नेताजी बहुत दुखी
हैं। माथा पकड़ कर बैठे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें। पता नहीं, किस
राशि और लग्न में गृहमंत्री पद की शपथ ली थी। वो कौन सा काल था, जब मैडम के मन में
उन्हें गृहमंत्री बनाने का ख्याल आया था। सोच-सोचकर परेशान हो जाते हैं नेताजी।
रात-रातभर
नींद नहीं आ रही है। आजकल अक्सर बीपी और शूगर बढ़ा रहता है।
जब से गृहमंत्री बने
हैं, तब से एक से छुटकारा मिलता नहीं कि दूसरी परेशानी मुंह बाये खड़ी हो जाती है।
कभी जुबान धोखा दे जाती है। तो कभी देश के शैतान। किस-किस को संभालें। कहां-कहां
ध्यान दें। उमर हो चुकी है। बोलते-बोलते कभी जुबान लड़खड़ा जाती है। तो कभी फिसल
जाती है। याद नहीं रहता है कि हमले की सूचना मिलने पर सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद
करने के लिए कहा कि नहीं।
पिछले शीतकालीन सत्र
में संसद में बयान देते वक्त मोस्ट वांटेड आतंकी को ‘श्री हाफिज सईद’ कह दिया
था। भूल सुधार हुई। गलती मानी। लेकिन कुछ ही दिन बीता था कि दिल्ली के दरिंदों ने
सत्यानाश कर दिया। देश की राजधानी में सुरक्षा को लेकर थू-थू हुई। शैतानों ने जवाब
देने लायाक नहीं छोड़ा। यहां तक कि अपनी ही पार्टी की सीएम ने भी नेताजी पर ठीकरा
फोड़ दिया।
काफी हो हंगामे के
बाद किसी तरह मामला दबा। तो जुबान दगा दे गई। ऐसी बात मुंह से निकल गई कि अपनों ने
भी साथ नहीं दिया। एक-एक कर सब छोड़ गए। बीजेपी-आरएसएस वालों ने मोर्चा खोल दिया।
अंत में लिखित माफी मांगी तब जाकर कहीं छुटकारा मिला।
नेताजी चैन की सांस
लेते, उससे पहले ही आतंकियों ने सब गुड़ गोबर कर दिया। दो-दो ब्लास्ट कर दिये। देश
की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी। नेताजी क्या जवाब देंगे। संसद में जवाब दिया
तो उस पर भी सवाल होने लगे। क्या करें नेताजी। ऐसे वक्त में तो मैडम भी साथ नहीं
दे रहीं।
अच्छा काम भी करते
हैं तो कोई सराहना नहीं मिलती। बल्कि उस पर भी सवाल होने लगते हैं। अपनी धाक जमाने
के लिए नेताजी ने वो कर दिखाया, जिसके बारे में उनसे बड़े दिग्गज सिर्फ बातें हीं
करते थे। दो-दो आतंकियों को फांसी पर लटका दिया। इतना महान काम करने के बाद भी
वाह-वाही होने के बदले उसपर भी सवाल हो रहे हैं। अफजल के घरवालों को पहले ही सूचना
क्यों नहीं दी। स्पीड पोस्ट के बजाय मोबाइल से क्यों नहीं बताया। वगैरह-वगैरह।
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