गिरकर संभलना कोई उससे सीखे। अपने बिखरे हुए विश्वास को समेटना कोई
उससे सीखे। हारकर जीतना कोई उससे सीखे। आलोचनाओं से सीखना कोई उससे सीखे। वक्त से
लड़ना कोई उससे सीखे। वक्त बदला। हालात बदले। जो कल तक उसको पानी पी-पी कर कोस रहे
थे। आज फिर वे उसकी तारीफों में कसीदे गढ़ रहे हैं।
महेन्द्र सिंह धोनी। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान। महेन्द्र सिंह
धोनी के लिए पिछले डेढ़ बरस बेहद खराब रहा। जो शख्स आसमान में बुलंदियों की ऊंचाई
से ऊपर उड़ रहा था, वो अचानक धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। देश को क्रिकेट में दो-दो
विश्वकप दिलानेवाले कप्तान पर सवाल खड़े होने लगे। धोनी के फैसले पर। खेल पर। बॉडी
लैंग्वेज पर। विश्वास पर। व्यवहार पर। हर स्तर पर धोनी की आलोचना होने लगी। मौका
परस्त साथी भी साजिश रचने लगे। लेकिन धोनी ने हार नहीं मानी।
विश्वकप जीतने के बाद जिस इंग्लैंड की टीम ने धोनी के आत्मविश्वास को
तोड़ दिया था। उसी अंग्रेजों के खिलाफ धोनी ने नई शुरूआत की। वन डे में न सिर्फ
खुद अच्छी पारियां खेली, बल्कि साथियों का भी आत्म विश्वास बढ़ाया।
फिर आई कंगारूओं की बारी।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई में। चेपॉक स्टेडियम में टीम इंडिया के 4 विकेट आउट हो
चुके थे। सचिन,सहवाग, मुरली, पुजारा ड्रेसिंग रूम लौट चुके थे। तब धोनी ने न सिर्फ
खुद धुआंधार पारी खेली, बल्कि साथी खिड़ालियों का भी हॉसला बढ़ाया। धोनी ने बिखरी
हुई टीम को समेटा। उन्होंने खुद एक ही दिन में 203 रन ठोक दिए। धोनी को कोहली,
अश्विन, भुवनेश्वर जैसे युवाओं का साथ मिला। और धोनी के दिन लौट आए। चेन्नई के बाद
हैदराबाद में धोनी के धुरंधरों ने फिर ऑस्ट्रेलिया को पानी पिला दिया। पारी और 135
रनों से करारी हार। पुजारा का दोहरा शतक। मुरली विजय का शतक। जडेजा और अश्विन की
शानदार गेंदाबाजी।
अब फिर मैदान में वही हो रहा है, जो डेढ़ बरस पहले होता था। धोनी का
हर फैसला सही होने लगा। बॉडीलैंग्वेज पर अब सवाल नहीं होते। आलोचकों को धोनी का
आत्मविश्वास और व्यवहार अच्छे लगने लगे हैं। कप्तानी छोड़ने की सलाह देनेवाले
सुनील गावस्कर फिर उन्हें 2019 तक कप्तान बनाए रखने की वकालत कर रहे हैं। टीवी
स्टूडियों में बैठकर धोनी को कोसनेवाले स्वयंभू महान क्रिकेटर को अब जवाब नहीं सूझ
रहा।
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