सब चुप हैं। बिल्कुल
चुप। मानो जुबान को लकवा मार दिया हो। एक भी शब्द मुंह से नहीं निकल रहा है। ऐसा
लग रहा है जैसे उन्होंने कुछ देखा या सुना ही नहीं। पद और पैसे की लालच में अंधे
और बहरे हो गए हैं। बहुत दिनों से टीवी पर भी नहीं दिखे। पैसे लेकर मुफ्त में भाषण
देनेवाले पता नहीं कहां चले गए हैं। शायद, सबकुछ देखकर, सुनकर और समझकर अज्ञातवास
में चले गए हैं। शांति की खोज में। पता नहीं।
उनको क्रिकेट से और
फिर क्रिकेट को उनसे पहचान मिली। कम से कम भारत में तो वे जरूर वो स्तम्भ माने
जाते रहे हैं, जहां से क्रिकेट को नई दशा और दिशा मिली। जिनकी वजह से लोगों का
क्रिकेट से लगाव बढ़ा। फिरंगियों के खेल में उन्हीं को मात देने का जज्बा उन्हीं
से सीखा सबने। तो फिर जब क्रिकेट कंलकित हो रहा है, अब वे अपना जज्ब क्यों नहीं
दिखा रहे हैं।
हिन्दुस्तान में
क्रिकेट के दीवाने उन्हें अपना हीरो मानते हैं। उन्हें सम्मान करते हैं। उनकी
बातों पर गौर करते हैं। उनसे सुनकर और उन्हें पढ़कर सीखते हैं। उन्हें देखने के
लिए, उन्हें सुनने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
ये सबकुछ है,
क्रिकेट की वजह से। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि जिस क्रिकेट ने उन्हें नाम दिया।
पहचान दी। शोहरत और दौलत दिया। आज जब वही क्रिकेट भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा है।
उस क्रिकेट का बीच चौराहे पर चीरहरण हो रहा है। तो वे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं
हैं। क्रिकेट के दीवाने टकटकी लगाए बैठे हैं उनकी ओर कि कब वे कुछ बोले। कुछ ऐसी
बात कहें, जिसका सीधा असर हो। कुछ ऐसा करें जिससे क्रिकेट से लोगों का भरोसा न
टूटे। क्रिकेट को कलंकित करनेवालों को सजा दिलाने के लिए मुहिम छेड़ें। लेकिन वे
हैं जो चुप्पी साध बैठे हैं। बस, इसलिए कि उन्हें कॉमेन्ट्री का कंट्रैक्ट उन्हीं
भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से मिलता है।
आप ही बताइए न तो
फिर वे बड़े-बड़े खिलाड़ी कैसे महान हो सकते हैं। कैसे मान लूं मैं उन्हें अपना हीरो।
कैसे चलूं मैं उनके नक्शे कदम पर। क्यों टीवी पर सुनूं मैं उनकी बकवास। जो हीरो
होता है, वो बोलता है। सच और झूठ के समाने डटकर खड़ा होता है। वो चंद पैसों की
लालच में अज्ञातवास में नहीं चला जाता ।
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