प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब
देखने वाले केजरीवाल बिहार में नीतीश कुमार का समर्थन कर वही गलती कर रहे हैं, जो
नीतीश कुमार ने लालू यादव से गठबंधन कर की है। क्योंकि केजरीवाल जिस सियासी लकीर
पर चलने का दावा करते हैं, उसे नीतीश कुमार ने कभी फॉलो ही नहीं किया। केजरीवाल जिस नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए दुआ कर रहे हैं, उनके साथ घोटाले का सजायाफ्ता लालू यादव भी हैं और कांग्रेस भी। यानी केजरीवाल अपनी यूएसपी से समझौता कर रहे हैं। ऐसे में केजरीवाल जिस रास्ते चल पड़े हैं, उसमें हर डेग पर एक सवाल उनसे
पूछे जाएंगे।
क्या नीतीश कुमार का समर्थन
कर केजरीवाल जातिवादी राजनीति का समर्थन कर रहे हैं ? क्या केजरीवाल को बाहुबली नेताओं से कोई आपत्ति नहीं है ? क्या नीतीश कुमार के
साथ-साथ केजरीवाल अब लालू यादव का भी समर्थन कर रहे हैं ? और सबसे अहम सवाल ये कि
जिस कांग्रेस नीति के खिलाफ केजरीवाल की पार्टी खड़ी हुई, क्या अब वो सत्ता की
खातिर उसी कांग्रेस के लिए प्रचार भी करेंगे ? क्योंकि बिहार में कांग्रेस भी नीतीश कुमार का
अहम सहयोगी दल है।
ये सवाल बीजेपी भी पूछेगी
और इसका जवाब वे लोग भी जानना चाहेंगे जिन्होंने केजरीवाल के आसरे एक नई सियासत की
उम्मीद देखी थी। जिन्होंने जातिवाद, क्षेत्रवाद, पार्टीवाद सरीखे तमाम वादों से
ऊपर उठकर दिल्ली में केजरीवाल का समर्थन किया था। समर्थन करनेवालों में बड़ी तादाद
उन बिहारियों की भी है, जिन्हें नीतीश कुमार पसंद नहीं है। जाहिर है, भविष्य में
केजरीवाल के लिए ये मुश्किलें पैदा करेगी।
ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ये
बातें नहीं जानते होंगे। सियासत के खिलाड़ी बन चुके केजरीवाल दरअसल 2019 की
तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि वो खुद को राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के विकल्प के तौर पर
तैयार करना चाहते हैं। वो जानते हैं कि ये उनके अपने बूते संभव नहीं है। जाहिर है,
इसके लिए उन्हें क्षत्रपों का सहारा चाहिए। ताकि वो मोदी को बराबरी का टक्कर दे
सकें। खुद को सर्वमान्य नेता बनाने की पहल 12 अगस्त को ही शुरू कर दी थी जब
वो शरद पवार के घर उस बैठक में पहुंचे थे, जिसमें कांग्रेस को छोड़कर तमाम विपक्षी
पार्टियां मसलन, एनसीपी, टीएमसी, एसपी, जेडीयू, आरजेडी के नुमाइंदे शामिल थे।
केजरीवाल उन तमाम नेताओं से
संपर्क में हैं, जो निकट भविष्य में मोदी के करीब नहीं आना चाहेंगे। और जो भविष्य
में केजरीवाल की मदद भी कर सके। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दोनों ऐसे मुख्यमंत्री
हैं, जो मोदी से सीधे-सीधे टकरा भी रहे हैं और टक्कर भी दे रहे हैं।
फिलहाल बिहार में विधानसभा
चुनाव है। लिहाजा केजरीवाल, नीतीश का समर्थन कर भविष्य का रास्ता साफ कर रहे हैं।
तो नीतीश कुमार, केजरीवाल की साफ छवि के आसरे वोटरों को अपनी ओर खींचना चाहते हैं।
यानी नीतीश कुमार अगर निकट
का फायदा देख रहे हैं तो केजरीवाल भविष्य का। हिसाब दोनों तरफ से लगाए जा रहा है। फायदा
दोनों तरफ से देखा जा रहा है। लेकिन असली बाजीगर कौन होगा ये देखने के लिए थोड़ा
इंतजार कीजिए।
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