मेरे गांव में रहते
हैं एक शंकर बाबू। पढे-लिखे। सुखी संपन्न। खानदानी। प्रतिष्ठित। ज्यादा लाग लपट से
मतलब नहीं। सबसे बातें करते हैं। जरूरत के हिसाब से लोग भी उन्हें सम्मान देते
हैं। जरूरत का मतलब, जिसे ज्ञान की जरूरत है वो पढाई के नजरिए से, जिसे पैसे की
जरूरत है, वो धन के नजरिए है, जो खुद प्रतिष्ठितों की श्रेणी में आता है, वो
प्रतिष्ठा की नजर से।
खैर, बात ये है कि
इतनी खूबियां और सम्मान रहने के बावजूद शंकर बाबू खुश नहीं रहते हैं। इसका कारण है
उनका पड़ोसी। कहते हैं ना कि पड़ोसी अगर खुश है तो आप भी खुश रहेंगे और पड़ोसी अगर
दुखी है तो आप भी दुखी रहेंगे। यही हाल है शंकर बाबू के साथ। पड़ोसी ठीक नहीं है।
मनोज नाम है उसका। बेहद उद्दंड। पढ़ाई लिखाई से भी दूर-दूर तक नाता नहीं।
मांग-मांगकर खाता है। लेकिन अकड़ की पूछो मत। गांवभर के लोग उसे लंपट कहते हैं।
वही लंपट मनोज, अक्सर शंकर बाबू को परेसान करता है। दुर्भाग्य देखिए कि शंकर बाबू
का अपना खून है मनोज। अपना सगा चचेरा भाई। लेकिन खानदान से बिल्कुल अलग। एक
प्रतिष्ठितों के श्रेणी में आता हो तो दूसरा महालंपट की श्रेणी में।
गांववालों ने कई बार
दोनों के बीच समझौता करवाया, लेकिन कुछ दिन बाद ही, मनोज फिर शंकर बाबू को परेशान
करना शुरू कर देता है। गांव के लोग नहीं चाहते हैं कि कोई ऐसा विवाद हो, जिसके
दूरगामी परिणाम देखने को मिले। खुद शंकर बाबू भी नहीं चाहते। प्रतिष्ठा के साथ-साथ
अपने ज्ञान का भी भरपूर इस्तेमाल करते हैं। उसको जरूरत से ज्यादा सम्मान देते हैं।
आर्थिक रूप से, सामाजिक रूप से सहयोग करते हैं। यूं कहिए कि शंकर बाबू से जितना बन
पाता है, उतना करते हैं। लेकिन मनोज है कि समझने को तैयार नहीं है।
शंकर बाबू ने कई बार
इसका स्थायी समाधान करने की कोशिश की। घर के सभी सदस्यों ने अपने-अपने हिसाब से
समाधान सुझाया। कुछ ने कहा कि बातचीत करो, तो कुछ ने कहा कि उसकी पिटाई करो।
शंकर बाबू के बड़े भाई
ने कहा कि मार-कुटाई से कुछ नहीं होने वाला है, जिंदा रहेगा तो फिर कहीं ना कहीं
से भटकते हुए पहुंच जाएग, परेशान करने। उससे बातचीत की करते हैं। उसी से कोई हल
निकलेगा।
तभी सबसे छोटका भाई
बोला- क्या होगा बातचीत से। गांववालों ने तो कितनी बार समझौता कराया, क्या फायदा
हुआ। एक ही विकल्प है-पिटाई
तभी बड़े भाई, छोटका
को डपटते हुए बोले- तुम चुप रहो, गरम खून है, हमेशा, मार कुटाई की बात करते-रहते
हो, आज तक लड़ाई से कोई समाधान निकला है क्या..
इसी बीच मंझला भाई
बोला- एक काम करते हैं कि उससे सारे रिश्ते-नाते तोड़ लेते हैं। घर के चारो तरफ
चाहरदीवारी दे देते हैं। ना वो दिखेगा, और ना परेशान करेगा।
फिर छोटका भाई बोला-
हम तो अभी भी कहते हैं कि एक बार सब मिलकर मनोज के घर में घुसकर मारते हैं,
देखिएगा फिर कभी इधर देखने की हिम्मत नहीं करेगा।
तभी शंकर बाबू अपने
सबसे छोटे भाई के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले- तुम समझते क्यों नहीं। मार कुटाई हम
खानदानी, प्रतिष्ठितों को शोभा नहीं देती। वो भी तो है, हमारा खून ही। हम कोई
विकल्प निकालते हैं रूको।
इसी बीच पीछे में खड़ी
शंकर बाबू की पत्नी बोलीं- अजी सुनिए, आपलोग नाहक परेशान मत होइए। अगर इतने दिन
सहे तो कुछ दिन और सह लीजिए। पंडित जी बोल रहे थे कि 2021 में ये दुनिया ही खत्म
होनेवाली है। तो फिर ना हम रहेंगे और ना वो। फिर इतने दिनों के लिए क्यों अपनी
प्रतिष्ठा पर आंच आने देंगे। आपलोग उसे मारियेगा तो उसे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।
दुनियाभर से मार खाते रहता है। लेकिन वो अगर आपलोगों में से किसी एक पर भी हाथ उठा
दिया, तो जानते हैं कि खानदान की प्रतिष्ठा पर क्या असर पड़ेगा।
शंकर बाबू बोले- यही बात सोचकर तो हम अभी तक सहे जा रहे थे। पंडित सब बोल रहा था कि 2012 में ही दुनिया खत्म होनेवाली है, लेकिन कहां कुछ हुआ।
नहीं इस बार पक्का है। पंडित जी ने पूरा हिसाब किताब जोड़कर बताया है- पत्नी बोलीं।
शंकर बाबू कुछ देर सचने के बाद बोले- हूं....तो फिर ठीक है। ज्यादा दिन बचा भी नहीं है। सिर्फ सात बरस और। हमलोगों को 2021 का इंतजार करना चाहिए।
शंकर बाबू बोले- यही बात सोचकर तो हम अभी तक सहे जा रहे थे। पंडित सब बोल रहा था कि 2012 में ही दुनिया खत्म होनेवाली है, लेकिन कहां कुछ हुआ।
नहीं इस बार पक्का है। पंडित जी ने पूरा हिसाब किताब जोड़कर बताया है- पत्नी बोलीं।
शंकर बाबू कुछ देर सचने के बाद बोले- हूं....तो फिर ठीक है। ज्यादा दिन बचा भी नहीं है। सिर्फ सात बरस और। हमलोगों को 2021 का इंतजार करना चाहिए।
(नोट- आप इसे भारत और पाकिस्तान के बीच के
रिश्तों से जोड़कर पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं)
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