रविवार, 10 जून 2012

वीर ब्रह्मेश्वर या हत्यारों का मुखिया


वही हुआ जिसकी आशंका थी । ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह ऊर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या कर दी गई । जो जैसा करता है, वो वैसा ही पाता है । ब्रह्मेश्वर सिंह की जो शख्सियत थी, या कहें कि उनकी जो छवि थी, उसका  ऐसा ही अंत होता है । सत्तर साल के बूढे शरीर में चालीस गोलियां  दाग दी गई । 273 हत्याओं का  मुखिया पलभर में ढेर हो गया । 
          आप ब्रह्मेश्वर सिंह को हत्यारों और नरसंहारों का मुखिया कह सकते हैं । आप उन्हें बेदर्द और बेदिल इंसान कह सकते  हैं । लेकिन सवाल उठता है कि आखिर बरमेसर नाम का दीनहीन, दुबला पुतला शरीर वाला इंसान हत्यारों का सरदार कैसे बन गया  ?  आखिर कैसे तथाकथित ऊपरी तबके के लोग उसके पीछे दौड़ पड़े  ?  वो कैसे बुद्धिजीवियों के बड़े तबके का हीरो बन गया ?  बरमेसर मुखिया कोई पेशेवर अपराधी नहीं था । वो पैसों के लिए या फिर स्वयं स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसी सेना नहीं बनाई, जो लोगों की बेरहमी से हत्या करती थी । 
         दरअसल हालात ने बरमेसर को ब्रह्मेश्वर मुखिया बना दिया । शातिर और खौफनाक दिमाग की करतूत एक तरह से प्रतिकार था । जिस समय ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई में रणवीर सेना एक के बाद एक नरसंहारों को अंजाम दे रही थी, उस वक्त बिहार में समाजिक और राजनीतिक समीकरण कुछ यूं थे, जिसका परिणाम मौते होती थी । दरअसल तथाकथित निचले तबकों का एक समूह  सरेआम सत्ता को चुनौती दे रहा था । जमींदारों की जमीन पर जबरन कब्जा कर रहा था । खेतों से फसल लूट लिये जाते थे । जमींदारों की बहू बेटियों की इज्जत खेला जाता था । सरकार मौन थी । प्रशासन बेपरहवाह था । पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही थी । छोटे छोटे कई संगठन पैदा हो गये थे ।  एमसीसी जैसे संगठनों के हौसले बुलंद होते जा रहे थे । फेल होती व्यवस्था के बीच इन्हीं संगठनों से निपटने और अपनी बहू बेटियों की इज्जत बचाने का बीड़ा उठाया ब्रह्मेश्वर सिंह ने । उन्होंने रणवीर सेना के नाम से एक संगठन बनाया ।  जिसमें कई छोटे छोटे संगठन शामिल हुए । जमीनदार तबके के लोग उसमें शामिल होने लोगे । पैसा और हथियार जमा होने लगा । और फिर एमसीसी के नरसंहार के बाद रणवीर सेना की ओर से नरसंहार होने लगा । 
        जिस तरह से ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई वाली रणवीर सेना कत्लेआम मचाती थी । महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ती थी । एक-एक नरसंहारों को अंजाम दिया । उससे  इतिहास में ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम एक कातिल के रूप में दर्ज होगा, लेकिन जातिगत समीकरण में उलझे बिहार का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो उन्हें 'वीर ब्रह्मेश्वर' के नाम से याद रखेगा । 

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