शनिवार, 19 नवंबर 2016

नोटबंदी से 'उम्मीदों' की मौत

मैं न तो बीजेपी समर्थक हूं। न कांग्रेस के साथ हूं। न ही दूसरी किसी पार्टी से  जायज या नजायज ताल्लुकात है मेरा। मैं कोई अर्थशास्त्री भी नहीं हूं। आम आदमी हूं। नफा-नुकसान का सीधा मतलब समझता हूं। लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म समझ में नहीं आता। यूं कहिए कि समझना नहीं चाहता। क्योंकि आज कटेगा, ये महीना पूरा होगा तो आगे की सोचेंगे। हम तो 20 तारीख के बाद सैलरी का इंतजार करनेवालों में से हैं।

नौकरी पेशा हूं। अप्रैजल का इंतजार करता रहता हूं। कान और आंख खोलकर रखने की कोशिश करता हूं । ताकि इससे ज्यादा सैलरी पर कहीं नौकरी मिल जाए। ताकि कोई नई कंपनी खुले तो उसमें नौकरी मिले।

नोटबंदी से किसे फायदा हुआ नहीं पता। कब फायदा होगा ये भी नहीं पता। कितने कालेधन वाले धन जाने से खुदकुशी कर लेंगे ये भी नहीं पता। कितने लोगों का पैसा कागज का टुकड़ा बन जाएगा ये भी नहीं पता। न ही ये पता है कि देश की अर्थव्यवस्था से कितनी मजबूती मिलेगी।

मैं बस इतना जानता हूं कि हमारे जैसे लोगों के लिए कई संभावनाओं की अचानक मौत हुई है। हमारी उम्मीदों की सरकार ने भ्रूणहत्या कर दी है। जहां-जहां नई नौकरियां दी जा रही थी, उसे तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। इंटरव्यू होने के बावजूद नौकरी बीच में अटक गई। कई नई कंपनियां पाइप लाइन में थी, जिसका कुछ ही दिनों में औपचारिक एलान होने वाला था, वे प्रोजेक्ट रूक गए। कमोबेश हर  कंपनियों में चर्चा सकारात्मक नहीं है। अप्रैजल पर कटौती की तलवार लटक रही है। दबी जुबान से छंटनी जैसे संकट की चर्चा होने लगी है।

सबसे बड़ा डर तो ये सता रहा है कि नोटबंदी के आड़ में कंपनी वाले कहीं छंटनी न करे। छंटनी से बच गए तो सैलरी में कटौती न कर दें। उससे बच गए तो बढ़ती महंगाई के बीच सैलरी जस के तस रह जाएगी। सबसे बच गए तो खून चूसकर काम करवाया जाएगा। चार के बदले एक आदमी से काम करवाया जाएगा। 

2009 से खराब स्थिति दिख रही है। कैसे मान लूं कि नोटबंदी से फायदे हैं। अगर होंगे भी तो क्या तब तक लोग भूखे रहेंगे? अगर कंपनी चलेगी नहीं। अगर काम होगा नहीं तो मजदूरी कहां से मिलेगी? मजदूरी मिलेगी नहीं तो फिर खाएंगे क्या? बच्चों को खिलाएंगे क्या? उन्हें पढ़ाएंगे कैसे? वक्त गुजर जाने के बाद कुछ नहीं होता। अगर बच्चों की पढ़ाई का वक्त बीत जाएगा तो बाद में फ्री में एडमीशन होने का भी क्या फायदा होगा?  

आपको अगर नोटबंदी पसंद आ रही है तो आपको मुबारक। आप अगर किसी दूसरे के पैसे बर्बाद होने से खुशी मिल रही है तो आपको मुबारक। आप अगर इस गलतफहमी हैं कि दो नंबर का पैसा इकट्ठा करनेवाले कंगाल हो जाएंगे, देश में समाजवाद आ जाएगा तो ये गलतफहमी आपको मुबारक। लेकिन अच्छे दिन के धागों से बनी अफवाहों की चादर से बाहर झांकिएगा  तो आप भी कमोबेश मेरी तरह महसूस कीजिएगा। अगर आप ऐसा महसूस नहीं कर पा रहे हैं तो आप में जरूर कुछ विशेष है।

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