मंगलवार, 25 अगस्त 2015

गुजरात का 'केजरीवाल'


तो क्या दूसरा केजरीवाल अब गुजरात में पैदा हो गया है। ये सवाल इसलिए क्योंकि 22 बरस के हार्दिक पटेल ने जिस अंदाज में सरकार को ललकारा है। जिस तरह से हार्दिक पटेल के एक आह्वान पर 8 लाख लोग जुट गए। लोग हार्दिक-हार्दिक के नारे लगाने लगे।  तकरीबन पौने घंटे तक लोग हार्दिक पटेल को सुनते रहे। इससे तो यही संकेत दिख रहे हैं।

बेहद ही साधारण अंदाज में हार्दिक पटेल बहुत कुछ कह गए। उन्होंने जता दिया कि आने वाले समय में वो सरकार के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करनेवाले हैं। केजरीवाल की खींची लकीर पर वो आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। और उनके पीछे बहुत बड़ी भीड़ भी खड़ी है। हार्दिक पटेल 12 जिलों में अब तक 100 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं।  चतुरता के साथ पटेल समुदाय के भीतर की चिंगारी को उन्होंने शोलों में बदल दिया।

केजरीवाल की तरह ही हार्दिक पटेल रैली और उपवास का सहारा ले रहे हैं। मीडिया को अपनी ओर खींचने में कामयाब भी दिख रहे हैं। पौने घंटे तक न्यूज चैनल के कैमरे उनपर टिके रहे। ये जानते हुए भी कि उनकी मांगें बहुत मजबूत नहीं है, वे अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। क्योंकि केजरीवाल की तीरह उनके पीछे भी नौजवान खड़े हैं। हार्दिक पटेल के निशाने पर भी सीधे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हैं।

आर्थिक रूप से संपन्न पटेल समुदाय अगर 4 फिसदी आरक्षण के लिए इतनी बड़ी तादाद में है। एक लड़के के पीछे खड़ा है तो ये छोटी बात नहीं है। जिस रणनीति के तहत हार्दिक पटेल उभरकर सामने आए हैं, उससे साफ है कि उनके पीछे बहुत बड़ी लॉबी है। कॉमर्स ग्रैजुएट हार्दिक पटेल के लिए रणनीति बनाने वालों में रिटार्यड अफसर खड़े हैं। कुछ नेता खड़े हैं। जाहिर है, ये आग आसानी से बुझने वाली नहीं है।

गुजरात की आनंदीबेन सरकार भले ही हार्दिक पटेल की मांग को नकार रही हो। भले ही पटेल समुदाय को आर्थिक रूप से मजबूत बता कर मांग मानने से इनकार कर रही हो। भले ही वो हार्दिक पटेल को तबज्जो नहीं दे रहीं हो। भले ही समिति बनाकर हार्दिक पटेल की मांग को टाल रही हो। लेकिन अहमदाबाद की रैली के बाद बीजेपी के थिंक टैंक को इस पर सोचने की जरूरत पड़ेगी। हार्दिक पटेल की ये भीड़ मोदी को भी परेशान कर रही होगी।

गुजरात में 27 फिसदी पटेल समुदाय के लोग हैं। 129 विधायकों में 44 विधायक पटेल हैं। पटेल समुदाय मजबूती के साथ बीजेपी के साथ खड़ी रही है। जाति समीकरण में उलझी सियासत में विकास के राग के बावजूद धीरे-धीरे ब्राह्मण नेताओं को किनारे कर पटेल नेताओं को तवज्जो दी गई। गुजरात सरकार में मुख्यमंत्रीआनंदीबेन पटेल से कर नितिन पटेल और सौरभ पटेल सरीखे आधा दर्जन मंत्री इसी समुदाय से हैं।

अगर इसी तरह हार्दिक पटेल आगे बढ़ते रहे। अपने आरक्षण के मुद्दे में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार सरीखे कुछ और मुद्दों को जोड़ लिया तो दिल्ली जैसे बदलाव अगर गुजरात में भी हो जाए तो अचंभा नहीं होगा।

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