
मुझे यकीन है कानून
पर। भरोसा है देश के संविधान पर । मैं इज्जत करता हूं इस देश का, जहां की मिट्टी
में पलकर मैं बड़ा हुआ हूं। जहां के लोगों ने मुझे सिर आखों पर बिठाकर रखा। मैं इस
देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश का सम्मान करने जा रहा हूं।
जब मैं लौटकर आऊंगा,
तब तक बहुत कुछ बदल चुका रहेगा। मुझको लेकर लोगों का नज़रिया बदल जाएगा। लोगों की
सोच बदल जाएगी। मुझको लेकर लोगों में सहानुभूति होगी। अपनापन होगा। और ज्यादा
प्यार होगा। लेकिन नहीं होगा, तो बीचे के ये साढ़े तीन बरस।
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