गुरुवार, 3 जुलाई 2014

वो कभी मरते नहीं...

वो सरकारी कानून को पैर की जूती समझता है। कुरान को कागज का चिथड़ा बताता है। पैगंबर के पैगाम को सूली पर लटकाकर इस्लाम की नई परिभाषा गढ़ रहा है। अपने ही कौम का कत्ल कर दुनिया में इस्लाम का झंडा फहराने चला है।
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड अल शाम। इस नाम से वो अपना गिरोह चलाता है। उसका अपना कानून है। अपने कायदे हैं। इंसानियत की अपनी परिभाषा है। धर्म और पर्व को अपनी सहुलियत से बखान करता है। वो पूरी दुनिया के मुसलमानों को एक इमाम के खूंटे बांधना चाहता है। लोकतंत्र को रौंद कर पूरे कौम को एक खलीफा के हवाले करना चाहता है।
उसके सामने मर्द जिंदगी की भीख मांगते हैं। महिलाएं इज्जत बचाने की लिए गिड़गिड़ाती है। औरतों के जिस्म को खिलौना समझता है। वो बच्चों को मां की छाती से छीनकर गोलियों से भून देता है। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाओं को कतार में बैठाकर उनके ऊपर टैंकर चला देता है। वो खुद को मुसमलानों का सबसे बड़ा मसीहा बता रहा है। खुदा से भी बड़ा। खुद को खलीफा कहता है।
इराक की हर गली में। हर चौराहे। हर मोड़ पर वो खौफ बनकर खड़ा है। स्कूल जानेवाले बच्चों के जेहन में। फैक्ट्री में काम करनेवाले मजदूर और दफ्तर में बैठकर फाइल पलटनेवाले अफसरानों के दिमाग में। रेडलाइट पर भीख मांगनेवाली बुढिया की आंखों में वो डर बनकर बसता है।
नफरत उसकी रूह में है। हर कीमत पर अपने मंसूबे में कामयाब होना चाहता है। बेकसूर, नौजवानों को बहकाता है। जिहाद के नाम पर जान देने के लिए तैयार करता है। मरने और मारने का ट्रेनिंग देता है।
महिषासुर,हिरण्यकश्यप,ताड़कासुर के बारे में सिर्फ सुना है। लेकिन इन्हें देखकर यकीन होता है कि वो भी कितने खौफनाक रहे होंगे। कितने बेशर्म, बेरहम, बेदर्द, बेदिल रहे होंगे। मौत जिनके लिए खेल है।   
वाकई शैतान भी कभी मरते नहीं। बस, शरीर परिवर्तन होता है। कभी महिषासुर, ताड़कासुर के नाम से जाने जाते हैं, कभी ओसामा बिन लादेन के नाम से, कभी कर्नल गद्दाफी के नाम से तो कभी बगदादी के नाम से जाने जाते हैं। 

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