सोमवार, 24 दिसंबर 2012

बड़े परिवर्तन की ओर देश...


देश सुलग रहा है। माथे में दुपट्टा बांधकर लड़कियां राजपथ और रायसीना हिल्स को नाप रही हैं। महिलाएं चूड़ी और सिंदूर से आगे की सोच रही हैं। विजय चौक पर इज्जत की जीत का झंडा फहराने को बेकरार हैं। कोई एक दो या सौ की संख्या में नहीं। बल्कि हजारों की संख्या में। लाख के करीब।
       अगर इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां सड़क पर डटी हुई हैं। सर्द मौसम में भी पानी की बौछार सह रही हैं। लाठियां खा रही हैं। आंसू गैस के धुएं को चीरती हुई आगे बढ़ रही हैं। बुजुर्ग महिलाएं उनका साथ दे रही हैं। संघर्ष में लड़के उनके पीछे खड़े हैं। तो इसका मतलब है कि देश रूढिवादी विचारधारा को तोड़ बड़े परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है।  
        देश के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हो रहा है। जब इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां और महिलाएं सड़क पर हैं। बिना किसी नेतृत्व के। बस, अपनी आवाज हुक्मरान तक पहुंचाना चाहती हैं। अपनी इज्जत की खातिर सोई हुई सरकार को जगाना चाहती है। अपने अधिकार की बात कर रही है। वो सख्त कानून चाहती हैं। इसके लिए कुछ भी करने को तैयार है। पुलिस से दो-दो हाथ कर रही हैं। सरकारी जुल्म सह रही हैं।
          देश में या फिर दिल्ली में कोई पहली बार किसी लड़की से गैंगरेप नहीं हुआ। लेकिन प्रतिकार में जो इसबार हो रहा है, वैसा कभी नहीं हुआ। इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं अपनी आवाज उठाएंगी, सरकार को इसका अंदाजा कतई नहीं था। और शायद यही वजह है कि सरकार ये फैसला नहीं ले पा रही है कि वो करे तो क्या करे।
         किसी भी देश में या समाज में परिवर्तन एकाएक नहीं आता। ऐसे ही आता है। सुलगते-सुलगते,आग शोले बन जाते हैं। यही हो रहा है देशभर में। सालों से सुलगती कुंठा अब फूट पड़ी है। हर रोज, सड़क पर,बाजार में, बस में, ट्रेन में, स्कूल कॉलेज, ऑफिस जाते वक्त। घर के छत पर खड़ी हों तो। ना जाने कहां कहां पीड़ा से गुजरना पड़ता है। यही वजह है कि सड़क पर उतरी हर लड़की, रानी लक्ष्मी बाई बनने को तैयार है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक, दिल्ली, मुंबई से पटना तक। हर शहर में महिलाएं सड़क पर हैं।   
         महिलाएं अब जान चुकी हैं कि अगर हक़ चाहिए, तो खुद सड़क उतरना होगा। गूंगी बहरी सरकार घर में चुल्हे के पास बैठी औरतों की आवाज नहीं सुनती। कॉल सेंटर में या बड़ी-बड़ी मल्टी ब्रांडेड कंपनियों में काम करने से भी सरकार उनकी आवाज नहीं सुनेगी। बस उनके नाम पर राजनीति करेगी। अगर पचास बरस में एक महिला आरक्षण बिल संसद में पास नहीं करा सकीं, तो भला उनकी इज्जात बचाने की खातिर क्या कर सकती हैं। यही वजह है कि बाबा रामदेव और अरविंद केजरीवाल सरीखे लोग जब प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे तो लोगों ने उनका तव्वजों नहीं दिया। 

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