सोमवार, 26 नवंबर 2012

जज्बात और जुनून पर बाजार भारी


प्यार बाज़ार में नहीं मिलता। इज्जत भी बाज़ार में नहीं मिलती। बाज़ार में बंदूकें मिलती हैं। लेकिन इत्तफाक देखिए कि मुहब्बत और इज्ज़त जब आमने-सामने होती है, तो फैसला बंदूकें किया करती है। यानी जज़्बात और जुनून पर बाज़ार कहीं ज़्यादा हावी है। और इसी बाज़ारबाद के आसरे आमिर खान उस सिस्टम को चुनौती देने चले थे, जिसका मुखालफत करनेवाले मुट्ठीभर लोग हैं।
आमिर खान ने देशभर के कुछ प्रेमी जोड़ियों को इकट्ठा कर टीवी शो के जरिए सीधे उन्हें बाजार में खड़ा कर दिया। उनकी हिम्मत को बेचा। टीवी शो को देखकर लोगों ने आमिर से लेकर वहां मौजूद प्रेमी जोड़ियों की हिम्मत की तारीफ की। बाजार की चर्चा से लगने लगा कि वाकई कुछ बदलने वाला है। लेकिन शो खत्म होने के तीन महीने बाद ही आमिर की तमाम थ्योरी फ्लॉप हो गई। आमिर खान ने जिन चुनिन्दा प्रेमी जोड़ियों को अपने टीवी शो में हीरो बनाया था, उन्हीं में से एक लड़के का बुलंदशहर में कत्ल कर दिया गया। इज्ज़त की खातिर अपनों ने ही उसे गोली मार दी।
सवाल उठता है कि क्या इज्जत से बढ़कर बाजार है। क्योंकि जो इज्जत की दुहाई देकर अपनो का कत्ल करते हैं, वे प्यार को बाजारबाद का नतीजा बताते हैं। उनकी नज़र में प्यार वो बाजारू एहसास है, जिसकी कोई इज्जत नहीं होती। ऐसे लोग उस बाजारू अहसास को खत्म करने के लिए बाजार में बिकने वाले चंद रूपये की बंदूक का सहारा लेते हैं।
यानी हर स्थिति में जीत बाजार की है। ये अलग बात है कि इस बाजार में कैंसर की तरह जड़ जमा चुकी बंदूक जैसी प्रॉडक्ट के सामने आमिर खान की लैबरेटरी का प्रॉडक्ट टिक नहीं पाता है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें