बुधवार, 28 अगस्त 2013

रुपए के दर पर सरकार

सत्ता की अट्टालिका पर बैठकर हमेशा अट्टाहस भरनेवाली सरकार के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। बार-बार पोंछने के बावजूद माथे से पसीने की बूंद टपक रही थी। रुपए के सामने मुंह लटकाए बैचेन खड़ी थी सरकार। पहली बार रुपए ने सराकर को इस हालत में देखा था। लिहाजा पूछ बैठा- बहुत बैचेन से दिख रहे हैं। सरकार, क्या हुआ आपको ?

सरकार- तुम पूछ रहे हो कि क्या हुआ। ये पूछो कि क्या नहीं हुआ।

रुपया- मतलब समझा नहीं, देश में इतना कुछ हो गया। इतनी बड़ी त्रासदी आकर चली गई। हजारों लोग मारे गए। पड़ोसी मुल्क हमारे जवानों के सिर काटकर ले गए। आप तो कभी इतने परेशान नहीं दिखे। फिर अचानक ऐसा क्यों ?

सरकार- उत्तराखंड की त्रासदी से बड़ी त्रासदी तो तुमने खड़ी कर दी है। क्यों ऐसा कर रहे हो?

रुपया- मतलब, मैंने क्या किया सरकार?

सरकार- तुमने क्या किया ? सब कुछ तो तुमने ही किया है। और कर भी रहे हो। क्यों इतना गिर रहे हैं। डॉलर उठता जा रहा है और तुम गिरते जा रहे हो। क्या स्थिति बना ली है तुमने अपनी।

रुपया- ओह, तो मेरे गिरने से आप परेशान हैं। पर, क्यों ऐसे ही गिरना-उठना तो लगा ही रहता। मेरा-आपका, सबका।

सरकार- तुम समझ नहीं रहे हो यार। क्या स्थति बनती जा रही है। गिर तुम रहे हो और दोष मुझ पर मढ़ा जा रहा है। टीवी चैनल, अखबार, ट्वीटर, फेसबुक, हर जगह मेरी फजीहत हो रही है। लोग कह रहे हैं  कि मैं तुम्हें संभाल नहीं पा रहा हूं। यहां तक कि तुम्हे गिराने का ठीकरा मेरे सिर फोड़ा जा रहा है। यार, अब तुम कुछ करो। मेरी इज्जत बचाओ। जिस काम के लिए मेरा नाम हुआ, वही आज खत्म होने वाला है। अगर तुम कुछ नहीं करोगे तो मेरी इज्जत का दिवाला निकल जाएगा। कुछ भी नहीं बचेगा।

रुपया- आप झूठ बोल रहे हैं सरकार। आपको इज्जत की नहीं अपनी कुर्सी की चिंता है। आपको डर है कि अगर मैं ऐसे ही गिरता रहा तो आप कुर्सी से नीचे गिर जाएंगे। और ऐसे गिरेंगे कि फिर उस पर बैठने लायक नहीं रहेंगे। अच्छा, एक बात बताइए कि जब आप गिर रहे थे तो मैंने तो कुछ नहीं कहा था। उल्टे आप गिर भी रहे थे और मुझे अपनी जेब में समेट भी रहे थे। जब जेब भरा तो घर में घुसा दिया। घर भरा तो बैंक में ठूंस दिया। कहां कहां नहीं सैर कराया मुझे। देश-विदेशों में। अब भुगतीए। अब मैं गिर रहा हूं- आप अपने घर में सिमटिए। वरना देश की जनता आपको समेट देगी।

रुपया का जवाव सुनकर सरकार का मुंह और लटक गया। कुछ और सवाल जवाब नहीं सूझ रहा था। उसने कहा भी तो सही था। एक गिरा हुआ शख्स भला दूसरे को क्या उठा सकता है। लिहाजा वैसे ही मुंह लटकाए लौट आए। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें