बेचारा डीएसपी। लाचार।
बेबस। निसहाय। सरकारी भीड़ का शिकार हो गया। मंत्री के गुर्गों ने उसे मार डाला। खाकी
और खादी की टक्कर में खादी फिर भाड़ी पड़ी। खादी में छुपे गुंडों ने खाकीवाले की
हत्या कर दी। वो चीखता रहा। चिल्लाता रहा। सरेआम। कानून का कत्ल हुआ। लेकिन किसी
ने नहीं देखा। गणतंत्र में गनतंत्र से लड़नेवालों को मरते हुए देखने की हिम्मत
किसी में नहीं। मौका-ए-वारदात पर वो कोई नहीं था, जिन्हें हिंद पर नाज है।
एक हंसता-खेलता
परिवार बिखर गया। एक लड़की महज कुछ महीनों में विधवा हो गई। बूढे मां-बाप का सहारा
खत्म हो गया। डीएसपी के अपने अब इंसाफ मांग रहे हैं। लेकिन इंसाफ देगा कौन। सरकार।
वही सरकार जिसके मंत्री पर हत्या करवाने का आरोप लगा है। उसी मंत्री पर जिसके
सामने किसी की नहीं चलती। वो अपने आप में सरकार है। राजा है। लोग उसे राजा भैया
कहते हैं। यूपी के समाजवादियों के भैयाजी यानी अखिलेश यादव के भी भैया।
इंसाफ मांग रही
डीएसपी की पत्नी से मिलने के लिए मुख्यमंत्री पहुंचे। सबसे पहले डीसपी की कीमत लगा
दी। 25 लाख रूपये। फिर पेंशन दोगुना करने का वादा। और फिर पूरी घटना की सीबीआई से जांच
कराकर दोषियों को कड़ी सजा दिलाने का दावा। उसी सीबीआई से जो सांप-सीढी के खेल में
उलझी रहती है।
और इस सब के बीच
डीएसपी की मौत पर हो रहा है खेल। वही गंदा खेल। जिसे राजनीति कहते हैं।
बीएसपी-एसपी-कांग्रेस-बीजेपी। संसद से सड़क तक हंगामा। मौका मिला है। सब के सब
पत्ते खेल रहे हैं। कोई कानून व्यवस्था का पत्ता फेक रहा है। तो कोई अल्पसंख्यकों
की सुरक्षा का पत्ता। मायावती डीएसपी की मौत का हिसाब मांग रही हैं। तो मुलायम
सिंह यादव उन्हें फ्लैश बैक में ले जाकर आइना दिखा रहे हैं।
वैसे तो देश और समाज
की रक्षा करनेवालों की कोई जाति या धर्म नहीं होती। लेकिन राजनीति के बिनानी
सिमेंट उन्हें भी इनके बीच में मजबूत दीवार खड़ी कर देता है। कुछ नेता कह रहे हैं
कि वो अल्पसंख्यक था इसलिए मारा गया। कुछ कहते हैं कि गरीब था इसलिए मारा गया। कुछ
कहते हैं कि मंत्रीजी की जातिगत अदावत थी, इसलिए मरवा दिया।
खैर, ये राजनीति है।
मौकापरस्त हर लाश की लौ पर रोटी सेकने के आदी हो चुके हैं। इसबार भी वही कर रहे
हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि चालीस बरस का पढ़ा-लिखा नौजवान मुख्यमंत्री की कुर्सी
पर बैठा है। लेकिन लाचार है। बिगड़ी व्यवस्था को तो युवा सुधार सकता है, जो डीएसपी
सुधार रहा था। लेकिन लाचारी को कौन सुधारेगा?
राजनेताओ को आपस में लडने से ही फुर्सत नही है
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