शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

उम्मीदों की राजनीति


देश की कुछ बड़ी उम्मीदों के ईर्द गिर्द पूरी राजनीति घूम रही है। संसद से सड़क तक उम्मीदों की राजनीति हो रही है । एफडीआई को लेकर बीजेपी संसद में कोहराम मचा रखी है । बीजेपी नियम 184 के तहत वोटिंग कराने की मांग कर रही है। बीजेपी को भरोसा है कि सदन में अगर वोटिंग होगी, तो सरकार का किराना में विदेशी निवेश का सपना चकनाचूर हो जाएगा। सरकार की किरकिरी होगी तो बीजेपी की जीत होगी। बीजेपी उनलोगों के लिए सबसे बड़ा मसीहा बनकर उभरेगी, जिन्हें लगता है कि एफडीआई से उनकी नौकरी पर खतरा है। लेकिन पूरी सरकार को एफडीआई से ही उम्मीद है। प्रधानमंत्री को विश्वास है कि एफडीआई से अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी। लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। भ्रष्टाचार और महंगाई से काली हो चुकी छवि थोड़ी साफ होगी। इसलिए अपनी-अपनी उम्मीदों को लेकर दोनों बड़े दल अड़े हुए हैं।
 उम्मीदों की एक और बड़ी राजनीति बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं। नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। गांधी मैदान के बाद अब वो लोगों को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान जाने की तैयारी में हैं। नीतीश कुमार को लगता है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा, तो राज्य के विकास की रफ्तार, राजधानी एक्सप्रेस से कहीं ज्यादा तेज़ हो जाएगी। विशेष राज्य के दर्जा मिलने से वो सबकुछ हासिल कर लेंगे, जो बिहार के लोग सपने में सोचते हैं।
देश में संपूर्ण परिवर्तन के लिए लड़ रहे अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल सरीखे लोगों को  है कि लोकपाल के आसरे देश से भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं । उनको लगता है कि जन लोकपाल बन जाने से सरकारी दफ्तरों में घुसखोरी बंद हो जाएगी । छोटे-बड़े घोटाले नहीं होंगे । इसके लिए टीम अन्ना आंदोलन कर रही है तो टीम केजरीवाल चुनाव चिह्न के साथ चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस चुकी है।
बाबा रामदेव को यकीन है कि विदेशों में जमा काला धन अगर वापस अपने देश में लाया जाएगा तो महंगाई और गरीबी दोनों खत्म  जाएगी । इसके लिए बाबा, बार-बार सरकार पर हमला बोलते हैं। सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए देशभर की यात्रा कर चुके हैं। दो बार में रामलीला मैदान में भी लिलाएं दिखा चुके है
ये कुछ बड़ी उम्मीदें हैं। जो सबसे ज्यादा चर्चा में है। यकीनन उम्मीद बड़े काम की चीज है। उम्मीद न होती, तो हम और आप न होते। कोई काम नहीं होता। उम्मीद न होती तो राजनीति न होती। उम्मीद न होती, तो मैं ये चिट्ठा न लिखता। इसलिए उम्मीद है कि आप इसे पढ़कर जरूर कॉमेंट करेंगे । 

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