शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

सलमान खुर्शीद से सवाल

 महज 71 लाख के घोटाले के आरोप में सलमान खुर्शीद टूट जाएंगे ये उम्मीद नहीं थी । लेकिन खुर्शीद साहब टूटकर बिखर गए । विरोधियों को आरोप का जवाब इस अंदाज़ में देने लगे जैसे वो कानून मंत्री नहीं बल्कि पढ़े लिखे हिस्ट्री शीटर हों । अपनी खिसियाहट में कानून मंत्रालय की गरिमा को भी चकनाचूर कर दिया । मर्यादा की दीवार को लांघकर गुंडों की तरह खून बहाने की धमकी देने लगे । अब वो पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहते हैं कि  पत्रकार उनसे सवाल पूछने का हक खो दिया । अब कानून मंत्री खुर्शीद साहब ही बताएंगे कि आईपीसी की किस धारा में किसी मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट चलाने पर पत्रकार को उससे सवाल पूछने का हक़ समाप्त हो जाता है । 
 केजरीवाल ने जब इस्तीफे की मांग की तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ानेवाले खुर्शीद साहब उन्हें 'गटर स्नाइफ' बता दिया । विदेशी गाली । लेकिन हद तो तब हो गई जब केजरीवाल ने फार्रूखाबद जाकर खुर्शीद का विरोध करने की बात कही तो वो किताबों के काले अक्षर और कलम को छोड़कर खून बहाने की बात करने लगे । अब तीस बरस से राजनीति कर रहे सलमान खुर्शीद ही बेहतर बता सकते हैं कि मंत्री से इस्तीफा मांगने पर कोई कैसे गटर का कीड़ा हो जाता है ।   किसी सांसद के संसदीय क्षेत्र में जाकर विरोध करने पर आईपीसी की किस धारा के तहत खून बहाने की इजाजत है । या फिर कोई जनप्रतिनिधि जब खुलेआम किसी को जान से मारने की धमकी देता है, तो उस के पर कौन सी धारा लगती है ।
डॉक्टर जाकिर हुसैन ट्रस्ट के जरिए फर्जीवाड़ा की ख़बर  टीवी चैनल पर दिखाये जाने के कई दिनों के बाद जब खुर्शीद साहब मीडिया के सामने आए तो अपने गांव से एक गवाह को भी पकड़ लाये थे । कांपती आवाजों में जब गवाह ने माननीय मंत्री के हां में हां मिलाया, तो देश का कानून मंत्री इस कदर उछल पड़ा, जैसे गरीबी खत्म करने के लिए कितन बड़ा कानून बना दिये हों । ये अलग बात है कि पत्रकारों का जवाब देते- देते मंत्री महोदय को दस गिलास पानी पीना पड़ा । फिर भी एक चैनल के पत्रकार को एक ही सवाल पूछने की इजाजात दी ।
     इंदिरा गांधी के समय राजनीति की शुरुआत करनेवाले खुर्शीद साहब वाणिज्य मंत्रालय से अल्पसंख्यक मंत्रालय और कानून मंत्रालय तक को देख चुके हैं । सलमान खुर्शीद पूर्व केन्द्रीय मंत्री खुर्शीद आलम खान के बेटे हैं । पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन के नाती हैं ।  दुनिया के गिने चुने यूनिवर्सिटी में सुमार ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़कर अब वहां के बच्चों को तालिम भी देते हैं ।  देश के वरिष्ठ वकीलों में खुर्शीद साहब को जाना जाता है । वो राइटर भी हैं । लेकिन हैरान करने वाला सवाल ये है कि इतने अलंकारों से जड़ित खुर्शीद साहब महज एक आरोप पर कैसे बौद्धिक रूप से नंगे हो गए ।  

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

आम सूचना (बिहार की जनता के लिए...)

एतद् द्वारा सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि मुख्यमंत्री महोदय अधिकार यात्रा पर हैं । जिसमें वो राज्य को केन्द्र से मिलनेवाले अधिकार की बात कर रहे हैं । वो काफी गंभीर मुद्दे को लेकर राज्यभ्रमण पर हैं । आप उनकी सभा में अपने अधिकार की बात पूछ कर भाषण में खलल न डालें । अधिकार यात्रा के दौरान किसी भी मुद्दे को लेकर विरोध जतानेवाले असमाजिक तत्व घोषित कर दिए जाएंगे ।
  अधिकार यात्रा में विकास पुरूष की बात सुनने के लिए भारी से भारी संख्या में पधारें । लेकिन ध्यान रहे कि सभा में चप्पल जूता पहनकर आना सख्त मना है । काले कपड़े के साथ काले व्यक्ति भी सभा में प्रतिबंधित है । क्योंकि जिस काले चश्मे से मुख्यमंत्री महोदय पूरे राज्य में विकास देख रहे हैं, उसके काले वस्तु से सख्त नफरत है । अत: आप सभा में पहुंचने से पहले या तो केस कटवा लें या फिर माथे पर तौलिया रख लें ।
 मुख्यमंत्री की सभा में किसी प्रकार का विरोध-प्रदर्शन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । अगर साल 2005 के बाद बिहार सरकार की नौकरी मिली है, तो आपको सख्त हिदायत है कि आप सभा से दूर ही रहें । अगर सभा में पहुंचते हैं तो सिर्फ अपने नौकरीदाता का जयघोष करें । अधिकार यात्रा में अधिकार का गलत अर्थ समझकर अपने अधिकार की बात कतई न करें । नहीं तो गर्दन पर हाथ रखकर सभा स्थल से फेंकवा दिया जाएगा । आपका कचूमर निकाल दिया जाएगा । नौकरी छीन ली जाएगी ।  
 हमारे मुख्यमंत्री महोदय विकास पसंद इंसान हैं । वो सकारत्मक सोच के हैं । इसीलिए आप भी अपनी सोच बदलें । हर समय भ्रष्टाचार, घुसखोरी, कानून व्यवस्था पर बात न करें । समय की नजाकत को समझा करें । अगर आपसे इंदिरा आवास के लिए मुखिया ने घूस मांगा । अगर कोटे पर राशन समय और सही मात्रा में नहीं मिल रहा है । अगर बीडीओ घूस मांग रहा है । अगर थानेदार परेशान कर रहा है । अगर वेतन को लेकर कोई समस्या है । अभी इसे भूल जाइए । अभी आप सिर्फ मुख्यमंत्री महोदय के हां में हां मिलाइये । क्योंकि विशेष राज्य के दर्जे का सवाल है । अधिकार का सवाल है । आपकी समस्यों को पटना के जनता दरबार में सुनी जा सकती है ।  
उम्मीद है कि आप सभी को मेरी बात समझ में आ गई होगी । आप सभी उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखेंगे और शासन प्रशासन को दंडात्मक कार्रवाई करने पर विवश नहीं करेंगे ।
                                   भवदीय  

शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

फ्रंट फुट पर बीजेपी


बिहार में बीजेपी और जदयू गठबंधन की गांठ ढिली होने लगी है । इस बार चोट भारतीय जनता पार्टी ने मारी है । पिछले सात बरस में पहली बार भारतीय जनता पार्टी फ्रंट फुट पर खेल रही है और जनता दल यूनाइटेड के नेता ऑफेंसिव हैं । पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने के संकेत दिए तो उसके ठीक बाद बीजेपी के एक सांसद ने राज्य सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठा दिया । और अब नरेन्द्र मोदी को पटना बुलाने की तैयारी है ।
याद कीजिए, जब नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी की तस्वीर प्रचार के तौर पर अखबार के आखिरी पन्ने पर छपी थी, तो नीतीश कुमार ने भोज स्थगित कर दिया था । जदयू के नेता गठबंधन तोड़ने की बात कहते फिर रहे थे और बीजेपी नेताओं के पास जवाब नहीं था । बिहार विधान सभा में नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार करने को लेकर जदयू ने दो टूक कह दिया था कि अगर चुनाव साथ लड़ना है तो मोदी को प्रचार नहीं करने देंगे । जब प्रधानमंत्री के तौर पर एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का नाम तय करने की बात हुई, तब भी जदयू धमकाता रहा । देश के बेहतर सीएम को लेकर हुई जुबानी जंग में नीतीश कुमार से लेकर जदूय के अदना नेता तक बीजेपी के सबसे सफल सीएम पर ऊंगली उठाते रहे । और राष्ट्रपति चुनाव में तो बकायदा ठेंगा ही दिखा दिया । लेकिन बीजेपी आलाकमान हमेशा अफेंसिव मूड में रहा । हालांकि ये बात प्रदेश बीजेपी के कुछ नेताओं को अखरता जरूर था । वो सरकार में मंत्री रहते हुए भी सवाल-जवाब करते रहे लेकिन आलाकमान के दबाव में चुप्पी साध लेते थे ।
 लेकिन कहते हैं कि सही वक्त पर सही चाल चलना ही असल राजनीति की पहचान होती है । और बीजेपी ने यही किया ।  बीजेपी नेताओं की ओर से तमाम बयान उस वक्त आ रहे हैं, जब बतौर सीएम नीतीश कुमार सबसे मुश्किल दौर में हैं । विकास पुरूष के नाम से मशहूर नीतीश कुमार की ऐसी किचकिच कभी नहीं हुई थी ।  प्रदेशभर में नीतीश कुमार का विरोध हो रहा है । और यात्रा के दौरान विरोध के जवाब में नीतीश कुमार का खिसियानी बयान, उनका गुस्सा, पार्टी  गले की हड्डी बन गई है । इतना ही नहीं , नीतीश की यात्रा के जवाब में लालू भी यात्रा पर हैं । वो सरकार की पोल पट्टी खोल रहे हैं ।  और इसी मौके का फायदा उठाकर बीजेपी ने चोट मारी है । लगे हाथ हुंकार रैली का भी एलान कर दिया है ।
 और इस सब के बीच अगर पूर्णिया के बीजेपी सांसद उदय सिंह भ्रष्टाचार के जरिए सरकार पर सवाल उठाते हैं । रैली करते हैं । टीवी चैनल पर सरकार के खिलाफ बोलते हैं और सरकार में शामिल बीजेपी अपने सदस्य से किसी तरह का सवाल जवाब नहीं करती है तो इसका सीधा मतलब निकाला जा सकता है कि कहीं न कहीं इसे आलाकमान से मौन सहमति है । यानी यानी जिस भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस को बीजेपी घेर रही है, उसे वो बिहार में भी जिंदा रखना चाहती है, ताकि समय आने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके । जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ना पड़े तो भ्रष्टाचार के तीर से ही सरकार पर वार किया जा सके ।  

शनिवार, 22 सितंबर 2012

आओ सरकार-सरकार खेलें....


आओ सरकार-सरकार खेलते हैं । एक गठबंधन बनाते हैं । मैं तुम्हें समर्थन दूंगा । तुम मुझे सहयोग करना । प्रधानमंत्री तुम्हारी पार्टी से । गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री भी तुम अपनी पार्टी के नेता को बना लो । मुझे कोई मंत्रालय नहीं चाहिए । लेकिन हमारी पार्टी गठबंधन में रहेगी । हम बाहर से समर्थन करेंगे ।

तुम जब चाहो, जिस विभाग में चाहो घोटाला करना । जब मर्जी हो, किसी भी चीज की कीमत अपने हिसाब से बढ़ा लेना । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है । लेकिन चूकि हमारी पार्टी गरीब, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पार्टी है, इसलिए हम रौल बैक की मांग करेंगे । समर्थन वापसी की धमकी भी देंगे । तुम्हारे खिलाफ मीडिया में बोलेंगे । नारे लगाएंगे । प्रदर्शन करेंगे । यहां तक कि तुम्हारी पार्टी और मंत्री को गरियाऐंगे भी । लेकिन तुम घबराना मत । हम समर्थन वापस नहीं लेंगे । अगर कोई दूसरी पार्टी समर्थन वापस लेती है तो भी हम सरकार गिरने नहीं देंगे । चाहे जैसे भी हो । सहयोग देकर समर्थन लेना पड़े तो भी ।

 लेकिन इसके बदले तुम मुझे विकास फंड के नाम पर मोटी रकम दे देना । इसमें कटौती बिल्कुल नहीं । क्योंकि मुझे भी राज्य का, अपने मंत्रिमंडल का और नेताओं का विकास करना है । हां, केन्द्र प्रायोजित कुछ योजनाएं भी  विशेष रूप से मेरे राज्य में चलती रहना चाहिए । मिल बांटकर काम करेंगे । सरकार चलती रहेगी । 

राज्य में मेरी सरकार है । वहां तुम्हारी समर्थन की जरूरत नहीं है । लेकिन सहयोग जरूर करते रहना । अगर किसी घोटाले को लेकर सीबीआई जांच की मांग हो, कोई दंगा वगैरह हो तो तुम अपने हिसाब से संभाल लेना ।

घोटाला मिल बांटकर करेंगे । विपक्ष अगर ज्यादा हो हल्ला करे तो एक जांच आयोग बना देना । लेकिन ख्याल रहे कि जब तक मैं ज़िंदा रहूं तब तक आयोग की रिपोर्ट नहीं आनी चाहिए । इसके लिए तुम आयोग का कार्यकाल बढ़ाते रहना ।

एक बात और । चूकि हम चुनाव अलग-अलग लड़ते हैं । आगे भी अलग-अलग ही चुनाव लड़ेंगे । इसलिए सार्वजनिक तौर पर तुम्हारे हर मुद्दे का हम विरोध करेंगे । लेकिन अंतिम में समर्थन हम तुम्हारी सरकार का ही करेंगे ।

कभी-कभी ऐसा मौका भी आएगा, जब लगेगा कि मैं विपक्ष के साथ जा रहा हूं । मीडिया ज्यादा ज़ोर देगी । लोगों को दिखाने के लिए कुछ ऐसा बयान मुझे देना पड़ेगा, जो तुम्हें अच्छा नहीं लग सकता है । लेकिन इसे दिल से मत लगाना । क्योंकि वो सारी बातें सिर्फ मीडिया के लिए होगी । आम जनता को दिखाने के लिए होगी ।

हां एक बात और सुनो । अगर दाम बढ़ाने को लेकर हालात ज्यादा बिगड़ने लगे तो एक आध रूपये 
जरूर घटा देना । तुम भी जनता की हक़ की बात कहकर वाहवाही लूटना । और मैं लोगों को बताऊंगा कि  मेरे दबाव में दाम घटाया गया है ।

मेरे खिलाफ सीबीआई में जितने भी केस हैं, उसकी फाइल बंद रहनी चाहिए । मुमकिन हो तो तमाम मामलों में मुझे बड़ी कर दिया जाए । या फिर जांच की रफ्तार धीमी कर दी जाए ।
तुम मेरी इन बातों का ध्यान रखना । 

हम सरकार-सरकार खेलते  हुए पांच साल यूं ही गुजार देंगे । और फिर चुनाव की घोषणा के बाद गठबंधन तोड़ देंगे । 

बुधवार, 5 सितंबर 2012

उच्च सदन में निम्नता


      शर्म करूं या गुस्सा। समझ में नहीं आता। देश की सबसे बड़ी पंचायत में जो कुछ भी हो रहा था, वो लोकतंत्र के इतिहास में काले अक्षरों में लिखता जा रहा था। सदन की गरिमा लुट रही थी। गणतंत्र की जननी कलंकित हो रही थी। लोकतंत्र का चीरहरण हो रहा था। धृतराष्ट्र की तरह हमसब देख और सुन रहे थे। बेबस। लाचार। चाहकर भी हम कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि हममें से कुछ पार्टी के गुलाम हैं, कुछ जाति तो कुछ मजहब के गुलाम हैं। और गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा इंसान सोचता तो बहुत है लेकिन कुछ करता नहीं। और इसी स्थिति में कमोबेश हम सब थे।
    ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। महज एक बरस पहले इसी उच्च सदन में राजनीति प्रसाद ने लोकपाल बिल फाड़कर जो तुच्छ राजनीति की थी, उसे संसद कभी भूल नहीं सकता। निचले सदन में भी कई बार ये निम्न काम हो चुके हैं। राज्यों की पंचायतों में भी मननीय कई बार चारित्रीक रूप से नंगे हो चुके हैं। कश्मीर से कर्नाटक तक और बिहार से यूपी और महाराष्ट्र तक सदन के भीतर हमारे माननीय दो दो हाथ कर चुके हैं। 
    दरअसल सदन में विरोध का स्वरूप बदल गया है। वैचारिक शून्यता में भटक रहे राजनैतिक दल बहस करने से कतराते हैं। ऐसे में विरोध के लिए हंगामा,तोड़फोड़ और हाथापाई हथियार बन चुका है। प्रमोशन में रिजर्वेशन को लेकर भी सदन में यही हुआ। बहस के बजाय दो माननीय दो-दो हाथ करके फैसला करने पर उतर आये।
     बता दें कि पैसे देकर सदन पहुंचे इनमें से एक माननीय कुछ दिन पहले तक बहन जी के साथ थे तो इस बिल का समर्थन कर रहे थे। लेकिन यूपी चुनाव के दौरान पार्टी बदल ली। सोच और निष्ठा बदल गई। अब किसी भी कीमत पर प्रमोशन में रिजर्वेशन का विरोध कर रहे हैं। राज्यसभा में जैसे ही बिल पेश हुआ, पहलवान ब्रांड के मोटे कदकाठी वाले नेताजी को बर्दाश्त नहीं हुआ। बेल की ओर बढ़ गये । लेकिन कई महीनों से खुन्नस खाये बहनजी के दूसरे भाई सरदार जी ने ताक़त दिखाई। उन्हें रोकने की कोशिश की। तो धक्का मार दिया । और फिर देखते ही देखते दोनों माननीय बेपर्दा हो गए ।
    दो माननियों की लड़ाई में जीत किसकी हुई, ये समझ में नहीं आया। लेकिन हारनेवालों में बहुत कोई हैं । हम, आप और सबसे ज्यादा निसहाय लोकतंत्र । 

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

हम कौन हैं

(पाकिस्तान से भारत पहुंची समझौता एक्सप्रैस रेलगाड़ी से पाकिस्तानी 12 हिंदू परिवारों के करीब 32 सदस्य अपने वतन को सदा के लिए अलविदा कहकर भारत पहुंचे... )

  हम कौन हैं । किसके हैं । कहां के हैं । क्या हैं । खुद का पता ढूंढ रहे हैं । पता ढूंढूते-ढूंढ़ते शरहद पार पहुंच चुके हैं । चूकि भारी तदाद में हैं । इसलिए हम हैं । लेकिन सवाल वही, कि आखिर हम कौन हैं ।
   जहां जन्म लिया । जहां पला -बढ़ा । बड़ा हुआ । जहां कि मिट्टी को मां की तरह पूजा । वहीं दुत्कार मिल रही है । इज़्जत के साथ खिलवाड़ हो रहा है । धर्म, जाति से लेकर अस्तित्व तक पर बन आई है । जबरन धर्म बदल दिया जाता है । पता नहीं कब बेटी बुरके में शौहर के साथ घर लौटे । खूबसूरती की कीमत चुकानी पड़ती है हमारी बेटियों को । पता नहीं कब मनीषा, मुमताज बन जाए । कब बेटा सुनील के शमशाद बनने की ख़बर मिले । पता नहीं कब कुछ वहशी दीवारों को तोड़कर बेछत कर जाए । 
      कौमी झंडा बनानेवाले अमीरूद्दीन किदवई पर गुस्सा आ रहा है । क्या सोचकर उन्होंने झंडे में हरे के साथ सफेद रंग डाला था । कि बहुसंख्यक के नीचे अल्पसंख्यक फलेत-फुलते रहेंगे । खिलखिलाएंगे । लेकिन उनके अनुयायियों ने तो सफेद का दूसरा मतलब ही समझ  बैठा । मुल्क से अल्पसंख्यक को साफ करने पर तुले हैं। डर डर के जी रहे हैं । या यूं कहें कि मर मर के जी रहे हैं ।
    पूरे देश में कभी हम लाखों में थे । अब महज हजारों में हैं । दुनियाभर में मानव अधिकार की दुहाई देनेवाले यहां मौन हैं । आंखों पर पट्टी बंधी हुई है । हमारे दर्द पर किसी की नज़र नहीं पड़ती । हमारे लिए किसी सम्मेलन में बहस नहीं होती । हमारी पीड़ा कभी आवाज नहीं बनती । हम राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल नहीं होते । चौराहों पर रजानीति हंगामे में हमारी बात नहीं होती । देश के लीडरान भरोसा देने में जुटे हैं । और उनके अपने बेघर करने में लगे हैं ।
 मुल्क में अत्याचार है । प्रांत पार जाने पर भी दुत्कार है ।  शक भरी नज़रों से देखा जाता है । माथे पर शरणार्थी का ठप्पा लगा दिया जाता है । महज कुछ महीनों का मेहमान बनकर रहते हैं । हमारे सपने बिना मिट्टी के दफन हो जाते हैं । हम किसी के नहीं बन पाते हैं ।  हम कहां जाएं । क्या करें । आखिर हम भी इंसान हैं ।  

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

नाचते रहो इंडिया


एक जमाना था जब एक मदारी कई बंदरों को एक साथ नचाता था। लोग बंदरों को नाचते हुए देखकर तालियां बजाते थे। लेकिन अब एक बंदर को कई मदारी मिलकर नचा रहे हैं। अब तालियां बजाने के बजाय सब नाच रहे हैं। और नाच कर थक जाने के बाद थोड़ा बहुत चिल्लाकर भूखे पेट सो जाते हैं। आज के दौर का ये बंदर देश की जनता है। और मदारी टीम अन्ना, बाबा रामदेव, कांग्रेस, बीजेपी, वाम दल, दक्षिण दल, उत्तर दल, वगैरह, वगैरह है।
  आजादी के 64 बरस बाद भी देश की तमाम सियासी पार्टियां रोटी, कपड़ा और मकान की लालच में नचा रही है। जो दल इससे थोड़ा ऊपर उठ गया वो जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर नचा रहा है। तो कुछ पार्टियां दूसरी पार्टियां का डर दिखाकर लोगों को अपनी अंगुली पर नचा रही है। जब कुछ लोगों को लगा कि देश की जनता इन राजनीतिक दलों के धुन पर बोर हो चुकी है। तो उन्होंने भ्रष्टाचार, कालाधन और महंगाई सरीखे ऐसा राग छेड़ा कि कन्याकुमारी से काश्मीर तक लोग एक साथ अपने आप नाचने लगे। आखिर हम बंदर जो ठहरे। गांधीजी के बंदर तो गुंगे, बहरे और अंधे थे। लेकिन ये बंदर तो उससे भी कहीं आगे है। जो सिर्फ दूसरों के इशारों पर नाचना जानता है। और कुछ नहीं।  
 देश की सबसे पुरानी पार्टी सबसे बड़ा खिलाड़ी है। वो बंदरों के मिजाज को परखने में खुद को माहिर समझती है। कांग्रेस समय-समय पर नया धुन छेड़ती रहती है। ताकि देश के बंदरों को बोरियत महसूस न हो। अब वो  गरीबों को मोबाइल देने जा रही है। ताकि अपने हिसाब से धुन सेट कर सके। आपस में लड़नेवाली बीजेपी को जब कोई नया धुन नहीं मिलता तो वो हिन्दुत्व राग छेड़ देती है। फाइट स्टार होटल में बैठकर वामदल किसान मजदूरों को नचा रहा है। तमाम राज्यों की छोटी छोटी पार्टियां स्थानीय मिजाज को देखकर धुन तैयारी करती है, ताकि थकने के बाद भी बिना चांय चुपर किये वो आसानी से नाच सके।
 राजनेताओं के राग पर नाच-नाच कर थक चुके लोगों को एक नया राग मिला। अन्ना राग। साल भर तक लोग अन्ना हजारे के धुन पर नाचते रहे। पूरा देश अन्ना-अन्ना करने लगा। लेकिन राजनीतिक दलों को गरियाने वाले अन्ना हजारे और टीम अन्ना खुद राजनीतिक हो गये। लोगों को अन्ना से मोह भंग हुआ तो बाबा रामदेव ढोल लेकर कूद पड़े। अब लोग उनके पीछे है। लेकिन कब तक ये पता नहीं। क्योंकि पुलिसिया डंडे के डर से वो पिछली बार अपना अपना ढोल, धुन और बंदरों को छोड़कर भाग चुके हैं।  
 दरअसल जब तक ये बंदर इंसान नहीं बनेगा। दूसरों के इशारों पर नाचना नहीं छोड़ेगा। तब तक यूं ही ये मदारी इन्हें नचाते रहेंगे। लेकिन सवाल है कि, ये बंदर कब इंसान बनेगा। जो दूसरों के इशारों पर नाचने के बजाय खुद ऐसा धुन तैयार करेगा, जब उसके इशारों पर ये तमाम मदारी नाचेंगे और वे खुद तालियां भी बजाएंगे। हालांकि ऐसा रास्ता कोई दिख नहीं रहा, लेकिन उम्मीद तो मैं कतई नहीं छोड़ रहा हूं। बस इंतजार कर रहा हूं।