शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुख्यमंत्री के नाम चिट्ठी


शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री जी,
              नमस्कार, मैं दिल्ली में रहनेवाली एक लड़की हूं। आप मुझे किसी भी नाम से जान सकती हैं। मुन्नी, गुड़िया, रजिया और कुछ और। मुख्यमंत्री जी, कहां से शुरू करूं, समझ में नहीं आता। बातें बहुत सारी है। शिकायतों का पुलिंदा है। जख्मों को कुरेदना नहीं चाहता। लेकिन बातें कहना भी जरूरी है। इसलिए आज कह रही हूं।

मुख्यमंत्री जी, आपकी दिल्ली में डर लगता है। आपके शहर में रहने का मन नहीं करता। घर से निकलने को जी नहीं चाहता। सड़क पर चलते हुए कलेजा कांपता है। जब सड़क पर अकेली रहती हूं, तो सांसे तेज हो जाती है। अनहोनी की आशंका बनी रहती है। बस में जब बैठती हूं, मेट्रो में जब सफर करती हूं। तो घूरती नज़रों को देखर सहम जाती हूं। बाजार में किसी काम से निकलती हूं तो हमेशा एक ख़ौफ बना रहता है दिल में।

आप दिल्ली को लंदन बना देना चाहती हैं। दिल्ली को आप मेट्रो रेल और पार्कों का शहर बना रही हैं। ऊंचे-ऊंचे फ्लाई ओवर बनवा रही हैं। नई नई बसें। प्रदूषण रहित दिल्ली का सपना दिखा रही हैं। लेकिन चमचमाते शहर का स्याह चेहरा आपको क्यों नहीं दिखता। उस बेनूर, बेरंग और मलीन व्यवस्था की ओर आपकी नजर क्यों नहीं जाती, जो आपकी खूबसूरत दिल्ली पर धब्बा लगा रही है।   

आप मुख्यमंत्री हैं। आप सरकार हैं। कानून बनाती हैं। व्यवस्था बनाती हैं। दिल्ली को चलाती हैं। आप कुछ भी कर सकती। तो फिर इंसान के शक्ल में सड़क पर दौड़ते भेड़ियों को काबू करने के लिए कुछ क्यों नहीं करती हैं। कब तक बेखौफ, बेफिक्र, बेगाम, और बेहिसाब कुछ बदतमीज हमारी बहनों की इज्जत के साथ खेलते रहेंगे। कब तक दरिंदों के साये में हमारी बहने जीने को मजबूर रहेंगी।

आप बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए तरह तरह की योजनाएं चला रही हैं। अगर इज्जत, आबरू सुरक्षित नहीं रही, तो उस लाडली योजना का क्या मायने जो स्कूलों में हमारी बहनों को मिलती हैं। क्या उन बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेवारी आपकी नहीं है।

मुख्यमंत्री जी, नहीं चाहिए मुझे लाडली योजना। नहीं चाहिए ऊंचे-ऊंचे फ्लाइओवर का शहर। पार्कों और मेट्रो के बगैर भी हम जी लेंगे। लेकिन थोड़ी सी शांति और सुरक्षा दे दीजिए।

जानती हूं की राजनीति में जज्बात कोई मायने नहीं रखता। लेकिन आप भी एक औरत हैं। हमारी तरह। जब आप सीएम बनी थी, तो एक उम्मीद जगी थी। लगा था कि आप हमारे दर्द को समझेंगी। दिल्ली में अब दरिंदे बेकाबू नहीं घूमेंगे। लेकिन राजनीति करते-करते आप इतनी बेदर्द हो गई कि आपको हमारी कोई फिक्र ही नहीं रही। आपके राज में साल दर साल बलात्करी बेलगाम होते गए। इंसान के शक्ल में भेड़िये सरेआम सड़क पर घूमने लगे। वहशी दरिंदे हमारी बहनों को नोचते रहे। हैवानों की टोली उनके बेजान जिस्म के साथ खेलती रही। मेरी सैकड़ों बहनों की हंसती खेलती जिंदगी पलभर में नर्क बन गई। और ऐसे पल्ला झाड़ती चली गई, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। आप बड़ी बेबाकी से कह देती हैं कि कानून व्यवस्था आपके हाथ में नहीं है। लेकिन क्या इतनाभर कह देने से आपकी जिम्मेवारी खत्म हो जाती है।

एक या दो घटना हो तो भूल जाऊं। लेकिन आपके राज में हर दिन तकरीबन दो औरतों को इस बेहिसाब पीड़ा से गुजरना पड़ता है। हमारी कई बहने बदनामी की बेइंतहा दर्द लिए गुमान की जिंदगी जी रही हैं। और आप चुप हैं। ऐसा कैसे हो सकता है। आप क्यों नहीं सोचती हैं, इसके बारे में।  
इससे पहले की दर्द दवा बन जाए। आप ही की तरह सब बेदर्द हो जाए। मेरी बातों पर गौर कीजिएगा। कुछ जरूर कीजिएगा।
                              आपके राज में रहनेवाली एक लड़की

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