टीचर्स डे पर डॉक्टर कलाम याद आए हैं। जो जिंदगी भर सीखते-सिखाते रहे। पढ़ाते
रहे। लेकिन उन्होंने अपने गुरुओं से क्या सीखा। गुरू बनकर उन्होंने लोगों को क्या
सिखाया। देश को क्या दे पाए। कुछ नहीं। न खुद सीख पाए। न किसी को सिखा पाए। ज्ञान।
विज्ञान। वो मिसाइल। वो उपग्रह। वो पोखरण। वो परमाणु बम। सब बकवास था।
गीता के श्लोक भी पढ़े। कुरान की आयातें भी पढ़ी। विज्ञान की मोटी-मोटी
किताबों को खंगाल गए। मरने से चंद घंटे पहले तक वो किताब के पन्नों में उलझे रहे।
लेकिन इतना नहीं सीख पाए कि इंसान बनने से लोग महान नहीं होता। हिंदू या फिर
मुसलमान बनना पड़ता है। उन्होंने हिंदुस्तान में पैदा लिया है। यहां के लोग
विज्ञान पढ़कर-पढ़ाकर महान नहीं होते। यहां धर्म की व्याख्या करना महानता है। उस पर
राजनीति करने पर याद किए जाते हैं। इंसानियत का पाठ पढ़ने के चक्कर में कुछ नहीं सीख पाए। मरने के बाद सम्मान मिलता है। लेकिन डॉक्टर कलाम को मरने
बाद ज्ञान मिला है।
डक्टर कलाम जिंदगी भर शहर-शहर घूमकर लोगों को पढ़ाते रहे। ज्ञान और विज्ञान
समझाते रहे। आज महसूस हो रहा है कि वो सब बेकार था। कोई कुछ नहीं सीख पाया। इतना
कुछ करने के बावजूद हिंदू, हिंदू रह गया। मुसलमान, मुसलमान रह गया। कोई इंसान नहीं
बन पाया। डॉक्टर कलाम को महान मत कहो। वो न तो खुद अच्छे छात्र बन पाए। न ही अच्छे
गुरू बन पाए।
डॉक्टर कलाम अगर महान होते तो लोगों को उनका बताया रास्ता याद रहता। उन्होंने
किस रास्ते आगे बढ़ने को कहा यह याद रहता। लेकिन लोगों को वो कुछ याद नहीं है। लोग
तो उस रास्ते में उलझ गए, जिसके दोनों छोर पर लोहे के बोर्ड पर मोटे-मोटे अक्षरों
में किसी मरे हुए हिंदू या मुसलमान का नाम लिखा रहता है। उस बोर्ड पर लिखे नाम को पढ़कर
उसकी महानता की व्याख्या होती है।
सुना है कि किसी द्वीप का नाम बदल दिया गया है। उस पर भी डॉक्टर कलाम चस्पा कर
दिए गए हैं। ये सड़क। ये द्वीप सब जगह से हटा दो डॉक्टर कलाम का नाम। ये सब डॉक्टर
कलाम के लायक नहीं है। ये चिढाता है। इस पर हो रहे सियासी संग्राम में कौन जीत रहा
है पता नहीं। किस पार्टी को, किस नेता को फायदा होगा पता नहीं। लेकिन हार रहे हैं
डॉक्टर कलाम। जिन्होंने इंसानियत का पाठ पढ़ा। वही लोगों को भी सिखाया। लोगों को
सपना देखना सिखाया। लेकिन सपना देखकर बड़े बनने के चक्कर में लोग डॉक्टर कलाम का
सिखाय भूल गए।
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