गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

बाय-बाय बस्सी सर !

डियर बस्सी सर,
आपकी विदाई का वक्त तय हो चुका है। आप जल्द ही अपने पद से रुखसत हो जाएंगे। जैसा कि ख़बरों में आ रहा है कि रिटायरमेंट के बाद आप किसी दूसरे दफ्तर की शोभा बढ़ानेवाले हैं। अच्छी बात है। भगवान आप की जैसी किस्मत हर किसी को दे। नौकरी के साथ भी, नौकरी के बाद भी। वैसे अच्छा तो यही रहता है कि उम्र के इस पड़ाव में आप अपने परिवार के साथ समय बिताते, लेकिन काम का ईनाम किसे अच्छा नहीं लगता। आपको भी अच्छा लग रहा है, आगे भी लगेगा।

आप ने जिनकी विरासत संभाली थी, उनके अंतिम वक्त में लोग उनसे लोग बेहद निराश थे। उन्होंने कुछ ऐसा काम किया, जो कहीं से भी जायज नहीं था। कई बार ऐसा लगा कि नीरज कुमार को हटा दिया जाएगा, लेकिन उनके ऊपर किसकी मेरहबानी थी पता नहीं, (चर्चा तो कई नामों की थी) लेकिन उन्होंने अपना टर्म पूरा किया और आपको अपनी विरासत सौंप दी।

मुझे याद है जब कुर्सी संभालते ही तमाम टीवी चैनलों पर आपका रौबदार इंटरव्यू चला था। आपके कड़क कामों की चर्चा चारों तरफ हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि मानों अब सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन बाद में अहसास हुआ कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी में ही कुछ गड़बड़ है। धीरे-धीरे दिल्लीवालों को ऐसा लगने लगा कि आपका ध्यान दिल्ली की सुरक्षा में कम और पोस्ट रिटायर्मेंट प्लान पर ज्यादा है। दिल्ली में न रेप कम हुआ। न हत्याएं, लूट कम हुई। न सड़क पर झंडे लेकर दौड़ते लोगों के ऊपर पुलिसवालों के डंडे कम हुए। आप कहीं से भी जनता के नहीं हो सके। ऐसा क्यों।

आप क्यों कमजोर हो गए थे। हिंदुस्तान में अब भी पुलिस कमिश्नर का ओहदा बहुत बड़ा होता है। आप चाहते तो एक लकीर खींच सकते थे। लेकिन अंतिम वक्त आते-आते आपको लेकर जो धुंधली सी गलतफहमी थी वो भी खत्म सी होती गई। ऐसा लग रहा है कि जैसे दिल्ली पुलिस का कमिश्नर एक कठपुतली होता है, जो गृहमंत्रालय के इशारों पर खुद भी नाचता है और दूसरों को भी नचवाता है।

कितने सबूत मिलने के बाद और किसके कहने पर आपने जेएनयू से छात्र नेता कन्हैया कुमार को पकड़ लाये मुझे पता नहीं। लेकिन दिल्ली की बीच सड़क पर एक लड़के को दौड़ा-दौड़ा कर पटक-पटकर मारने वाले विधायक को आपने छूने तक की हिम्मत क्यों नहीं की। पीटते हुए वीडियो है। वो विधायक सरेआम कह रहा है कि मैंने उस लड़के को पीटा है। ये भी धमकी दे रहा है कि आगे भी पीटेंगे और आपने उसे पूछताछ के लिए हिरासत में लेने तक की हिम्मत नहीं की। आपने उन वकीलों को पकड़ने की हिम्मत क्यों नहीं कि, जिन्होंने पत्रकारों को पीटा। आपकी पुलिस तो सबकुछ देख रही थी।

आप किसको धोखा दे रहे हैं। लोगों को। वर्दी को या फिर खुद को। मुझे ये समझ नहीं आता कि आप जैसे लोगों के मन में ये सवाल क्यों नहीं आते। अगर आते हैं तो बार-बार क्यों नहीं आते। अगर बार-बार आते हैं तो खुदको खुदसे इसका जवाब क्या और कैसे देते हैं।

अब तो आप जा ही रहे हैं। दिल्ली आपकी इस स्तरहीन अदा को कभी नहीं भूलेगी। दिल्ली याद रखेगी कि नीरज कुमार के बाद भीम सिंह बस्सी नाम का एक दंतहीन, विषहीन व्यक्ति पुलिस कमिश्नर बना था। जाते-जाते आप अगर ये बता जाते कि सरकार आप पर क्यों मेहरबान हुई है तो अच्छा लगता। लेकिन इतने कठिन प्रश्नों का जवाब नहीं दिया जात। खैर, अबकी बार जहां जाइएगा, वहां कुछ ऐसा जरूर कीजिएगा कि लोग आपसे इस तरह के सवाल न पूछे। चलते-चलते आपके अगले एसाइनमेंट के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।
धन्यवाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें