तो क्या भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जारी लड़ाई में
अन्ना हजारे से आगे निकल चुके हैं स्वामी रामदेव
। ये सवाल बड़ा इसलिए है क्योंकि जंतर मंतर पर भीड़ जुटाने के लिए जब टीम अन्ना की
सभी रणनीति फेल हो रही थी, तभी बाबा के पहुंचते ही अनशन स्थल खचाखच भड़ गया । रामदेव के मंच पर पहुंचते
ही न सिर्फ भीड़ बढ़ी बल्कि भीड़ देखकर टीम अन्ना का भी जोश बढ़ गया । जिस रामदेव को
देखकर टीम अन्ना के सदस्य कभी कतराते थे, उन्हें गले लगा लिया
।
याद कीजिए ठीक एक बरस पहले जब देश अन्ना का दीवाना था । और रामदेव पिट गये थे
। रामदेव पर कई तरह के आरोप लगने लगे । उस वक्त टीम अन्ना ने रामदेव से पूरी तरह किनारा
कर लिया था । लेकिन दिसंबर के अनशन में भीड़ क्या कम हुई। टीम अन्ना के सदस्य रामदेव की ओर खींचते चले गये
। और अब जब जंतर मंतर पर लोग नहीं पहुंचे तो
टीम अन्ना बाबा का सहारा खोजने लगी । मौका देखकर स्वामी भी संजीवनी लेकर पहुंच
गये और अपनी ताक़त का अहसास करा दिया ।
स्वामी रामदेव पहले ही राजनीतिक पार्टी बनाने के संकेत दे चुके थे। अब अन्ना और उनके टीम के सदस्यों को भी लगने लगा
है कि बिना चुनाव लड़े व्यवस्था परिवर्तन संभव नहीं है । यानी टीम अन्ना इस मुद्दे पर भी रामदेव के पीछे
चल पड़ी है ।
इस सब के बीच जंतर मंतर पर जाने से पहले रामदेव ने जिस अंदाज में सवा करोड़ लोगों के बिना आंदोलन के औचित्य पर सवाल
खड़ा किया, उससे
साफ है कि बाबा को पता है कि भीड़ अब उनके
साथ है । और ये अहसास टीम अन्ना को भी कराना चाहते थे । और जंतर मंतर पर समर्थकों के
साथ पहुंचकर ये अहसास करा भी दिया । यानी जहां भीड़ के जरिए खिलाड़ी की सफलता आंकी
जाती है तो स्वभाविक है फिलवक्त रामदेव ही चैंपियन माने जाएंगे । अब देखिए आगे आगे
होता है क्या ।
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